राजा शिव प्रसाद 'सितार-ए-हिन्द' Raja Śivaprasāda or Shivaprasad



राजा शिव प्रसाद का जन्म 3 फरवरी, 1823 में वाराणसी (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। 11 वर्ष की आयु में उनके पिता गोपीचंद की मृत्यु हो गई। उनकी प्रारंभिक शिक्षा उनकी दादी बीबी रतन कौर से हुई। शिवप्रसाद का जन्म एक परमार क्षत्रिय परिवार में हुआ था उन्होंने बाद में जैन धर्म अपना लिया था।

वे प्रारंभिक हिन्दी गद्य साहित्य के निर्माता थे। 19वीं शताब्दी में भारत के कोर्ट कचहरी (प्रशासन) में उर्दू बोली और फ़ारसी लिपि का बोलबाला था और दूसरी तरफ अंग्रेज शासन अपनी अंग्रेजी भाषा को सुव्यवस्थित उसे प्रशासनिक भाषा के रूप में लागू कराने में लगी थी, ऐसे समय में राजा शिव प्रसाद ने आप बोलचाल की भाषा को लिपिबद्ध करने का प्रयास किया। उन्होंने खड़ी बोली और नागरी लिपि का समर्थन किया।


राजा और सितार-ए-हिन्द की उपाधि :

मई 1870 में ब्रिटिश सरकार ने भारत के सबसे ऊंचे सितारे या "सितार-ए-हिंद" और उन्हें मार्च 1874 में  "राजा" की वंशानुगत उपाधि से सम्मानित किया था। यह वंशानुगत उपाधि उनके परिवार को शाहजहां से मिली थी।


पत्रकारिता :

गोविन्द रघुनाथ धत्ते ने वर्ष 1845 में राजा शिव प्रसाद की मदद से ‘बनारस अख़बार’ निकाला था। इसे हिन्दी भाषी क्षेत्र का प्रथम समाचार पत्र माना जा सकता है। देवनागरी लिपि के प्रयोग के बावजूद इस अख़बार में बहुत ज्यादा अरबी और फ़ारसी भाषा के शब्दो का प्रयोग किया गया था। परंतु बनारस से ही वर्ष 1850 में तारा मोहन मैत्रेय के संपादन में ‘सुधाकर’ नामक साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। यह बंगला एवं हिन्दी दोनों भाषाओं में प्रकाशित होता था। भाषा की दृष्टि से समाचार पत्र 'सुधाकर' को हिन्दी प्रदेश का पहला पत्र कहा जा सकता है।


राजा शिव प्रसाद की रचनाएँ :

  1. वामा मनरंजन
  2. आतसियों का कोड़ा
  3. विद्यांकर
  4. राजा भोज का सपना
  5. आलसियों का कोड़ा
  6. वर्णमाला
  7. स्वयंबोध उर्दू
  8. वामा मनरंजन (1886 ई.)
  9. विद्यांकुर
  10. राजा भोज का सपना (1887 ई.)
  11. भूगोलहस्तामलक
  12. इतिहास तिमिर नाशक
  13. गुटका
  14. हिंदी व्याकरण
  15. हिन्दुस्तान के पुराने राजाओं का हाल
  16. मानवधर्मसार
  17. सिक्खों का उदय और अस्त
  18. योगवासिष्ठ के कुछ चुने ङुए शलोक
  19. उपनिषद्सार
  20. बैताल पच्चीसी
  21. सवानेह-उमरी (आत्मकथा)
  22. लिपि सम्बन्धी प्रतिवेदन (1868 ई.)
  23. कबीर टीका
  24. गीतगोविन्दादर्श
  25. बच्चों का इनाम
  26. लड़कों की कहानी


फ़ारसी लिपि के स्थान पर नागरी लिपि का प्रचार : 

फ़ारसी लिपि के स्थान पर नागरी लिपि और हिन्दी भाषा के लिए पहला प्रयास राजा शिव प्रसाद का 1868 ई. में उनके लिपि सम्बन्धी प्रतिवेदन 'मेमोरण्डम कोर्ट कैरेक्टर इन द अपर प्रोविन्स ऑफ़ इंडिया' से आरम्भ हुआ था।

राजा शिवप्रसाद ने कोशिश की कि ज़बान उर्दू ही रहे और वो नागरी लिपि में लिखी जाए। उन्होंने कहा फ़ारसी की सभी ध्वनियाँ देवनागरी में व्यक्त होनी चाहिए। जब उन्हें पता चला कि फ़ारसी की पाँच ध्वनियाँ (क़, ख़, ग़, ज़, फ़) नागरी में नहीं हैं तो उन्होंने अक्षर के नीचे नुक़्ता लगाने का सुझाव दिया जिसके मा’नी हैं ‘बिंदु’, यदि आप अपना पेंसिल बॉल-पेन या स्याही की पेन आदि उठाते हैं, और उसे काग़ज़ के टुकड़े से स्पर्श करते हैं, तो काग़ज़ पर एक निशान बन जाता है जो आपके लिए एक नुक़्ते का तसव्वुर पेश करेगा। और इस प्रकार राजा शिवप्रसाद ने क ख ग ज फ पाँच अरबी-फारसी ध्वनियों के लिए चिह्नों के नीचे नुक्ता लगाने का रिवाज आरंभ किया।

  • क़ (ق) ~ हलक़ + जिह्वामूल
  • ख़ (خ) ~ हलक़ + जिह्वामूल
  • ग़ (غ) ~ हलक़ + जिह्वामूल
  • फ़ (ف) ~ दंतोष्ठ्य से

मृत्यु :
23 मई, 1895