5/28/2023

पाइथागोरस थ्योरम (प्रमेय) क्या है? और क्या इसकी खोज भारतीय ऋषि ने की थी ? pythagoras theorem invented in india



पाइथागोरस प्रमेय का उपयोग गणित में एक समकोण त्रिभुज की तीन भुजाओं के बीच यूक्लिडियन ज्यामिति में एक मूलभूत संबंध है। इसमें कहा गया है कि ' किसी समकोण त्रिभुज के कर्ण पर बना हुआ वर्ग, शेष दो भुजाओं पर बने हुए वर्गों के बराबर होता है।' इस प्रमेय को भुजाओं a, b और कर्ण c की लंबाई से संबंधित समीकरण के रूप में a²+b²=c² ऐसे लिखा जा सकता है। इस प्रमेय का नाम 570 ईसा पूर्व जन्मे ग्रीक दार्शनिक पाइथागोरस के नाम पर रखा गया है।


पाइथागोरस थ्योरम में विवाद क्यों है ?

कर्नाटक सरकार द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP), 2020 को लागू करने के लिए बनाई गई थी। टास्क फोर्स के प्रमुख मदन गोपाल (पूर्व आईएएस अधिकारी) के मुताबिक, ‘पाइथागोरस प्रमेय की जड़ें वैदिक गणित में हैं। इससे पहले जनवरी 2015 में तत्कालीन केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने भी इंडियन साइंस कांग्रेस में पाइथागोरस प्रमेय की खोज का श्रेय भारतीय विद्वानों को दिया था।


क्या पाइथागोरस प्रमेय भारतीय शास्त्रों में है ?

भारत में वैदिक काल के दौरान रचे गए शुल्बसूत्रों में  वर्तमान पाइथागोरस प्रमेय के समान प्रमेय सुविकसित स्वरूप में मिलते है। शुल्ब एक संस्कृत भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ नापने की रस्सी या डोरी होता है। शुल्ब सूत्रों में यज्ञ-वेदियों को नापना, उनके लिए स्थान का चुनना तथा वेदि निर्माण आदि विषयों का विस्तृत वर्णन है। ये भारतीय ज्यामिति के प्राचीनतम ग्रन्थ हैं। प्राचीन भारतीय गणित में ज्यामिति के लिए 'शुल्बविज्ञान' शब्द का प्रयोग किया जाता था।

निम्नलिखित शुल्ब सूत्र इस समय उपलब्ध हैं: आपस्तम्ब शुल्ब सूत्र, बौधायन शुल्ब सूत्र, मानव शुल्ब सूत्र, कात्यायन शुल्ब सूत्र, मैत्रायणीय शुल्ब सूत्र, वाराह, वधुल, हिरण्यकेशिन।


बौधायन का सूत्र (1.48) :

दीर्घचतुरश्रस्याक्ष्णया रज्जुः पार्श्वमानी तिर्यग् मानी च

यत् पृथग् भूते कुरूतस्तदुभयं करोति॥

अर्थात् विकर्ण पर कोई रस्सी तानी जाए तो उस पर बने वर्ग का क्षेत्रफल लंबवत भुजा पर बने वर्ग और क्षैतिज भुजा पर बने वर्ग के जोड़ के बराबर होता है।


तो इस प्रमेय को पाइथागोरस प्रमेय किसने बोला ?

यूनानी गणितज्ञ यूक्लिड (Euclid), जिन्होंने पाइथागोरस प्रमेय का तार्किक ढांचा दिया। उन्होंने अपनी किताब 'द एलिमेन्ट्स' में 'पाइथागोरस प्रमेय' शब्द का प्रयोग नही किया है, उन्होने सिर्फ इसकी प्रमाणप्र स्तुत की है। यूक्लिड के काफी बाद प्रोक्लस लाइकियस (जन्म- 412 ई.) आदि समीक्षकों ने इस प्रमेय को पाइथागोरस प्रमेय का नाम दिया।



