9/11/2022

हीरालाल काव्योपाध्याय - छत्तीसगढ़ी व्याकरण के रचयिता - Hiralal Kavyopadhyay

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हीरालाल काव्योपाध्याय जी का जन्म वर्ष 1856 को वर्तमान छत्तीसगढ़ के राखी (भाठागांव), तहसील कुरुद, जिला धमतरी में हुआ था। हीरालाल जी के पिता श्री बालाराम और माता श्रीमती राधाबाई थे। वे उर्दू, उड़िया, बंगाली, मराठी, गुजराती आदि भाषा के ज्ञाता थे। हीरालाल काव्योपाध्याय को उनके द्वारा लिखे गए प्रथम छत्तीसगढ़ी व्याकरण के लिए जाना जाता है।


शिक्षा एवं जीवन :

प्राथमिक शिक्षा रायपुर से एवं मेट्रिक की शिक्षा वर्ष 1874 में जबलपुर से उत्तीर्ण की। वर्ष 1875 में, मात्र 19 वर्ष कि अवस्था में जिला स्कूल में सहायक शिक्षक नियुक्त हुए। उन्होंने धमतरी के एंग्लो वर्नाकुलर टाऊन स्कूल में हेडमास्टर का कार्यभार भी सम्हाला। इसके अलावा वे धमतरी नगरपालिका एवं डिस्पेंसरी कमेटी के अध्यक्ष भी रहे थे।


रचना एवं सम्मान :

वर्ष 1881 में उनकी प्रथम रचना "शाला गीत चन्द्रिका" को लखनऊ के नवल किशोर प्रेस ने प्रकाशित किया था। इस रचना के लिए बंगाल के राजा सौरेन्द्र मोहन टैगोर ने उन्हें सम्मानित किया। 11 सितंबर, 1884 को राजा सौरेन्द्र मोहन टैगोर ने उनकी रचना "दुर्गायन" के लिए स्वर्ण पदक देकर उन्हें सम्मानित किया। इस रचना के लिए बंगाल संगीत अकादमी के द्वारा उन्हें काव्योपाध्याय की उपाधि से विभूषित किया गया। उनके 'बालोपयोगी गीत' के लिए भी बंगाल संगीत अकादमी ने पुरस्कृत किया। वर्ष 1885 में उन्होंने अपनी सातवीं एवं अंतिम रचना "छत्तीसगढ़ी व्याकरण" को प्रकाशित किया। जॉर्ज ग्रियर्सन ने जर्नल ऑफ एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल में इसको प्रकाशित कराया। इस रचना को पं.लोचन प्रसाद पाण्डेय ने मध्यप्रदेश शासन में प्रकाशित करवाया।


मृत्यु :

अक्टूबर 1890 को उनका उनकी मृत्यु 34 वर्ष की अल्प आयु में हो गयी।


प्रमुख रचनाएं -

  •  शाला गीत चन्द्रिका
  •  दुर्गायन
  •  बालोपयोगी गीत
  •  रॉयल रीडर भाग 1 (अंग्रेजी में)
  •  रॉयल रीडर भाग 2 (अंग्रेजी में)
  •  गीत रसिक

 छत्तीसगढ़ी व्याकरण