8/30/2017

स्थानीय प्रशासन ( पंचायती राज ) Panchayati Raj


पंचायती राज महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज के स्वप्न को वास्तविकता में बदलने की दिशा में कदम बढ़ाया गया था।
पंचायती राज व्यवस्था में ग्राम, तालुका और जिला आते हैं। भारत में प्राचीन काल से ही पंचायती राज व्यवस्था आस्तित्व में रही हैं। आधुनिक भारत में प्रथम बार तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा राजस्थान के नागौर जिले के बगदरी गाँव में 2 अक्टूबर 1959 को पंचायती राज व्यवस्थ लागू की गई।

पंचायती राज को संवैधानिक दर्जा दिलाने के लिए संविधान ( 73 वां संविधान संशोधन ) अधिनियम 1992 पारित किया गया जो 24 अप्रैल, 1993 को लागू हुआ। इस संसोधन के अनुसार संविधान में भाग-9 जोड़ा गया और अनुच्छेद 243 से 243-ण तक ग्राम पंचायतों से संबंधित प्रावधान किए गए।

संवैधानिक प्रवधान:
भारतीय संविधान के नीति निर्देशक तत्व के अनुच्छेद 40 में राज्यों को पंचायतों के गठन का निर्देश दिया गया है। पंचायत, एक राज्य सूची का विषय है।
पंचायती राज को संवैधानिक स्तिथि प्रदान करने की सिफारिश एल.एम.सिंघवी समिति ने की।
नियमित चुनाव की सिफारिश सरकारिया आयोग ने की।
त्रिस्तरीय पंचायत की सिफारिश बलवंत मेहता समिति। दो स्तरीय - अशोक मेहता समिति।
73वें संविधान संशोधन 1992 द्वारा पंचायती राज अधिनियम लागू हुआ। इस संसोधन से पंचायती राज संस्था को संवैधानिक मान्यता दी गयी हैं। नगर पालिकाओं के संबंध में 74 वें संसोधन 1993।
भाग 9 में कुल 16 अनुच्छेद तथा 11वी अनुसूची में कुल 29 विषय समाहित है।

73वें संविधान संशोधन के प्रमुख अनुच्छेद:
अनुच्छेद 243 - परिभाषा।
243 क - ग्राम सभा
ख - ग्राम पंचायत का गठन
ग - पंचायतो की संरचना
घ - पंचायत में आरक्षण
ङ - कार्यकाल
च - निरर्हता
छ - पंचायत की शक्तियां, प्राधिकार एवं उत्तरदायित्व।
ज - कर लगाने की शक्ति
झ - वित्त आयोग का गठन
ञ - संपरीक्षा
ट - निर्वाचन, निर्वाचन आयोग का गठन
ठ - न्यायालय का हस्तक्षेप वर्जित।

राज्यपाल ग्राम सभा का गठन करेगा और इस ग्राम सभा को ग्राम पंचायत के अधीन किसी भी समिति की जाँच करने का अधिकार है।
73 वें संविधान संसोधन के बाद मध्यप्रदेश पंचायत चुनाव कराने वाला पहला राज्य था। छत्तीसगढ़ में अविभाजित मध्यप्रदेश में 2000 तक हुए संसोधनों के साथ 18/06/2001 को यथावत लागू किया गया। छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद 3 संसोधन हो चुके है।

पंचायती राज पर एक नजर
24 अप्रैल 1993 भारत में पंचायती राज के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मार्गचिन्ह था क्योंकि इसी दिन संविधान (73वां संशोधन) अधिनियम, 1992 के माध्यम से पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा हासिल कराया गया।
एक ग्राम पंचायत निर्वाचित पांच तथा पंचो से मिलकर बनता है।
एक त्रि-स्तरीय ढांचे की स्थापना (ग्राम पंचायत, पंचायत समिति या मध्यवर्ती पंचायत तथा जिला पंचायत) परन्तु 20 लाख से कम जनसंख्या वाले राज्यो में मध्यवर्ती पंचायत का गठन नही किया जाता है।