5/24/2023

सेन्गोल क्या है ? What is sengol

भारतीय इतिहास में सेन्गोल (Sengol) राजाओं के बीच सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक रहा है। इसे एक राजा दूसरे सत्ता हस्तांतरण के समय के समय दिया जाता था। सेन्गोल एक तमिल भाषा का शब्द है जिसका अर्थ "संपदा से सम्पन्न" है। भारत में चोला शासनकाल में सेन्गोल (राजदंड) का उपयोग सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में किया जाता था। इस सेंगोल का संबंध आधुनिक भारत से भी है।


आधुनिक भारत और भारत की स्वतंत्रता से सेन्गोल का संबंध :

स्वतंत्रता पूर्व लॉर्ड माउंटबेटन ने नेहरू से पूछा कि वह स्वतंत्रता प्राप्ति का प्रतीक कैसे बनना चाहते हैं। जिसके बाद जवाहरलाल नेहरू ने भारत के अंतिम गवर्नर-जनरल सी राजगोपालाचारी (राजा जी) से इस संबंध में राय मांगी। जिसके बाद राजगोपालाचारी पौराणिक ग्रंथों का अध्ययन किया और नेहरू को एक तमिल परंपरा के बारे में बताया जब राज्य के महायाजक ('राजगुरु') नए राजा को सत्ता ग्रहण करने पर एक राजदंड भेंट करते थे जिसे सेन्गोल (Sengol) कहा जाता है।

सी राजगोपालाचारी के सुझाव पर नेहरू सहमत हो गए और सी राजगोपालाचारी को व्यवस्था करने की जिम्मेदारी भी दे दी, जिन्होंने फिर तमिलनाडु के शैव मठ थिरुवदुथुराई अधीनम से संपर्क किया। मठ के 20वें गुरुमहा सन्निथानम श्री ला श्री अंबालावन देसिका स्वामीगल ने जिम्मेदारी स्वीकार की और तत्कालीन मद्रास में एक जौहरी द्वारा शीर्ष पर एक बैल ('नंदी') के साथ सोने का राजदंड बनाने की व्यवस्था की। जिसमें 15000 रुपयों की लागत आई थी।

इस अवसर के लिए जवाहर लाल नेहरू ने एक विशेष विमान की व्यवस्था की। द्रष्टा ने अपने प्रतिनिधि श्री ला श्री कुमारस्वामी थम्बिरन, मठ में प्रार्थना करने वाले पुजारी जिसे मणिकम ओधुवार कहते है, और मठ के नादस्वरम विद्वान, टीएन राजारथिनम पिल्लई को नई दिल्ली भेजा। 

14 अगस्त, 1945 को लगभग 10:45 बजे प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू ने तमिलनाडु के लोगों से सेंगोल को स्वीकार किया। यह इस देश के लोगों के लिए अंग्रेजों से सत्ता के हस्तांतरण का संकेत है।


चर्चा में क्यों ?

सेन्गोल को नए संसद भवन में स्पीकर के सीट के बगल में रखा जाएगा। 28 मई 2023 को विधिवत प्रक्रिया से सेन्गोल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दिया जाएगा।

केन्द्रीय गृह मंत्री ने आगे सेन्गोल के बारे में विस्तार से बताया। “सेन्गोल का गहरा अर्थ होता है। "सेन्गोल" शब्द तमिल शब्द "सेम्मई" से लिया गया है, जिसका अर्थ है "नीतिपरायणता"। इसे तमिलनाडु के एक प्रमुख धार्मिक मठ के मुख्य आधीनम (पुरोहितों) का आशीर्वाद प्राप्त है। ‘न्याय’ के प्रेक्षक के रूप में, अपनी अटल दृष्टि के साथ देखते हुए, हाथ से उत्कीर्ण नंदी इसके शीर्ष पर विराजमान हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सेन्गोल को ग्रहण करने वाले व्यक्ति को न्यायपूर्ण और निष्पक्ष रूप से शासन करने का ‘आदेश’ (तमिल में‘आणई’) होता है और यह बात सबसे अधिक ध्यान खींचने वाली है- लोगों की सेवा करने के लिए चुने गए लोगों को इसे कभी नहीं भूलना चाहिए।” 



