नल वंश का शासन छत्तीसगढ़ में 5-12 ई. तक था। इस वंश के संस्थापक वराहराज ( शिशुक ) थे। इनका शासन छेत्र बस्तर ( कोरापुट - वर्त्तमान कांकेर ) था, तथा इनकी राजधानी पुष्करी ( वर्त्तमान : भोपालपट्टनम - बीजापुर जिला ) थी। इस वंश का प्रतापी शासक भवदत्त वर्मन हुए। इस वंश के अन्तिम शासक नरेंद्र धवल थे। वाकाटक इस वंश के समकालीन थे। इन दोनों वंशो के बिच लंबा संघर्ष चला।
इस वंश के ही शासक व्याघराज को समुद्रगुप्त ने दक्षिणापथ अभियान के समय हराया था।
राजिम के सीताबाड़ी के उत्खन्न से उमा-महेश्वर की प्रतिमा तथा मुहर प्राप्त हुआ है।
नल वंश के प्रमुख शासक:-
- वराहराज - वंश का प्रथम शासक
- भवदत्त वर्मन
- अर्थपति - पोडगढ़ शिलालेख में इन्हें प्रथम शासक कहा गया है।
- स्कंदवर्मा
- स्तम्भराज
- पृथ्वीराज
- विरुपाक्ष
- विलासतुंग
- पृथ्वीव्याघ्र
- भीमसेन
- नरेंद्र धवल
संघर्ष :
भवदत्त वर्मन के राज्य के दौरान वाकाटक राजा नरेन्द्र सेन ने हमला किया और राज्य का एक छोटा हिस्सा जीत लिया, लेकिन कुछ वर्षो के बाद भवदत्त वर्मन ने नरेंद्रसेन की राजधानी नन्दिवर्धन ( वर्तमान : नागपुर - महाराष्ट्र ) पर आक्रमण किया और हारे हुये हिस्से को वापस हासिल किया और राज्य का विस्तार उड़ीसा और महाराष्ट्र तक किया।
नरेंद्रसेन के पुत्र पृथ्वीसेन द्वितीय ने भवदत्त वर्मन के पुत्र अर्थपति ( अर्थपति की मृत्यु होगई ) को पराजित किया और अपने पिता के पराजय का बदला लिया। इसके बाद छत्तीसगढ़ ( दक्षिण कोशल ) पर वाकाटको के वत्सगुल्म शाखा के राजा हरिषेण ने शासन किया।
छत्तीसगढ़ ( दक्षिण कोशल ) में नलवंश की पुनर्स्थापना स्कन्दवर्मन ने की थी। 457 ईस्वी में स्कंद वर्मन कांकेर राज्य के राजा बने और 500 ईस्वी तक शासन किया। यह नल वंश के अंतिमज्ञात राजा है।
निर्माण :
इस वंश के शासक विलासतुंग ने 712 ई. में राजिम में राजीव लोचन मंदिर का निर्माण करवाया। जो पंचायतन शैली का उदहारण है।
प्रसिद्ध पल्लवंशी शासक पुलकेशिन द्वितीय ने उड़ीसा के कुछ हिस्सो के साथ इस छेत्र को जीत लिया। इनके राज्य के दौरान कांकेर राज्य में मंदिरों का बहुत निर्माण किया गया। पुलकेशिन द्वितीय के बाद, विक्रमादित्य, विनयादित्य , विक्रमादित्य द्वितीय, कृतिवर्मन द्वितीय ने ७८८ ई. तक शासन किया।
नलवंशीय प्रमुख ताम्रपत्र:
ऋद्धिपूर - भावदत्त वर्मन
केशरीबेड़ा - अर्थपति
पांडिया पाथर - अर्थपति
पोड़ागढ़ - स्कंदवर्मा
राजिम - विलासतुंग
पतन:
नल वंश के पतन का कारण छिन्दक नागवंशी तथा मध्य छत्तीसगढ़ में इनका पतन का कारण पांडुवंशी हुए।