छत्तीसगढ़ की जनजाति / आदिवासी Chhattisgarh Ki Janjati / Adiwasi


छत्तीसगढ़ राज्य एक जनजाति बाहुल्य राज्य है, छत्तीसगढ़ में कुल 42 जनजातियां पाई जाती है, छत्तीसगढ़ की प्रमुख जनजाति गोंड है, इसके अतिरिक्त कँवर, बिंझवार, भैना, भतरा, उरांव, मुंडा, कमार, हल्बा, बैगा, भरिया, नगेशिया, मंझवार, खैरवार और धनवार जनजाति भी काफी संख्या में है।
छत्तीसगढ़ राज्य में कुल 5 जनजाति को विशेष रूप से पिछड़ी जनजातिय समूह के रूप में पहचान मिली है, अबूझमाड़िया, कमार, पहाड़ी कोरबा, बिरहोर एवं बैगा के विकास के लिये विशेष अभिकरण का गठन किया गया है। छत्तीसगढ़ राज्य द्वारा 2 जनजाति भुंजिया तथा पण्डो को विशेष रूप से पिछड़ी जनजातिय समूह के रूप में पहचान मिली है।
छत्तीसगढ़ की जनजाति गोंडों पर जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने "गोंड़स आफ बस्तर" लिखी। श्यामाचरण दुबे ने "द कमार" की रचना की। तथा बेरियर एल्विन ने मुड़िया जनजाति ने "मुड़िया एण्ड देयर घोटुल" की रचना की।

नोट : वर्तमान में राज्य अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष माननीय श्री रामजी भारती पदस्थ है।

जनगणना 2011:
2011 के जनगणना के अनुसार जनजाति की कुल जनसंख्या 7822902 है। जो कुल जनसंख्या का 30.6 % है। जनजाति में लिंगानुपात 1020 है। इनकी साक्षरता दर 50.11% है।
प्रतिशत में सर्वाधिक साक्षर : हल्बा
सर्वाधिक साक्षर : ओराव/उराव

तथ्य:
गोंड़ - सबसे बड़ी जनजाति
अभुझमाड़िया - सबसे पिछड़ी जनजाति।
उराव - सबसे ज्यादा साक्षर जनजाति।
हल्बा - आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न।

विवाह संस्कार:
छत्तीसगढ़ की जनजातियों में एकल विवाह तथा बहु विवाह मान्य है। एकल विवाह में, साली विवाह तथा देवर विवाह है। बहु विवाह में, बहुपत्नी विवाह, बहुपति विवाह, भातृ बहुपति विवाह, अभातृ बहुपति विवाह, समूह विवाह।
छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में सामान्य विवाह "पेडुल विवाह" प्रचलित है।
गोंड़ जनजाति में, दूध लौटावा, सेवा या चरघिया विवाह तथा अपहरण विवाह प्रचलित है।
खैरवार जनजाति में क्रय विवाह की परंपरा है।
कोरवा तथा बैगा जनजाति में हठ विवाह प्रचलित है, कोरवा इसे ढुकु तथा बैगा इसे पैठुल विवाह कहते है।
बिंझवार जनजाति में तीर विवाह पचलित है, जिसमें लड़की के लिए योग्य वर ना मिलने पर लड़की की सादी तीर से कर दी जाती है।
पोटा विवाह : कोरकू जनजाति की स्त्रियां अपने पति का त्याग कर अन्य पुरुष से पुनर्विवाह करते है।

अनुसूचित जनजाति संबंधित प्रश्नोतरी

मृत्यु संस्कार
गोंड़: तीसरे दिन कोज्जि तथा दसवे दिन कुंडा मिलान
माड़िया : हलान गट्टा नामक स्मृति स्तंभ बनाते है।
कोरवा : मृत्यु संस्कार के रूप में नवाघानी प्रचलित है। इसे कुमारी भात भी कहा जाता है।
हल्बा : लड़के की मृत्युपरांत लड़की का विवाह महुवा वृक्ष से कर दी जाती है।