5/11/2023

मगहर का इतिहास - History Of Magahar


मगहर राज्य उत्तर प्रदेश में संत कबीर नगर जिले का एक कस्बा और नगर पंचायत है। यह स्थल कबीर पंथियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है क्यों कि संत कबीर की समाधि मगहर में ही स्थित है। संत कबीर ने अपने जीवन के अंतिम दिन मगहर में ही बिताए थे।


संत कबीर अपने जीवन के अंतिम दिनों में मगहर क्यों चले गए ?

प्राचीन काल से यह माना जाता है कि वाराणसी एक मोक्षदायिनी नगरी है, इसके साथ यह भी मान्यता थी कि मगहर एक अपवित्र जगह है और यहां मरने से व्यक्ति अगले जन्म में गधा होता है या फिर नरक में जाता है। मगहर से जुड़े इस मान्यता को तोड़ने के लिए ही जीवन के अंतिम दिनों में संत कबीर मगहर आ गए, और आमी नदी के किनारे रहने लगे। वर्ष 1518 में उन्होंने अपना देह मगहर में ही त्यागा।


मगहर नाम का इतिहास :

मगहर नाम को लेकर भी कई किंवदंतियां हैं। जिनमे से एक किंवदंती के अनुसार, बौद्ध भिक्षु जब कपिलवस्तु, लुंबिनी, कुशीनगर जैसे प्रसिद्ध बौद्ध स्थलों के दर्शन के लिए जाया करते थे, तब इस इलाके से ही गुजरा करते थे। इस इलाक़े के आस-पास अक़्सर उन दर्शनाभिलाषियों के साथ लूट-पाट की घटनाएं होती थीं और इसीलिए इस रास्ते का ही नाम 'मार्गहर' यानी मार्ग - रास्ता, हर - छिनना पड़ा।

परंतु दूसरी किंवदंती इससे उलट है, इसके अनुसार यहां से गुज़रने वाला व्यक्ति हरि यानी भगवान के पास ही जाता है, इस वजह से इस स्थान का नाम मगहर पड़ा।


देह त्याग :

संत कबीर ने जिस स्थान पर देह त्यागा, उस स्थल पर सुगंधित फूल मिले। जिसे हिन्दू एवं मुस्लिम दोनों ही धर्मो के लोगो ने आपस में बांट लिया, और मंदिर एवं मजार का निर्माण कराया। 




5/10/2023

राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस क्यों मनाया जाता है ? The celebration of National Technology

राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस (National Technology Day) का उत्सव में पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा भारतीय वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और प्रौद्योगिकीविदों को सम्मानित करने के लिए शुरू किया गया था। प्रथम राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस 11 मई, 1999 को मनाया गया था।


क्यों सुरु किया गया ?

मई 1998 को भारतीय सेना द्वारा राजस्थान के पोखरण 5 सफल परमाणु परीक्षण किये गए थे। वर्ष 1974 में भारत के द्वारा 'स्माइलिंग बुद्धा' नाम से किये पहले परमाणु परीक्षण के बाद यह भारत का दूसरा परमाणु परीक्षण था। देश में प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में तकनीकी दिग्गजों, शोधकर्ताओं और इंजीनियरों की उपलब्धियों पर प्रकाश डालने के लिए पोखरण परमाणु परीक्षण की तारीख को भारत सरकार के द्वारा "राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस" के रूप में चिह्नित किया गया।

5/08/2023

छत्तीसगढ़ श्रम विभाग में निकली सीधी भर्ती

छत्तीसगढ़ के श्रम विभाग के अन्तर्गत सीधी भर्ती के रिक्त पदों को भरने की दी गई सहमति उपरात ऑनलाईन आवेदन छत्तीसगढ़ व्यावसायिक परीक्षा मण्डल, रायपुर की वेबसाईट cgvyapam.choice.gov.in पर आमंत्रित की गई है।

