छत्तीसगढ़ में प्रथम आदिवासी/जनजातीय विद्रोह हल्बा विद्रोह ( 1774 ई. ) अजमेर सिंह की नेतृत्व में हुआ था। छत्तीसगढ़ में मुख्यतः आदिवासी/जनजातीय विद्रोह बस्तर में हुए। आधुनिक भारत के इतिहास में स्वतंत्रता संग्राम की सुरुवात १८५७ से माना जाता है परंतु बस्तर में ३२ वर्ष पूर्व १८२४ ई. में नारायणपुर तहसील के परलकोट के जमींदार गेंद सिंह ने अंग्रेजो और मराठो के खिलाफ विद्रोह किया था जिसे परलकोट विद्रोह के नाम से जाना जाता है और इसके बाद छत्तीसगढ़ में अनेक विद्रोह हुए।
छत्तीसगढ़ में आदिवासी/जनजातीय विद्रोह:
- हल्बा विद्रोह( १७७४ ई. )मुख्य लेख
• शासक- दरियावदेव
• उद्देश्य - उत्तराधिकार हेतु
• विशेष - प्रथम विद्रोह
- भोपालपट्टनम संघर्ष ( १७९५ ई. )मुख्य लेख
• उद्देश्य - अंग्रेज अधिकारी जे. टी. ब्लण्ट को जगदलपुर प्रवेश के विद्रोह में
• विशेष - अल्पकालीन व सीमित
- परलकोट विद्रोह ( १८२५ ई. ) मुख्य लेख
• शासक- महिपाल देव
• उद्देश्य - अबुझमाड़ीयों की शोषण मुक्ति
• दमनकर्ता - कैप्टन पेबे
• विशेष - प्रथम शहीद - गेंद सिंह , प्रतीक धावडा पेड़ की टहनी
- तारापुर विद्रोह ( १८४२ ई. ) मुख्य लेख
• शासक- भुपालदेव
• उद्देश्य - टकोली बढाने के विरोध में
- मेरिया विद्रोह ( १८४२ ई. ) मुख्य लेख
• शासक- भुपालदेव
• उद्देश्य - नरबलि प्रथा के विरूद्व
• दमनकर्ता - कैम्पबेल
- लिंगागिरि विद्रोह ( १८५६ ई. ) मुख्य लेख
• शासक- भैरमदेव
• उद्देश्य - बस्तर का मुक्ति संग्राम
- कोई विद्रोह ( १८५९ ई. ) मुख्य लेख
• शासक- भैरमदेव
• उद्देश्य - साल पेड के कटाई के विरूद्ध
- मुरिया विद्रोह ( १८७६ ई. ) मुख्य लेख
• शासक- भैरमदेव
• दमनकर्ता - मैक जार्ज
• प्रतीक- आम कि टहनी
- महान भूमकाल विद्रोह ( १९१० ई. ) मुख्य लेख
• शासक- रूद्रप्रताप सिंह देव
• उद्देश्य - शोषण के विरूद्व
• दमनकर्ता - कैप्टन गेयर
• प्रतीक- लालमिर्च+आम कि टहनी,
• अंतिम सामना अलवार में
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Achha hai
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