लेटरल एंट्री का मतलब होता है निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों की सीधे सरकार के उच्च पदों पर नियुक्ति। इसके तहत सरकार निजी क्षेत्र, अकादमिक संस्थान, या अन्य क्षेत्रों से अनुभवी और विशेषज्ञ लोगों को सीधे उच्च सरकारी पदों जैसे संयुक्त सचिव, निदेशक, और उप सचिव के पदों पर नियुक्त करती है, बिना सिविल सेवा परीक्षा (UPSC) के माध्यम से।
लेटरल एंट्री की जरूरत क्यों पड़ी?
1.विशेषज्ञता की आवश्यकता: वैश्वीकरण के चलते प्रशासनिक कार्यों में जटिलता बढ़ गई है, जिससे कई क्षेत्रों में विशेषज्ञता और विशेष कौशल की मांग बढ़ी है। इसलिए, अर्थव्यवस्था, अवसंरचना, और विज्ञान जैसे क्षेत्रों में निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों की जरूरत महसूस की गई।
2.थिंक-टैंकों की मांग: नीति-निर्माण में विविधता लाने और नई सोच के साथ नीतियों को लागू करने के लिए विशेषज्ञों की जरूरत पड़ी।
3. प्रशासनिक सुधार: प्रशासनिक सुधार के लिए विशेषज्ञों की सेवाओं का लाभ उठाना जरूरी हो गया, ताकि बेहतर और कुशल प्रशासनिक सेवाएं दी जा सकें।
लेटरल एंट्री की शुरुआत कब हुई?
लेटरल एंट्री का विचार पहली बार कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार के समय में उभरा, जब 2005 में वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) ने इसका समर्थन किया था। हालांकि, औपचारिक रूप से इस योजना की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में हुई। 2018 में सरकार ने संयुक्त सचिव और निदेशकों जैसे उच्च पदों के लिए विशेषज्ञों से आवेदन मांगे, जिससे लेटरल एंट्री की प्रक्रिया को गति मिली।
पहले भी होती रही हैं ऐसी नियुक्तियाँ :
इससे पहले भी कुछ विशेषज्ञों को सरकार ने विशेष पदों पर बिना UPSC परीक्षा के नियुक्त की गई थी, जैसे कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, जिन्होंने बिना UPSC के चयन के ही वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार के रूप में सेवा दी थी। इसी तरह, रघुराम राजन और नंदन नीलेकणि जैसे विशेषज्ञों ने भी लेटरल एंट्री के माध्यम से उच्च सरकारी पदों पर अपनी सेवाएं दी हैं।
- भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह : वर्ष 1971 में वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार के तौर पर नियुक्त किया गया था और उन्होंने सिविल सेवा की परीक्षा नहीं दी थी। उन्हें 1972 में वित्त मंत्रालय का मुख्य आर्थिक सलाहकार भी बनाया गया था।
- रघुराम राजन को अपना मुख्य आर्थिक सलाहकार नियुक्त किया था, वे संयुक्त सचिव के स्तर तक पहुँच गए थे और बाद में रिज़र्व बैंक के गवर्नर बनाए गए थे।
- नंदन निलेकणी को आधार कार्ड जारी करने वाली संवैधानिक संस्था UIDAI के चेयरमैन नियुक्त किये गए थे।
- बिमल जालान जो ICICI के बोर्ड मेंबर थे जिन्हें सरकार में लेटरल एंट्री मिली और वह रिज़र्व बैंक के गवर्नर बने।
- रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर उर्जित पटेल भी लेटरल एंट्री से इस पद पर आए थे।
- मंतोश सोंधी की भारी उद्योग में उच्च पद पर नियुक्त किया गया था जो अशोक लेलैंड और बोकारो स्टील प्लांट में सेवा दे चुके थे तथा उन्होंने ही चेन्नई में हैवी व्हीकल फैक्ट्री की स्थापना की थी।
- NTPC के संस्थापक चेयरमैन डी.वी. कपूर ऊर्जा मंत्रालय में सचिव बने थे।
- BSES के CMD आर.वी. शाही भी 2002-07 तक ऊर्जा सचिव रहे।
- डॉ. वर्गीज़ कुरियन को NDBB का चेयरमैन नियुक्त किया था, जो तब खेड़ा डिस्ट्रिक्ट कोऑपरेटिव मिल्क प्रोड्यूसर यूनियन के संस्थापक थे।
- हिंदुस्तान लीवर के पूर्व चेयरमैन प्रकाश टंडन को स्टेट ट्रेडिंग कॉरपोरेशन का प्रमुख बनाया गया था।
- सैम पित्रोदा को भी कई इसी प्रकार से कई अहम ज़िम्मेदारियाँ सौंपी थी।
- वित्त मंत्रालय में संयुक्त सचिव तथा योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया के अलावा शंकर आचार्य, राकेश मोहन, अरविंद विरमानी और अशोक देसाई की नियुक्ति भी लेटरल एंट्री के माध्यम से की गई थी।
अन्य प्रमुख नियुक्तियां
जगदीश भगवती, विजय जोशी और टी.एन. श्रीनिवासन ने भी इसी प्रकार सरकार को अपनी सेवाएँ दीं। इनके अलावा योगिंदर अलघ, विजय केलकर, नितिन देसाई, सुखमॉय चक्रवर्ती जैसे न जाने कितने नाम हैं, जिन्हें लेटरल एंट्री के ज़रिये सरकार में उच्च पदों पर काम करने का मौका मिला।