डीलिस्टिंग ( Delisting) बिल क्या है ? जिससे धर्म परिवर्तन करने वाले आदिवासियों को नहीं मिलेगा आरक्षण


जाति/जनजाति के वे व्यक्ति जिन्होंने अपनी परंपराओं का पालन करना छोड़ कर ईसाई या इस्लाम धर्म अपना लिया है और आरक्षण का लाभ ले रहे है। ऐसे व्यक्तियों को आरक्षित जाति वर्ग की सूची से बाहर करने (Delist) के लिए विभिन्न संगठनों और संबंधित जाति वर्ग के लोगो के द्वारा "डीलिस्टिंग (Delisting)" के संबंध में बिल लाने की मांग की जा रही है। 


तो क्या गैर सनातनी (ईसाई/मुस्लिम) आरक्षित वर्ग की सूची में शामिल नहीं हो सकते ?

वर्ष 1950 में अनुसूचित जाति प्रावधान लाया गया था। बाद में वर्ष 1956 में अनुसूचित जाति प्रावधान में डिलिस्टिंग जोड़ दिया गया यानी कोई भी अजा सदस्य अपनी पहचान (हिन्दू) छोड़कर अन्य धर्म मे जाता है तो उसे 341 के सरंक्षण से वंचित होना पड़ता है। इसके बाद मूल आदेश में सिखों और बौद्धों को भी इसमें शामिल किया गया और आदेश को संशोधित किया गया। वर्ष 1990 में केंद्र सरकार ने आदेश को संशोधित कर कहा, "कोई भी व्यक्ति जो हिंदू, सिख या बौद्ध धर्म से अलग धर्म को मानता है, उसको इसका अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं माना जाएगा।"


तो डीलिस्टिंग बिल पहले नही की गई ?

इसका जवाब है, की गई थी। धर्मांतरित लोगों द्वारा आरक्षण का दोहरा लाभ उठाएं जाने का मामला वर्ष 1967-68 में दिवंगत कांग्रेस नेता कार्तिक उरांव ने संसद में उठाया था। उन्होंने डी लिस्टिंग के संबंध में एक निजी विधेयक प्रस्तुत किया था। जिस पर संसद की संयुक्त समिति ने छानबीन कर 17 नवंबर, 1969 को अपनी सिफारिशें दीं। उनमें प्रमुख सिफारिश यह थी कि "कोई भी व्यक्ति, जिसने जनजाति मत तथा विश्वासों का परित्याग कर दिया हो और ईसाई या इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया हो, वह अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं समझा जाएगा।"

16 नवंबर 1970 को इस विधेयक पर लोकसभा में बहस शुरू हुई, परंतु नागालैंड और मेघालय के ईसाई मुख्यमंत्री दबाव बनाने के लिए दिल्ली पहुंचे। मंत्रिमंडल में दो ईसाई राज्यमंत्री थे। उन्होंने भी दबाव बनाया, जिसके चलते 17 नवंबर को सरकार ने एक संशोधन प्रस्तुत किया की संयुक्त समिति की सिफारिशें विधेयक से हटा ली जाय। इसके बाद से इस बिल पर कोई बात नहीं हुई।


फिर इतने वर्षों के बाद मामला कैसे तूल पकड़ रहा है ?

वर्ष 1970 के बाद डी लिस्टिंग की मांग को 2004 में सुप्रीम कोर्ट ने केरल राज्य बनाम केशवानंद भारती के ऐतिहासिक मामले में इसके पक्ष में निर्णय सुनाया। जिसके बाद इस मामले को फिर से बल मिला। वर्ष 2007 में जनजातीय सुरक्षा मंच का गठन होने के बाद जनजातीय समाज इसके लिए नए सिरे से कार्य सुरु हुआ। वर्ष 2009-10 मंच ने करीब 27 लाख लोगों के हस्ताक्षरित पत्र तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल को सौप और डी लिस्टिंग का लागू करने की मांग उनके सामने रखी।


मोदी सरकार ने क्या किया ?

वर्ष 2022 में केंद्र सरकार ने डी लिस्टिंग की मांग को देखते हुए 'ऐतिहासिक' तौर पर अनुसूचित जाति (SC) से संबंधित होने का दावा करने वाले और बाद में जिन्होंने धर्म परिवर्तन कर लिया है, उनके पात्रता की जांच करने के लिए एक आयोग बनाया। 

इस आयोग की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस केजी बालकृष्णन कर रहें है, जो सुप्रीम कोर्ट ने पहले दलित चीफ जस्टिस थे। यह आयोग समय-समय पर SC कैटेगरी में नए लोगों को शामिल करने के लिए जारी प्रेसिडेंशियल ऑर्डर्स की जांच करेगा। आयोग देखेगा संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत जारी प्रेसिडेंशियल ऑर्डर्स के तहत धर्म परिवर्तन करने वालों को भी पुरानी जाति के तहत आरक्षण का लाभ मिल सकता है या नहीं।

इस आयोग में पूर्व चीफ जस्टिस केजी बालकृष्णन के साथ ही रिटायर्ड IAS अधिकारी डॉ. रविंद्र कुमार जैन और UGC मेंबर प्रोफेसर सुषमा यादव को शामिल किया गया है। ये आयोग 2 वर्षो ( वर्ष 2024 में) में अपना रिपोर्ट देगी।