3/22/2023

भगवान झूलेलाल कौन थे ? Who was Lord Jhulela

भगवान झूलेलाल सिन्धी हिन्दुओं के इष्ट देव है। जिन्हें सागर के देवता वरुण देव (जल देवता) का अवतार माना जाता हैं। भगवान झूलेलाल ने मुस्लिम आक्रांताओं से समाज की रक्षा की और सर्वधर्म समभाव की शिक्षा दी थी।


भगवान झूलेलाल का जन्म कब और कहां हुआ था ?

भगवान झूलेलाल जी का जन्म चैत्र शुक्ल 2 संवत 1007 को ठठा नगर, नसरपुर, सिन्ध प्रान्त, वर्तमान पाकिस्तान के अरोड़वंश में हुआ था। उनके माता का नाम देवकी और पिता रतनराय था। भगवान झूलेलाल के जन्मदिवस को चेटीचंड के नाम से नववर्ष के रूप में मनाया जाता है। इस दिन से सिंधी नववर्ष प्रारम्भ होता है।


जन्म से संबंधित मान्यता 

तत्कालीन सिंध प्रांत के मुस्लिम शासक मिरखशाह की सेना के द्वारा बड़े पैमाने पर हिंदू जनता का उत्पीड़न किया जा रहा था और हिंदू जनता को धर्मांतरण कर इस्लाम कबूल करने के लिए मजबूर किया जा रहा था।

जिसके बाद सिंध के हिंदू जनता ने 40 दिनो तक वरुण देवता की आराधना करने का निर्णय कर वरुण देवता की कठोर तपस्या की। तपस्या के पश्चात एक आकाशवाणी हुई। उस आकाशवाणी में यह बताया गया कि भगवान श्री झूलेलाल का जन्म माता देवकी पिता रतन राय के परिवार में होगा। इस आकाशवाणी में कही गई बात को हिंदुओं ने जाकर के मुस्लिम राजा के सामने कहा। इसके साथ ही हिंदुओं ने यह भी कहा कि बादशाह के द्वारा उन्हें सोचने के लिए 7 दिनो का समय दिया जाए क्योंकि उनके यहां पर एक संत का अवतरण होने वाला है और उसके बाद वह सभी हिन्दू इस्लाम कबूल कर लेंगे। हिंदुओं की इस बात को मिरखशाह ने गंभीरता से नहीं लिया और हिंदुओं को 7 दिनो का समय दे दिया।

जैसे कि आकाशवाणी हुई थी, 7 दिनों के अंदर संत झूलेलाल जी एक पूरे इंसान के तौर पर प्रगट हुए। इसके बाद झूलेलाल ने कहा कि बादशाह को संदेश भिजवाया की हिंदू जनता के खिलाफ वह अनैतिक काम बिल्कुल भी ना करें। जिसके बाद बादशाह ने जब झूलेलाल की इस बात को जाना तो उन्होंने उल्टा संत झूलेलाल को ही चुनौती दे डाली। इसके पश्चात बादशाह ने जब अपनी आंखों से संत झूलेलाल को नीले घोड़े पर पूरी तरह से सुसज्जित सवार देखा तो भौचक्का रह गया।


झूलेलाल नाम कैसे पड़ा ?

मान्यतानुसार, भगवान झूलेलाल को उदयचंद के नाम से जाना जाता था। बादशाह ने सिपाहियों के द्वारा झूलेलाल को कैद कर लिया गया। जेल में जाने के पश्चात झूलेलाल जी ने जेल के अंदर मौजूद सभी हिंदुओं को आजाद करवाया और खुद भी सभी भक्तों को लेकर के नदी के किनारे चले गए और कुछ ही देर में वहां पर एक भव्य मंदिर का निर्माण हुआ। 

जब मुस्लिम शासक को पता चला कि झूलेलाल जेल में नही है। इस पर मुस्लिम शासक के द्वारा बचे हुए हिंदुओं को कहा गया कि तुम्हारा अवतार तो भाग गया, अब तुम सब इस्लाम कबूल कर लो और मुसलमान बन जाओ। 

इसके बाद जब लोगों ने फिर से सिंधु नदी के तट पर जाकर देखा तो वहां पर सोने के सिंहासन पर भगवान झूलेलाल विराजमान थे और उनके एक हाथों में धर्म ध्वजा थी और दूसरे हाथों में गीता थी जिसका पाठ वह कर रहे थे।

जनता को अपने सामने देख झूलेलाल जी ने आदेश दिया कि जाओ पवन देव और अग्नि देव जाकर के मुस्लिम राजा के साम्राज्य को जला डालो। इस पर मुस्लिम शासक रोता हुआ और रहम की भीख मांगता हुआ भगवान झूलेलाल के चरणों में गिर जाता है और अपने द्वारा किए गए सभी कामों के लिए क्षमा की याचना करने लगा।

इस पर भगवान झूलेलाल मुस्लिम शासक को क्षमा दान देते हैं और पवन देव तथा अग्नि देव को शांत रहने के लिए कहते हैं।