कुल पदों की संख्या : 34

पदवार संख्या :

  • सहायक श्रम पदाधिकारी - 4
  • श्रम निरीक्षक - 14
  • श्रम उप निरीक्षक - 16

योग्यता : स्नातक


5/07/2023

छत्तीसगढ़ में वनरक्षक के पदों पर निकली भर्ती ( 2023 )    Forest Guard Recruitment

छत्तीसगढ़ राज्य वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के अधीन बस्तर एवं सरगुजा संभाग के अंतर्गत आने वाले जिले एवं कोरबा जिले के अंतर्गत आने वाले वनमण्डल में वनरक्षक के रिक्त पदों पर 08.05.2023 से आवेदन आमंत्रित किये जा रहें है। आवेदन की अंतिम तिथि 27.05.2023 है। ऑनलाईन आवेदन पत्र विभागीय वेबसाईट www.cgforest.com पर किये जाएंगे।

पदों की संख्या : 1685

शैक्षणिक अर्हता : हायर सेकेण्डरी परीक्षा (10+2) उत्तीर्ण होना चाहिये।


ऐसे अभ्यर्थी जो पूर्व में आवेदन पत्र भरने की निर्धारित तिथि (दिनांक 12.12.2021 से 31.12.2021 तक एवं समय वृद्धि पश्चात् दिनांक 31.01.2022 तक) में आवेदन कर चुके हैं, उन्हें दोबारा आवेदन करने की आवश्यकता नहीं है।

छत्तीसगढ़ औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थाओं ( CHHATTISGARH ITI) में प्रशिक्षण अधिकारियों ( Training Officer ) 2023


छत्तीसगढ़ की शासकीय औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थाओं में प्रशिक्षण अधिकारियों के विभिन्न 366 रिक्त पदों पर सीधी भर्ती किये जा रहे है। उम्मीदवारों से छत्तीसगढ़ व्यावसायिक परीक्षा मण्डल (व्यापम) द्वारा निर्धारित आवेदन पत्र ऑनलाइन दिनांक 08/05/2023 से आमंत्रित किये जा रहें है।

इन पदों पर आवेदन करने वाले को छत्तीसगढ़ का मूल / स्थानीय निवासी होना अनिवार्य है। इस हेतु सक्षम अधिकारी द्वारा जारी निवास प्रमाण पत्र प्रस्तुत करना अनिवार्य है।


वेतन मैट्रिक्स - लेवल 8 (35400-112400/-)


पदों के नाम :

  1. प्रशिक्षण अधिकारी, इंफारमेशन एंड कम्युनिकेशन टेक्नॉलाजी सिस्टम मेटेनेंस
  2. प्रशिक्षण अधिकारी, इलेक्ट्रिशियन
  3. प्रशिक्षण अधिकारी, कम्प्युटर आपरेटर एंड प्रोग्रामिंग असिस्टेंट
  4. प्रशिक्षण अधिकारी, कारपेंटर
  5. प्रशिक्षण अधिकारी, टर्नर
  6. प्रशिक्षण अधिकारी, ड्राईवर कम मैकेनिक
  7. प्रशिक्षण अधिकारी, ड्राफ्ट्समेन मैकेनिकल
  8. प्रशिक्षण अधिकारी, फिटर
  9. प्रशिक्षण अधिकारी, मशीनिष्ट
  10. प्रशिक्षण अधिकारी, मशीनिष्ट ग्राइंडर
  11. प्रशिक्षण अधिकारी, मेसन (बिल्डिंग कंस्ट्रक्टर)
  12. प्रशिक्षण अधिकारी, मैकेनिक ट्रैक्टर
  13. प्रशिक्षण अधिकारी, मैकेनिक डीजल
  14. प्रशिक्षण अधिकारी, मैकेनिक मोटर व्हीकल
  15. प्रशिक्षण अधिकारी, मैकेनिक रेफ्रिजरेशन एंड एयर कंडिशनर
  16. प्रशिक्षण अधिकारी, वर्कशॉप कैल्युलेशन एवं इंजीनियरिंग ड्रॉइंग
  17. प्रशिक्षण अधिकारी, वायरमैन
  18. प्रशिक्षण अधिकारी, वेल्डर
  19. प्रशिक्षण अधिकारी, शीट मेटल वर्कर
  20. प्रशिक्षण अधिकारी, सेक्रेटेरियल प्रेक्टिस (अंग्रेजी)
  21. प्रशिक्षण अधिकारी, सिविंग टेक्नॉलाजी
  22. प्रशिक्षण अधिकारी, हॉस्पीटल हाउस कीपिंग
  23. प्रशिक्षण अधिकारी, एग्लायबिलिटी स्किल

