भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद आजादी की लडाई के दौरान क्रांतिकारी की भूमिका में काम कर रहे थे, उस दौरान अंग्रेज पुलिस उन्हें तलाश रही थी और वे उनसे बचने के लिए सरगुजा के इस इलाके में पंडो आदिवासियों के गांव में आकर छिपे थे। गांव में करीब दो साल रहे और इस दौरान एक शिक्षक के रूप में कार्य किया।
राष्ट्रपति बनने के बाद डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का छत्तीसगढ़ आगमन वर्ष 1952 में हुआ। छत्तीसगढ आने पर उन्होंने सरगुजा में उन्हीं आदिवासियों के बीच जाकर कुछ समय रहने की इच्छा जाहिर की। 22 नवंबर, 1952 को वे तत्कालीन सरगुजा महाराजा रामानुजशरण सिंहदेव के साथ पण्डो ( पण्डो ग्राम पंचायत ) पहुंचे। यहां राष्ट्रपति के प्रवास के लिए यह भवन तैयार किया गया था। इसी भवन में डॉ राजेन्द्र प्रसाद रहे और पंडो व कोरवा जनजाति के आदिवासियों को अपना दत्तक पुत्र घोषित किया।
इस भवन को "राष्ट्रपति भवन" नाम दिया गया है।
Source : नईदुनिया