डॉ नारायण भास्कर खरे एक भारतीय राजनीतिज्ञ एवं स्वतंत्रता सेनानी थे। अगस्त 1937 में मध्य प्रांत और बरार (वर्तमान मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र ) के प्रथम निर्वाचित सरकार के प्रीमियर या मुख्यमंत्री थे। इनका जन्म 19 मार्च, 1884 को महाराष्ट्र के पनवेल में हुआ था।
शिक्षा :
नारायण भास्कर खरे ने अपनी शिक्षा मराठा हाई स्कूल, बॉम्बे और गवर्नमेंट कॉलेज से प्राप्त की। बाद में वे मेडिकल कॉलेज लाहौर से वर्ष 1907 में चिकित्सा में अपनी डिग्री हासिल की और पहली रैंक हासिल की और पदक जीता। वर्ष 1913 में, वह पंजाब विश्वविद्यालय के पहले एम.डी. बने।
राजनीति :
डॉ. खरे की राजनीति की सुरुआत वर्ष 1916 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़ने के बाद सुरु हुई। वे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य भी थे। उन्होंने केंद्रीय प्रांतीय कांग्रेस कमेटी एवं हरिजन सेवक संघ, नागपुर के अध्यक्ष के रूप में कार्य भी किया।
डॉ. खरे दूसरी (1923 से 1926) और तीसरी (1927 से 1930) विधान परिषद के सदस्य चुने गए थे। राष्ट्रीय आंदोलन की वजह से लाहौर विधान परिषद से इस्तीफा दे दिया और सविनय अवज्ञा आंदोलन (वर्ष 1930) में भाग लेने के कारण उन्हें जेल में डाल दिया गया। वर्ष 1935 से 1937 तक वे विधान सभा के सदस्य थे जहाँ उन्होंने आर्य विवाह सत्यापन विधेयक की शुरुआत की।
वर्ष 1926 में उन्होंने मराठी पत्रिका "तरुण भारत" का प्रकाशन किया जो कांग्रेस के विचार को प्रसारित करती थी।
प्रथम निर्वाचित मुख्यमंत्री :
भारत सरकार अधिनियम 1935 के अधिनियमन के बाद, वर्ष 1937 में ब्रिटिश भारतीय प्रांतों के लिए चुनाव हुए जब खरे को नवगठित केंद्रीय प्रांतों और बरार विधान सभा के सदस्य के रूप में चुना गया। नारायण भास्कर खरे मध्य प्रांत और बरार के पहले निर्वाचित मुख्यमंत्री चुने गए। उन्होंने14 जुलाई 1937 से 29 जुलाई 1938 तक मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया।
वर्ष 1938 में अनुशासनात्मक कार्रवाई की गई। कांग्रेस विधान सभा के सदस्यों ने 26 जुलाई को वर्धा में कांग्रेस अध्यक्ष सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में बुलाई गई बैठक में पंडित रविशंकर शुक्ला को नेता चुन लिया।
कांग्रेस से निकलने के बाद :
वाइसराय ने वर्ष 1943 से 1946 तक उन्हें अपनी एक्जिक्यूटिव का सदस्य नियुक्त किया। वर्ष 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद, डॉ. खरे को नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे के साथ साजिश का हिस्सा होने के संदेह में दिल्ली में नजरबंद कर दिया गया था।
15 अगस्त, 1949 में वे हिंदू महासभा में शामिल होकर उसके अध्यक्ष बन गए। हिन्दू महासभा सभा की ओर से वे संविधान परिषद तथा 1952 से 1957 तक लोकसभा के सदस्य रहे। वर्ष 1959 में, उन्होंने अपनी आत्मकथा "माई पॉलिटिकल मेमॉयर्स या ऑटोबायोग्राफी" लिखी, जिसमें उन्होंने दावा किया कि उन्होंने अलवर को पाकिस्तान में शामिल होने से बचाया।
अपने जीवन के अंतिम दिनों में वे नागपुर में रहने लगे और 24 मार्च 1970 को उनकी मृत्यु नागपुर में हो गयी।
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