मृत्यु के 10-15 वर्षों में सभी मृतको के नाम एक पत्थर गाड़ा जाता है। इसे गांयता पखना कहा जाता है। 


देवी, देवता
  • गोंड़, दूल्हा देव की पूजा की जाती है।
  • बैगा जनजाति बूढ़ा देव तथा ठाकुर देव की आराधना करते है। 
  • उराव जनजाति सरना देवी तथा धर्मेश की पूजा, कमार दूल्हा देव के अलावा छोटी माई तथा बड़ी माई की।
  • कोरवा जनजाति सूर्य, सर्प तथा खुड़िया रानी
  • अबुझमाड़िया प्राकृत पूजा करते है।
  • बिंझवार - विंध्यवासिनी
  • भतरा - शिकार देवी
  • मुड़िया - आंगादेव
  • कंवर - सगराखण्ड
  • कमार - छोटे माई- बड़ेमाई
युवा गृह
जनजातियों में सामाजिक तथा सांस्कृतिक संस्था होती है। जिसके माध्यम से आदिवासी समाज युवक तथा युवतियों को परंपरा तथा संस्कृति से अवगत कराते है। ये युवा गृह दो प्रकार के होते है। एकलिंगीय, इस प्रकार के युवा गृह अबुझमाड़िया जनजाति में होता है। द्विलिंगी, इस प्रकार के युवा गृह मुरिया जनजाति में पाया जाता है, जिसमे घोटुल प्रमुख है।
मुरिया पूर्ण पढ़ें - घोटुल  पूर्ण पढ़ें
उराव - धुमकुरिया
बिरहोर - गितिओना
भुइंया - रंगभंग
भरिया - धासरवासा
परजा - धगबाक्सर 



जनजतियो के पेय पदार्थ
सल्फी - मुड़िया, माड़िया
ताड़ी - बैगा
छिंदरस - माड़िया, अबुझमाड़िया
हड़िया - कोरवा, उराव ( चावल से बनता है )
पेज - गोंड़
कोसमा/कोसना/हड़िया - उराव

सल्फी :
सल्फी ताड़ कुल का एक पुष्पधारी वृक्ष है। इसको संस्कृत में 'मोहकारी' कहते हैं। इससे निकलने वाले मादक पेय को 'बस्तर बीयर' के नाम से भी जाना जाता है।
इस वृक्ष को गोंडी बोली में 'गोरगा' कहा जाता है तो बस्तर के ही बास्तानार इलाके में ये 'आकाश पानी' के नाम से जाना जाता है। एक दिन में करीब बीस लीटर तक मादक रस देने वाले इस पेड़ की बस्तर की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण स्थान है। 

ताड़ी :
ताड़ी (Palm wine) एक मादक पेय है जो ताड़ की विभिन्न प्रजाति के वृक्षों के रस से बनती है तथा ताड़ी अप्रैल माह से जुलाई माह तक ताड़ के पेड़ के फल से निकलता है। जिसका इस्तेमाल आदिवासी करते है।

मड़िया पेज / माड़िया पेज :
यह लोगों को लू की चपेट में आने से रोकता है, आदिवासी लोग गर्मी में इसका भरपूर इस्तेमाल करते हैं।
मंडिया एक मोटा अनाज होता है। जिसके आटा को मिट्टी के बर्तन में रात भर भीगा कर रखते हैं। सुबह पानी में चावल डालकर पकाते हैं। चावल पकने पर उबलते हुए पानी में मडिया के भीगाए हुए आटे को घोलते हैं। स्थानीय हलबी बोली में इसे पेज कहते हैं। पकने पर उतारकर ठंडा करके 24 घंटे तक इसका सेवन करते हैं।

हड़िया पेय :
यह चावल और रानू नाम की जंगली जड़ी से बनी होती है। जंगली बूटी चैली कंदा की जड़ में पाई जाने वाले इस खास जड़ी को अरवा चावल के आटे में कूट कर मिलाया जाता है और गोलियां तैयार कर ली जाती हैं।

