संविधान के भाग 4 में अनुच्छेद 36-51 तक "राज्य के नीति के निदेशक तत्व" को शामिल किया गया है। संविधान का यह भाग आयरलैण्ड के संविधान से प्रभावित है। इसमें ऐसे अधिकार है जिन्हे तत्काल देना संभव नहीं था, उन अधिकारों को बी.एन.राव की सलाह पर नीति-निदेशक तत्वों की श्रेणी में रख दिया गया ताकि जब सरकारें सक्षम हो जाएंगी तब धीरे-धीरे इन उपबंधों को लागू करेंगी।
42 वें संविधान संशोधन 1976 में माध्यम से नीति-निदेशक तत्वों में अनुच्छेद 39क, 43क, तथा 48क को अन्त:स्थपित किया गया ।
प्रमुख अनुच्छेद
अनुच्छेद-36: परिभाषा – नीति-निदेशक तत्वों के संदर्भ में ‘राज्य‘ की परिभाषा है। इसमें भी राज्य का वही अर्थ है जो भाग 3 में है।
अनुच्छेद-37: इस भाग में दिये गए तत्वों का न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय न होते हुए भी देश के शासन में मूलभूत माना गया है तथा विधि बनाने में इन सिद्धांतों को लागू करना राज्य का कर्तव्य होगा।
अनुच्छेद-38: राज्य लोक-कल्याण की अभिवृद्धि के लिये सामाजिक व्यवस्था बनाएगा।
अनुच्छेद-38(1): राज्य लोक-कल्याण की अभिवृद्धि के लिये सामाजिक व्यवस्था बनाएगा ताकि सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय हो सके।
अनुच्छेद-38(2): आय, प्रतिष्ठा, सुविधाओं तथा अवसरों की असमानताओं को समाप्त करने का प्रयास करना।
अनुच्छेद-39: राज्य द्वारा अनुसरणीय कुछ नीति-निदेशक तत्व
पुरूषों व स्त्रियों को आजीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त करने का अधिकार।
समाज में भौतिक संसाधनों के स्वामित्व का उचित वितरण।
अर्थव्यवस्था में धन तथा उत्पादन के साधनों के अहितकारी केन्द्रीकरण का निषेध।
पुरूषों व स्त्रियों के लिये समान कार्य के लिये समान वेतन।
पुरूषों व स्त्री श्रमिकों तथा बच्चों को मजबूरी में आयु या शक्ति की दृष्टि से प्रतिकूल रोज़गार में जाने से बचाना।
बच्चों को स्वतंत्र और गरिमा के साथ विकास का अवसर प्रदान करना और शोषण से बचना।
अनुच्छेद-39क: समान न्याय और नि:शुल्क विधिक सहायता
राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि विधि तंत्र इस प्रकार काम करे कि समान अवसर के आधार पर न्याय सुलभ हो तथा अर्थिक या किसी भी अन्य आधार पर नागरिक न्याय प्राप्त करने से वंचित न रह जाऍं। यह विधिक सहायता नि:शुल्क होगी।
अनुच्छेद-40: ग्राम पंचायतों का गठन
राज्य ग्राम पंचायतों का गठन करने के लिये कदम उठाएगा और उनको ऐसी शक्तियॉ और प्राधिकार प्रदान करेगा जो उन्हे स्वायत्ता शासन की इकाइयों के रूप में कार्य करने योग्य बनाने के लिये आवश्यक हों।
अनुच्छेद 41: कुछ दशाओं में काम, शिक्षा और लोक सहायता पाने का अधिकार।
अनुच्छेद 42: काम की न्याय संगत और मानवोचित दशाओं का तथा प्रसूति सहायता का उपबंध।
अनुच्छेद 43: कर्मकारों के लिये निर्बाह मजदूरी , शिष्ट जीवन स्तर व अवकाश की व्यवस्था करना , और कुटीर उद्धोगों को प्रोत्साहित करना।
- क: उद्योगों के प्रबंधन में कर्मकारों के भाग लेने के लिये उपयुक्त विधान बनाना।
- ख: सहकारी समिमियों का उन्नयन, सहकारी समितियों के स्वैच्छिक गठन, स्वायत्त प्रचालन , लोकतंत्रिक नियंत्रण तथा पेशेवर प्रबंधन को प्रोत्साहित करना ।
अनुच्छेद 44: नागरिकों के लिये एक समान सिविल संहिता लागू करने का प्रयास करना। (Uniform Civil Code)
नोट:- भारत में ‘गोवा’ एक अकेला राज्य है जहॉं समान नागरिक संहिता लागू है।
अनुच्छेद 45: शिशुओं की देखभाल तथा 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को शिक्षा देने का प्रयास करना।
अनुच्छेद 46: अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य दुर्बल वर्गो के शिक्षा और अर्थ संबंधी हितों की अभिवृद्धि करना और हर तरह के शोषण व सामाजिक अन्याय से उनकी रक्षा करना।
अनुच्छेद 47: लोगों के पोषहार स्तर और जीवन स्तर को उॅचा करने तथा लोक स्वास्थ्य के सुधार करने को प्राथमिक कर्तव्य मानना तथा मादक पेयों व हानिकारक नशीले पदार्थों के सेवन का प्रतिषेध करने का प्रयास करना।
अनुच्छेद 48: कृषि और पशुपालन का संगठन
कृषि तथा पशुपालन का संगठन आधुनिक-वैज्ञानिक प्रणालियों के अनुसार करना तथा गाय-बछडों व अन्य दुधारू या वाहक पशुओं की नस्लों का परिरक्षण और सुधार करना व उनके वध का प्रतिषेध करने के लिये कदम उठाना।
अनुच्छेद 48क: पर्यावरण के संरक्षण व संवर्द्धन तथा वन व वन्य जीवों की रक्षा का प्रयास करना।
अनुच्छेद 49: राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों, स्थानों और वस्तुओं का संरक्षण करना।
अनुच्छेद 50: कार्यपालिका से न्यायपालिका का पृथक्करण
अनुच्छेद 51: अन्तर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा की अभिवृद्धि।