अकबर का जन्म राजपूत शासक राणा अमरसाल के महल उमेरकोट, सिंध (वर्तमान पाकिस्तान) में नवंबर, 1542 को हुआ था। यहां बादशाह हुमायुं अपनी हाल की विवाहिता बेगम हमीदा बानो बेगम के साथ शरण लिये हुए थे। बाबर का वंशज तैमूर लंग के खानदान से थे और मातृपक्ष का संबंध चंगेज खां से था।
पानीपत का द्वितीय युद्ध में अकबर की सेना ने 5 नवम्बर, 1556 को हेमचंद्र विक्रमादित्य (लोकप्रिय नाम- हेमू) को पराजित किया। अकबर के सेनापति खान जमान और बैरम खान के लिए यह एक निर्णायक जीत थी। इस युद्ध के फलस्वरूप दिल्ली पर वर्चस्व के लिए मुगलों और अफगानों के बीच यह एक निर्णायक युद्ध था।
अकबर के नौ रत्न
राजा बीरबल
इन्होनें अकबर के दरबार में प्रमुख विदूषक की भूमिका निभाई थी. इनका असली नाम महेशदास था और राजा बीरबल नाम अकबर द्वारा दिया गया था. उन्होंने अकबर के लिए सैन्य और प्रशासनिक सेवाएं भी दी थीं. उत्तर पश्चिमी भारत में अफगानी कबीलों के बीच व्याप्त अशांति को समाप्त करने के लिए किये गए युद्ध में उनकी मृत्यु हो गई थी।
मियां तानसेन
इनका असली नाम तन्ना मिश्रा था. वह शुरू में स्वामी हरिदास के शिष्य था और बाद में इन्होनें हजरत मुहम्मद गौस से संगीत सीखा था. यह अकबर के दरबार में एक प्रमुख संगीतकार थे।
अबुल फजल
यह अकबरनामा और आईने अकबरी के लेखक थे।
फैजी
यह एक प्रसिद्ध कवि थे और अबुल फजल के भाई था।
राजा मान सिंह
ये अकबर की सेना में एक सेनापति थे और अकबर के ससुर भारमल के पौत्र थे।
राजा टोडर मल
राजा टोडरमल अकबर के वित्त मंत्री थे. ये अकबर के सम्पूर्ण राज्य की राजस्व प्रणाली में सुधर के लिए जिम्मेदार थे।
मुल्ला दो प्याजा
इसने अकबर के लिए एक सलाहकार के रूप में काम किया।
फकीर अज़ुद्दीन
यह एक सूफी फकीर और अकबर के एक प्रमुख सलाहकार थे।
अब्दुल रहीम खान-ए-खाना
वह अकबर के शिक्षक और मुगल सेना के एक विश्वसनीय जनरल बैरम खान का पुत्र था. वह अपने ग़ज़ल और दोहों के लिए मशहूर था।
शासन व्यव्स्था
अकबर के शासन काल में सम्पुर्ण राज्य को 15 सुबो में विभक्त किया गया था। सुबो को सरकार(जिला), परगना(तहसील) तथा गांवो में विभक्त किया था।
सूबा/प्रांतीय प्रशासन:
सिपासालार - यह कार्यकारी मुखिया हुआ करता था।
दीवान - यह राजस्व विभाग का मुखिया था।
बख्शी - यह सैन्य विभाग का मुखिया था।
सरकार/जिला प्रशासन:
फौजदार - प्रशासनिक मुखिया
अमल/अमलगुजार - राजस्व वसूलने वाला।
कोतवाल - कानून व्यवस्था को संभालने वाला।
परगना/तहसील प्रशासनः
शिकदार - कानून व्यवस्था को संभालने वाला।
आमिल/कानूनगो - राजस्व वसूलने वाला।
ग्राम प्रशासन:
- मुकद्दम - ग्राम प्रधान
- पटवारी - लेखपाल।
- चौकीदार
मनसबदारी फारसी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है - पद । इसके दो भाग है, जात और सवार। इस व्यवस्था के अंतर्गत प्रत्येक अधिकारी को एक पद (मनसब/जात) दे दिया जाता है, जिसके अधीन निश्चित मात्रा में सवार (घुड़सवार एवं कुशल सैनिक) होते थे। मुग़लकाल में मनसबदारी व्यवस्था शुरू करने का श्रेय अकबर को जाता है। यह व्यवस्था मध्य एशिया और मंगोलो से प्रेरित था। मनसबदारो की नियुक्ति सैन्य विभाग का सर्वोच्च अधिकारी मीर बख्शी के द्वारा की जाती थी।
भू-राजस्व सुधारः