अधिक जानकारी के लिए आप http://vyapam.cgstate.gov.in पर जा सकते है।



5/06/2023

भारत की शास्त्रीय भाषा (Classical language) कौन सी है ?



जैसा कि हम जानते है कि भारत में 22 अनुसूचित भाषाएं है जिन्हें संविधान की 8 वीं अनुसूची में रखा गया है। इन्ही अनुसूचित भाषाओं में से कुछ भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया गया है।


शास्त्रीय भाषा होता क्या है ?

फरवरी 2014 में भारत के संस्कृति मंत्रालय (Ministry of Culture) द्वारा किसी भाषा को "शास्त्रीय" भाषा का दर्जा देने के लिये निम्नलिखित दिशा निर्देश जारी किये-

  • इसके प्रारंभिक ग्रंथों का इतिहास 1500-2000 वर्ष से अधिक पुराना हो
  • प्राचीन साहित्य/ग्रंथों का एक हिस्सा हो जिसे बोलने वाले लोगों की पीढ़ियों द्वारा एक मूल्यवान विरासत माना जाता हो।
  • साहित्यिक परंपरा में मौलिकता हो।
  • शास्त्रीय भाषा और साहित्य, आधुनिक भाषा और साहित्य से भिन्न हैं इसलिये इसके बाद के रूपों के बीच असमानता भी हो सकती है।


भारत में कितनी शास्त्रीय भाषा है ?

वर्तमान में छह भाषाओं को "शास्त्रीय" भाषा का दर्जा प्राप्त है:

  1. तमिल (2004 में घोषित)
  2.  संस्कृत (2005)
  3. कन्नड़ (2008)
  4. तेलुगु (2008)
  5. मलयालम (2013)
  6. ओडिया (2014)

सभी शास्त्रीय भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में सूचीबद्ध किया गया है।


5/05/2023

उपच्छाया चंद्रग्रहण क्या है? इसकी परिभाषा Penumbral Lunar Eclipse


उपच्छाया चंद्रग्रहण एक अनूठी खगोलीय घटना है। यह भी एक चंद्रग्रहण ही है, परंतु यह सामान्य चंद्रग्रहण से थोड़ा अलग है। जब सूर्य और चंद्रमा के बीच पृथ्वी आती है और ये तीनों ग्रह एक सीधी लाइन आ जाते हैं, तब चंद्र ग्रहण होता है। जब ये तीनों ग्रह एक सीधी लाइन में हों, लेकिन पृथ्वी की सीधी छाया चंद्र पर न पड़े तो उपच्छाया चंद्र ग्रहण की घटना होती है।

अन्य प्रकार के ग्रहणों के विपरीत, उपच्छाया चंद्र ग्रहण सूक्ष्म एक सूक्ष्म घटना हैं जिस वहज से इसका निरीक्षण करना थोड़ा कठिन होता है। इस प्रकार का ग्रहण अन्य प्रकार के चंद्र ग्रहणों की तरह नहीं होता है और अक्सर इसे नियमित पूर्णिमा मान लिया जाता है।


तो उपच्छाया चंद्रग्रहण कैसे होता है ?

