पार्थियन मूलतः ईरानी थे। भारतीय इतिहास में पार्थियन लोगों को ही पहलव कहा गया है। पुराणों में शकों और पहलव का नाम प्रायः साथ-साथ (शक-पहलव) आता है। इसका कारण यही है, कि शक वंश के लोग पार्थिया होकर ही भारत आये थे।और दूसरा कारण यह सम्भव है कि पहलव सेना में पार्थियन सैनिक की संख्या भी अच्छी बड़ी हों।
मिथिदातस द्वितीय पार्थिया के शक्तिशाली राजा हुए। इनके नेतृत्व में पहलव भारत में प्रवेश किया। मिथिदातस द्वितीय के शासनकाल में पार्थिया कि शक्ति बहुत अधिक बढ़ी हुई थी, और शको को भी उसके विरुद्ध सफलता नहीं हुई।
मिथिदातस उत्तराधिकारी के समय में पार्थियनों ने भारत पर आक्रमण कर आर्कोशिया (कन्धार) व सीस्तान के प्रदेशों पर कब्जा कर लिया। धीरे-धीरे भारत में स्थापित पार्थियन मूल पार्थियन से पृथक हो कर स्वतंत्र पार्थियन वंश की स्थापना की, इसके प्रथम शासक वोनोनस थे। इनकी राजधानी तक्षशिला थी। इनके सिक्को पर एक तरफ इनका नाम ग्रीक भाषा में तथा दूसरी ओर भारतीय प्राकृत भाषा में 'महाराजभ्रातस ध्रमिअस श्पलहोरस' लिखा मिला है।
गोन्दो फर्निस / गोन्दोफ़ैरस को इस वंश का प्रतापी शासक माना जाता है। इनके शासन काल में इसाई धर्म प्रचारक 'सेंट थॉमस' भारत आये, जिनकी हत्या 50 ई. पू. मद्रास के समीप कयालपुर नामक स्थान पर कर दी गई।
पतंजर अभिलेख के अनुसार कुषाणों ( युइशि जाति )
के द्वारा पार्थियन का अंत किया गया।