भारत के राष्ट्रीय ध्वज का इतिहास Rashtriy Dhvaj

वर्तमान ध्वज

भारत के वर्तमान ध्वज के लिए 23 जून 1947 को डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की अध्यक्षता में झंडा समिति का गठन किया गया था। ध्वज की अभिकल्पना पिंगली वेंकैया ने की थी।14 जुलाई 1947 को भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के द्वारा झंडे में कुछ परिवर्तन उसे राष्ट्रीय ध्वज के रूप में मान्यता दी गई। पंडित जवाहरलाल नेहरू के द्वारा 22 जुलाई 1947 को झंडे को संविधान सभा के समक्ष प्रस्तुत किया गया।

15 अगस्त 1947 को 10:30 बजे काउंसिल हॉउस में तथा 16 अगस्त 1947 को लाल किले के प्राचीर से ध्वज को पहली बार फहराया गया था।

आकर:
ध्वज की लंबाई एवं चौड़ाई का अनुपात 3:2 है। बड़े आकार का ध्वज 21 फुट × 14 फुट तथा सबसे छोटे आकार का ध्वज 6 इंच × 4 इंच हो सकता है।

इतिहास :
भारत के वर्तमान ध्वज का स्वरूप का विकाश स्वतंत्रता आंदोलन के साथ हुआ। इस कड़ी में 'कलकत्ता ध्वज' भारत के पहले अनौपचारिक ध्वजों में से एक था। यह सचिंद्र प्रसाद बोस और हेमचंद्र कनुनगो द्वारा डिजाइन किया गया था और 7 अगस्त, 1906 को पारसी बागान स्क्वायर (Parsi Bagan Square) (ग्रिश पार्क), कलकत्ता में फहराया गया था।

जर्मनी के शहर स्टुटगार्ड आयोजित अंतराष्ट्रीय संम्मेलन में
मैडम भीखाजी रुस्तम कमा ने 22 अगस्त 1907 को तीन पट्टियों वाला झंडा फहराया जो कलकत्ता के ध्वज पर आधारित था। इस झंडे के बीच वाली पट्टी पर "वन्दे मातरम्" लिखा था।

वर्ष 1921 मे महात्मा गांधी के निर्देश पर एक तीन पट्टियों वाले झंडे का निर्माण किया गया जिसमें चरखा प्रदर्शित किया गया था। 1921 भारतीय कांग्रेस कमेटी के 37वें सत्र 1921 के दौरान बेजवाड़ा (अब विजयवाड़ा) में यहां आंध्र प्रदेश के एक युवक के द्वारा एक झंडा बनाया और गांधी जी को दिया। इसमे दो रंगों का प्रयोग किया गया था। लाल और हरा रंग जो दो समुदायों अर्थात हिन्‍दू और मुस्लिम का प्रतिनिधित्‍व करता है।
गांधी जी ने सुझाव दिया कि भारत के शेष समुदाय का प्रतिनिधित्‍व करने के लिए ध्वज में एक सफेद पट्टी और राष्‍ट्र की प्रगति का संकेत देने के लिए एक चरखा होना चाहिए।

वर्ष 1921 में पिंगाली ने केसरिया और हरा झंडा सामने रखा था। फिर जालंधर के लाला हंसराज ने इसमें चर्खा जोड़ा और गांधीजी ने सफेद पट्टी जोड़ने का सुझाव दिया था।

31 दिसंबर 1929 को रावी नदी के तट पर जवाहरलाल नेहरू ने तिरंगा फहराया। इस ध्वज मे थोड़ा परिवर्तन कर 1931 मे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के झंडे के रूप में अपनाया गया।

कांग्रेस ध्वज समिति :
कई लोग झंडे की सांप्रदायिक व्याख्या से संतुष्ट नहीं थे। इन मुद्दों को सुलझाने के लिए कांग्रेस कार्य समिति ने 2 अप्रैल, 1931 को एक सात सदस्यीय ध्वज समिति नियुक्त की। इस समिति ने एक प्रस्ताव पारित किया गया था जिसमें कहा गया था कि "ध्वज में तीन रंगों पर इस आधार पर आपत्ति ली गई है कि उनकी कल्पना सांप्रदायिक आधार पर की गई है।" इन गठजोड़ का अप्रत्याशित परिणाम सिर्फ एक रंग, गेरू और ऊपरी लहरा पर एक "चरखा" वाला झंडा था। हालांकि ध्वज समिति द्वारा अनुशंसित ध्वज को कांग्रेस ने नहीं अपनाया।

चरखे के स्थान पर "धर्म चक्र" :
स्वतंत्रता पूर्व भारत के ध्वज पर चर्चा करने के लिए संविधान सभा का गठन किया गया था। राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में एक एक समिति का गठन किया था। इस समिति में अबुल कलाम आजाद, केएम पणिकर, सरोजिनी नायडू, सी. राजगोपालाचारी, केएम मुंशी और डॉ. बी.आर. अम्बेडकर इसके सदस्य थे। 23 जून, 1947 को फ्लैग कमेटी का गठन किया गया। तीन सप्ताह के बाद वे 14 जुलाई, 1947 को इस समिती ने निर्णय लिया कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के ध्वज को सभी दलों और समुदायों को स्वीकार्य बनाने के लिए उपयुक्त संशोधनों के साथ भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया जाना चाहिए। यह भी तय किया गया कि झंडे में कोई सांप्रदायिक रंग नहीं होना चाहिए और सारनाथ के "धर्म चक्र" को "चरखे" के स्थान पर अपनाया गया। 15 अगस्त 1947 को पहली बार एक स्वतंत्र देश के रूप में झंडा फहराया गया था।


ध्वजारोहण का मौलिक अधिकार :
सन 2004 मे भारतीय उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश वी. एम. खरे की अध्यक्षता वाले खण्डपीठ ने ध्वजारोहण को अनुच्छेद 19 के भाग 1 के तहत मौलिक अधिकार माना।