प्रसन्नमात्र छत्तीसगढ़ में शरभपुरीय वंश सर्वाधिक शक्तिशाली राजा था। इनका शासन 460 ई. - 480 ई. तक रहा। प्रसन्नमात्र इस वंश के तीसरे राजा था, परंतु परवर्ती अभिलेख में इस वंश की वंशावली इसी राजा से प्रारंभ होती है। अन्य शरभपुरीय राजाओ की तरह इन्होंने भी गुप्तो की अधीनता स्वीकार कर रखी थी।
नगर:-
निडिला ( लीलागर ) नदी के तट पर इन्होंने प्रसन्नपुर ( मल्हार ) नगर की स्थापना की थी।
इन्होंने स्वर्ण तथा रजत के सिक्के जारी किए। इन सिक्कों में गरुड़, शंख तथा चक्र अंकित थे। इन सिक्कों के एक भाग में प्रशन्नमात्र अंकित है। इसमे पेटिका शीर्ष लिपि का प्रयोग हुआ है। ये सिक्के मल्हार स्थित टकसाल में निर्मित हुए थे।
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