दो स्तरीय पंचायत : गोवा, सिक्किम।
चार स्तरीय : असम, त्रिपुरा।

हर पांच साल में पंचायतों के नियमित चुनाव।पंचायत चुनाव कराने का निर्णय राज्य सरकार लेती है। पंचायत चुनाव राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा कराया जाता है। अनु. 243 (ट)।
अनुसूचित जातियों/जनजातियों के लिए उनकी जनसंख्या के अनुपात में सीटों के आरक्षण का प्रावधान है।
महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटों का आरक्षण है।
पंचायतों की निधियों में सुधार के लिए उपाय सुझाने हेतु राज्य वित्ता आयोगों का गठन किया जाता है।
73वां संशोधन अधिनियम पंचायतों को स्वशासन की संस्थाओं के रूप में काम करने हेतु आवश्यक शक्तियां और अधिकार प्रदान करने के लिए राज्य सरकार को अधिकार प्रदान करता है। ये शक्तियां और अधिकार इस प्रकार हो सकते हैं।
संविधान की गयारहवीं अनुसूची में सूचीबध्द 29 विषयों के संबंध में आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के लिए योजनाएं तैयार करना और उनका निष्पादन करना।
कर, डयूटीज, टॉल, शुल्क आदि लगाने और उसे वसूल करने का पंचायतों को अधिकार।
राज्यों द्वारा एकत्र करों, डयूटियों, टॉल और शुल्कों का पंचायतों को हस्तांतरण।

ग्राम सभा:
ग्राम सभा किसी एक गांव या पंचायत का चुनाव करने वाले गांवों के समूह की मतदाता सूची में शामिल व्यक्तियों से मिलकर बनी संस्था है।
गतिशील और प्रबुध्द ग्राम सभा पंचायती राज की सफलता के केंद्र में होती है। राज्य सरकारों से आग्रह किया गया है कि वे:-
पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम, 1996 में उल्लिखित प्रावधानों के अनुसार ग्राम सभा को शक्तियां प्रदान करें।
गणतंत्र दिवस, श्रम दिवस, स्वतंत्रता दिवस और गांधी जयंती के अवसर पर देश भर में ग्राम सभा की बैठकों के आयोजन के लिए पंचायती राज कानून में अनिवार्य प्रावधान शामिल करना।
पंचायती राज अधिनियम में ऐसा अनिवार्य प्रावधान जोड़ना जो विशेषकर ग्राम सभा की बैठकों के कोरम, सामान्य बैठकों और विशेष बैठकों तथा कोरम पूरा न हो पाने के कारण फिर से बैठक के आयोजन के संबंध में हो।
ग्राम सभा के सदस्यों को उनके अधिकारों और शक्तियों से अवगत कराना ताकि जन भागीदारी सुनिश्चित हो और विशेषकर महिलाओं तथा अनुसूचित जाति/जनजाति के लोगों जैसे सीमांतीकृत समूह भाग ले सकें।
ग्राम सभा के लिए ऐसी कार्य-प्रक्रियाएं बनाना जिनके द्वारा वह ग्राम विकास मंत्रालय के लाभार्थी-उन्मुख विकास कार्यक्रमों का असरकारी ढंग़ से सामाजिक ऑडिट सुनिश्चित कर सके तथा वित्तीय कुप्रबंधन के लिए वसूली या सजा देने के कानूनी अधिकार उसे प्राप्त हो सकें।
ग्राम सभा बैठकों के संबंध में व्यापक प्रसार के लिए कार्य-योजना बनाना।
ग्राम सभा की बैठकों के आयोजन के लिए मार्ग-निर्देश/कार्य-प्रक्रियाएं तैयार करना।
प्राकृतिक संसाधनों, भूमि रिकार्डों पर नियंत्रण और समस्या-समाधान के संबंध में ग्राम सभा के अधिकारों को लेकर जागरूकता पैदा करना।

73वां संविधान संशोधन अधिनियम ग्राम स्तर पर स्व-शासन की संस्थाओं के रूप में ऐसी सशक्त पंचायतों की परिकल्पना करता है जो निम्न कार्य करने में सक्षम हो:
ग्राम स्तर पर जन विकास कार्यों और उनके रख-रखाव की योजना बनाना और उन्हें पूरा करना।
73वें संविधान संशोधन में जमीनी स्तर पर जन संसद के रूप में ऐसी सशक्त ग्राम सभा की परिकल्पना की गई है जिसके प्रति ग्राम पंचायत जवाबदेह हो।