अकबर ने राजस्व प्रशासन की योजना तैयार करने के लिए राजा टोडरमल को 1582 में शाही दीवान नियुक्त किया। टोडरमल ने आइने-दहशला (10 वर्षीय सुधार) प्रणाली विकसित की थी। इसमें पिछले 10 वर्षों के उत्पादन तथा उत्पादन मूल्य के आंकलन के आधार पर 1/3 राजस्व निर्धारित किया जाता था। सामान्यतः यह आंकलन फसलो के रुप में होता था तथा वसूली नकदी रुप में होती थी।
- कानूनगो - यह एक राजस्व अधिकारी होता था, जो राजस्व संबंधी आंकड़े एकत्रित करना था।
- करोड़ी - यह एक करोड़ दाम (2.5 लाख रुपय अर्थात् 1 रुपया = 40 दाम) के बराबर राजस्व की वसूली करने वाला अधिकारी था।
उत्पादकता के आधार पर कृषि भूमि को 4 भागों में बांटा गया था :
पोलज - प्रतिवर्ष खेती होती थी।
परती - एक वर्ष के अंतराल पर खेती होती थी।
चाचर - 3-4 वर्षों के अंतराल पर खेती होती थी।
बंजर - 5 या इससे अधिक वर्षों तक जोता-बोया नहीं जाता था।
सैन्य अभियान
1. 1561 - यह अभियान मालवा का अभियान था। इस समय यहां का शासक बाजबहादुर था। तथा मुगल सेना का नेतृत्व आधम खाँ, पीर मुहम्मद अब्दुल्लाखाँ उजबेग थे। इस अभियान में बाजबहादुर की पराजय हुई थी।
2. 1561 - यह चुनार का अभियान था। मुगल सेना का नेतृत्व आसफ खाँ कर रहा था।
3. 1564 - यह गोंडवाना का अभियान था मुगल सेना का नेतृत्व आसफ खाँ ने किया तथा वीर नारायण को हराया । वीर नारायण की संरक्षिका दुर्गावती थी।
4. 1562-1570 - राजपूतो के विरुद्ध
- आमेर ( 1562ई.)- यहां के शासक भारमल ने स्वेच्छा से ही अधीनता स्वीकार कर ली थी,
- मेङता (1562 ई.)- यहां पर मेवाङ के अधीन जागीरदार जयमल था, जिसको मुगल सेनापति सरफुद्दीन ने अपने हराया था।,
- मेवाङ (1568ई.)- यह अभियान का नेतृत्व स्वयं अकबर ने किया था। इस समय यहाँ का शासक उदय सिंह था।,
- हल्दीघाटी का युद्ध ( 1576 ई.)- इस अभियान का नेतृत्व राणा महाराणा प्रताप के विरुद्ध आसफ खाँ और मानसिंह ने किया था।,
- रणथंभौर (1569ई. ) - यह अभियान राजा सुरजनराय हाङा के विरुद्ध अकबर तथा सेनापति भगवानदास ने किया था।,
- कालिंजर ( 1569ई.) - यह अभियान मुगल सेनापति मजनू खाँ ने कालिंजर के शासक रामचंद्र के विरुद्ध था।,
- 1570ई. - मारवाङ के शासक चंद्रसेन(मालदेव के पुत्र), जैसलमेर के शासक हरराय और बीकानेर के शासक राय कल्याणमल ने अकबर की अधीनता स्वेच्छा से स्वीकार कर ली थी।
5. 1571 - यह गुजरात का अभियान था , इस समय यहाँ का शासक मुजफ्फरखाँ तृतीय था। इस अभियान का नेतृत्व मुगल सेनापति खाने आजम(मिर्जा अजीज कोका) ने किया था। इसके बाद गुजरात पर दूसरा अभियान 1572ई. में मिर्जा हुसैन मिर्जा के विरुद्ध स्वयं अकबर ने किया था।
6. 1574-76 - यह अभियान बंगाल एवं बिहार के शासक दाउद खाँ के विरुद्ध मुगल सेनापति मुनीम खाँ ने किया था।
अकबर के निर्माण कार्य
आगरा किला
मुगल बादशाह अकबर ने 1565 में करवाया था। इस किले को बनने में करीब 8 साल लगे थे। वर्ष 1638 तक आगरा मुगलों की राजधानी थी, और आगरा का भव्य किला अकबर का निवास स्थल।
बुलंद दरवाजा
वर्ष 1601 में गुजरात पर अपनी जीत के बाद अकबर ने बुलंद दरवाजे का निर्माण कराया था।
इलाहबाद किला
इलाहाबाद किला का निर्माण वर्ष 1583 में किया गया था। यह अकबर के द्वारा बनाया गया सबसे बड़ा किला है।
अकबर का मकबरा
सिकंदरा में अकबर के द्वारा 1605 में शुरू करवाया गया था और उनके बेटे जहांगीर ने इसके निर्माण को 1613 में पूरा करवाया।