1/20/2020

पावन खिंड का युद्ध Battle of Pavan Khind

पावन खिंड / घोड़ खिंडी (खिन्ड - खाई) का युद्ध मराठा नरवीर बाजीप्रभू देशपांडे जी के नेतृत्व में 300 सैनिको और सिद्दी मसूद/जौहर (आदिलशही फौज) के नेतृत्व में 10000 सैनिको के मध्य 13 जुलाई, 1660 को हुआ था। यह युध्द महाराष्ट्र के विशालगढ़ के पास घोड़ खिंडी नाम के खाई में लड़ा गया था, इस युद्ध के बाद इस खाई को पावनखिंड के नाम से जाना जने लगा।


कारण:
28 दिसंबर, 1659 को कोल्हापुर युद्ध में आदिलशाही सेना को शिवाजी से हार का सामना करना पड़ा। जिससे आहत बीजापुर के सुल्तान ने सिद्धि जौहर और फजल खां के नेतृत्व में सेना भेजी। 15 हजार कि विशाल सेना के साथ सिद्धि जौहर ने 2 मार्च 1660 को छत्रपति शिवाजी महाराज को पन्हाला किले में घेर लिया। किला काफी विशाल होने कि वजह से 4 महिनो मे भी आदिलशाही फौज को कामयबी नहीं मिलने कि वजह से उन्होने पवनगढ़ किले पर कब्जा करने का सोचा जिसके लिये पास कि पहाड़ी पर कब्जा कर आदिलशाही फौज ने पवनगढ़ किले पर गोलाबारी सुरु कर दी। 
अगर पवनगढ़ किले पर कब्जा हो जाता तो आदिलशाही फौज के लिये पन्हाला किले पर कब्जा करना आसान हो जाता इस लिये शिवाजी ने 13 जुलाई 1660 कि रत्रि को पन्हाला किले से निकल कर करीब 700 सैनिको के साथ विशालगढ़ जाने का निश्चय किया जिसके लिये रास्ते में पवनगढ़ मे कब्जा कर बैठे आदिलशाही फौज फौज पर हमला कर दिया। आदिलशाही फौज पर यह हमला अचानक हुआ जिस वजह से अफरा तफरी मच गई। इस अफरा तफरी का फायदा उठा कर शिवाजी विशालगढ़ कि तरफ निकल गये, जो करीब 60 किलोमीटर दूर था। दुश्मनो को इसका पता चल और शिवाजी के पिछे 10000 की सेना भेज दी।
शिवाजी का विशालगढ़ पहुचना अवश्यक था, इस लिये बाजीप्रभू ने विनति कर 300 सैनिको के साथ घोड़ खिंडी पर रुक गाये और शिवाजी को विशालगढ़ पहुच कर तोप से गोला दागने को कहा। 

युद्ध:
बाजीप्रभू और उनके 300 सैनिक घोड़ खिंडी मे 10000 आदिलशाही सेना का इंंतजार करने लगी।
विपक्षी सेना की पहली टुकड़ी दर्रे के नीचे आ खड़ी हुई। मराठाओं की तादात बहुत कम थी। मराठा सैनिको ने पुरी ताकत से नीचे से उपर आती सिद्दी जौहर की सेना पर भीषण हमला किया। 
बाजीप्रभू और उनके 300 सैनिक तब तक लड़ते रहे जब तक विशालगढ़ से तोप की आवाज नही आ गाई। 10000 की आदिलशाही सेना को फांद नही पाई। यह युद्ध करीब 5 घण्टो तक चला जिसमे 3000 से ज्यादा आदिलशाही सेना को 300 मराठाओं ने मौत के घाट उतार दिया। बाजीप्रभू जी अपनी अन्तिम साँस तक लड़ते रहें और 14 जुलाई को विशालगढ़ से तोप की आवाज आने के बाद किले कि तरफ देख कर अपना अन्तिम प्रणाम किया।
इस युद्ध से मरठा सैनिको ने शिवाजी को विशालगढ़ पहुचाने के उददेश्य की पूर्ति की। शिवाजी ने इस बलिदान को पूजते हुये दर्रे का नाम घोडखिंडी से पावन खिंडी कर दिया।