सूर्य किरण की वजह से बनने वाली पृथ्वी की छाया छेत्र को दो भागों में बांटा गया है, उपच्छाया (Penumbra) और आंतरिक छाया (Umbra)। प्रत्येक चंद्र ग्रहण पृथ्वी की छाया का बाहरी भाग, उपच्छाया चरण के साथ शुरू और समाप्त होता है। यह वह जगह है जहां चंद्रमा प्रकाश से होकर गुजरता है।


उपच्छाया से होते हुए चंद्रमा पृथ्वी के अंधेरे, आंतरिक छाया अम्ब्रासे गुजरता है, जिससे आंशिक या पूर्ण चंद्र ग्रहण का निर्माण करता है। लेकिन कभी-कभी, चंद्रमा उम्ब्रा तक नहीं पहुंचता है, और चंद्रग्रहण उपच्छाया छेत्र में ही समाप्त हो जाती है। इन घटनाओं को उपच्छाया (Penumbra)  ग्रहण कहा जाता है।





4/29/2023

सबसे पुराना / प्रचीन हिन्दू मंदिर कौन सा है ? Oldest Functional Hindu Temple


हिन्दू / सनातन धर्म में मंदिरों का काफी महत्व रहा है। परंतु मुस्लिम एवं अन्य आक्रमणकारियों ने बहुत से मंदिरों को तोड़ दिया जिस वजह से बहुत से प्राचीन मंदिरों का अस्तित्व ही खत्म हो गया या उनका पुनः निर्माण किया गया है। जिस वजह से यह पता लगाना मुश्किल है कि भारत का सबसे प्राचीन मंदिर कौन सा रहा होगा। 


वर्तमान में स्थित प्राचीन मंदिरों की बात करें तो पुरातात्विक सबूतों के आधार पर भारत एवं सम्पूर्ण विश्व में मुंडेश्वरी देवी ( Mundeshwari Devi Temple) का मंदिर सबसे प्राचीन हिन्दू मंदिर माना जाता है जिसका निर्माण 108 ईस्वी में हुआ था। निर्माण के बाद से ही इस मंदिर में पूजा हो रही है जिस वजह से मुंडेश्वरी देवी मंदिर को भारत का सबसे पुराना कार्यात्मक मंदिर (oldest Functional Temple) माना जाता है।


मुंडेश्वरी देवी का मंदिर बिहार के कैमूर जिले के भगवानपुर में पवरा पहाड़ी पर 608 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। इसकी स्थापना 108 ईस्वी में कुषाण शासक हुविश्‍क के शासनकाल में हुई थी। यह शिव और पार्वती को समर्पित मंदिर है। मंदिर के मध्य भाग में चार मुख वाली शिवलिंग स्थापित है। यह मंदिर अपने अष्टकोणीय बनावट के लिए जानी जाती है।


7 वीं शताब्दी के बाद शक्तिशाली आदिवासी जनजाति और कैमूर पहाड़ियों के मूल निवासी चेर सत्ता में आए। चेर शक्ति के उपासक थे, जिसे महेशमर्दिनी और दुर्गा के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने मंदिर में मुंडेश्वरी को मंदिर स्थापित किया। हालाँकि, मुख्य लिंग मंदिर में केंद्र स्थित था; इसलिए, दुर्गा की मूर्ति को मंदिर की एक दीवार के साथ स्थापित किया गया था, जहां वह आज भी स्थित है। इस वजह से शिव को समर्पित मंदिर मुंडेश्वरी देवी के नाम से जानी जाती है।


यहां पहाड़ी के मलबे के अंदर गणेश और शिव सहित अनेक देवी-देवताओं की मूर्तियां भी पाई गई। यहां खुदाई के क्रम में मंदिरों के समूह भी मिले हैं। यहां से प्राप्त अन्य मंदिरों को पटना संग्रहालय में रखा गया है।