हड़िया चावल के भात से बनता है और इसमें चावल के अतिरिक्त गेहूँ और मडु़वा को भी मिलाया जाता है। ज्यादतर करैनी धान के चावल को हड़िया के लिये उपयोग में लाया जाता है।

पहले चावल को पकाया (सिंझाने की विधि) जाता है। इसके बाद चावल को ठंडा (जुड़ाना) किया जाता है, फिर एक बड़े बर्तन या डलिया में भात का उड़ल ( पसारना ) देते हैं। इस पसरे भात में रानू की गोली पाउडर बनाकर मिलाई जाती है।

उसके बाद इस भात पर कोई बर्तन ढांककर फर्मेेन्टेशन के लिए रख दिया जाता है। कुछ लोग चावल के साथ गेहूं को भी उबालते हैं। सर्दियों में 4 दिन और अगर ​गर्मियां में कम से कम दो दिन तक चावलों को ऐसे ही रखे रहने देते हैं। समय पूरा होने के बाद चावल को घोटकर कर उसमें पानी मिलाया जाता है।


लांदा :
लांदा चावल को खमीर उठा कर बनाया जाता है। लांदा बनाने के लिये चावल को पीस कर टुकन में रख के भाप में पकाया जाता है, इसे पकाने के लिए चूल्हे के ऊपर मिटटी की हांड़ी रखी जाती है जिस पर पानी भरा होता हैै, इसे अच्छी तरह भाप में पकाया जाता है, फिर उसे ठंडा किया जाता है।


इसके पश्चात एक अन्य हंडी में पानी आवश्यकता अनुसार लेकर उसमे पके आटे को डाल देते है, साथ ही हंडी में अंकुरित किये मक्का (जोंधरा) के दाने, जिसे अंकुरित करने के लिये ग्रामीण रेत का उपयोग करते है। भुट्टे के अंकुरण के पश्चात उसे भी धुप में सूखा कर उसका भी पावडर बनाया जाता है। लेकिन इसे जांता (ग्रामीण चक्की) में पिसा जाना उपयुक्त माना जाता है। फिर इसे भी कुछ मात्रा में चावल वाले हंडी में डाल दिया जाता है। जिसका उपयोग खमीर के तौर पर किया जाना बताते है और गर्मी के दिनों में 2-3 दिन, ठण्ड में थोडा ज्यादा समय के लिए रख देते है। तैयार लांदा को 1-2 दिन में उपयोग करना होता है।

Source: lalitdotcom



गोदना
विंध्य क्षेत्र के दक्षिणान्चल के बादी, गोधारिन जनजाति की औरते, ओझा ( गोंड की उपजाति), कुंजर , देवार , बंजारा आदि गोदना गोदने का कार्य करते है।
सर्वाधिक गोदना प्रिय जनजाति - बैगा
सर्वाधिक गोदना गुदवाने वाली जनजाति - कमार

नृत्य
मुड़िया/मुरिया - रेलों, ककसार, घोटुल पाटा, मांदरी, एबालतोर, गेंड़ी/डिटोम।
माड़िया - गौर नृत्य ( गोचा पर्व पर )
बैगा - करमा, अटारी, बिल्मा, सैला
कंवर - बार नृत्य,
कोरवा - दमकच/डोमकच ( विवाह के अवसर पर )
कोरकू - थापटी, ढांढ़ल
ओराव/ उराव - सरहुल
भरिया - भडम
धुरवा - परब


पुस्तक 
जनजातियों पर लिखी प्रमुख किताब एवं उनके लेखक।
वेरियर एल्विन - द बैगास, द अगरिया, द गौर, द मुड़िया एंड देयर घोटुल।
एस. सी राय - द बिरहोर
श्याम चरण दुबे - द कमार
ग्रियर्सन - द माड़िया गॉड्स ऑफ बस्तर
पी.वी. नायक - द भील
दयाशंकर नाग - द ट्राइबल इकॉनमी

Last Update : 19 अगस्त 2024


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