12/26/2018

स्थानीय शासन ( नगरपालिका व्यवस्था )


भारत में अंग्रेजी शासन के दौरान स्थानीय शासन में भागीदारी देने हेतु नगरीय निकाय की स्थापना की गई। भारत का प्रथम नगरीय निकाय मद्रास ( चेन्नई ) था, जिसकी स्थापना वर्ष 1687-88 में कई गई थी। इसके बाद 1726 में मुम्बई तथा 1876 में कोलकाता नगरनिगम की स्थापना की गई।

वर्ष 1870 में लार्ड मेयो के आने के बाद स्थानीय शासन संस्थाओं का विकास शुरू हुआ। वर्ष 1882 में लार्ड रिपन का संकल्प आया जिससे स्थानीय शासन की अवधारणा को बल मिला। लार्ड रिपन की ही संकल्पना को भारत में स्थानीय शासन का मैग्नाकार्टा कहा जाता है। लार्ड रिपन को को ही भारत में स्थानीय शासन का जनक कहा जाता है।
वर्ष 1903 में नगर निगम अधिनियम पारित हुआ। इसके बाद सत्ता के विकेंद्रीकरण हेतु वर्ष 1907 में रॉयल कमीशन का गठन हुआ। इस कमीशन के अध्यक्ष हॉब हाउस थे। इस कमीशन की रिपोर्ट वर्ष 1909 में आई।

भारत शासन अधिनियम 1919 के तहत प्रान्तों में द्विशासन व्यवस्था लागू की गई और स्थानीय शासन का विषय भारतीय मंत्री को सौंपा गया। वर्ष 1924 में 'कटोमेन्ट एक्ट' लागू किया गया। वर्ष 1935 में भारत सरकार अधिनियक आया, जिसमे प्रान्तों को दी गई स्वायत्तता में स्थानीय शासन को प्रांतीय विषय घोषित किया गया।

भारत की आजादी के बाद, नगरपालिका एवं नगरनिगम स्थानीय शासन संस्थाओं के रूप में स्थापित तो थे किंतु ये संस्थाएं समय के साथ-साथ कमजोर पड़ रही थी। सरकार समय-समय पर स्थिती को सुधारने के लिए समितियों तथा आयोगों का गठन किया और उनकी सिफारिशों को इन संस्थाओं को मजबूत बनाने में इस्तेमाल किया। राजीव गांधी सरकार ने अगस्त, 1989 में नगर पालिका ढांचा मजबूत बनाने हेतु संविधान संसोधन बिल रखा परंतु यह विधेयक राज्यसभा में पारित नहीं हो पाया। इसके बाद सितंबर, 1990 में वी.पी. सिंह सरकार ने संविधान संशोधन बिल रखा परंतु यह भी पारित नही हो पाया।

वर्ष 1991 में पी.व्ही. नरसिंह राव सरकार ने संविधान संसोधन विधेयक प्रस्तुत किया। यह संविधान अधिनियम 1992 में पारित हुआ। संविधान में 74 वां संसोधन किया गया। यह संसोधन 1 जून, 1993 से प्रभाव में आया। यह संशोधन संविधान के भाग 9-क के रूप में आया और संविधान के अनुच्छेद 243-त से 243-य तक वर्णित किया गया।
नगरपालिकाओं का गठन
74 वें संविधान संशोधन के अनुसार प्रत्येक राज्य में त्रिस्तरीय नगरपालिकाओं के गठन की व्यवस्था की गई।
नगर पंचायत - ग्रामीण क्षेत्रो से नगरीय क्षेत्रों में संक्रमणगत क्षेत्र के लिए। जहां आबादी 5 हजार से कम है।
नगरपालिका परिषद - लघुतर नगरीय क्षेत्र के लिए। जहां आबादी 1 लाख है।

नगरपालिका निगम - वृहद नगरीय क्षेत्र के लिए। जहां आबादी 1 लाख से अधिक है।
इन तीनो ही स्तरों की संस्थाओं को संविधान में नगरपालिका के नाम से उल्लेखित किया गया है। आबादी के आंकड़े इन संस्थाओं के गठन के लिए निश्चित आधार नहीं बनाते, क्यो की राज्य शासन द्वारा जनता की मांग पर, कुछ आबादी कम होने पर भी इन संस्थाओं का गठन करता है।

नगरपालिका अधिनियम, 1961 एवं नगरपालिका निगम अधिनियम, 1956
नगर पंचायत, नगरपालिका परिषद एवं नगरपालिका निगम की स्थापना संविधान के अनुच्छेद 243 के प्रावधानों के अनुसार हुआ है। छत्तीसगढ़ राज्य में छत्तीसगढ़ नगरपालिका अधिनियम, 1961 को नगर पंचायत एवं नगरपालिका परिषद के गठन और प्रशासन के लिए लागू किया गया है। राज्य में नगरपालिका निगम की स्थापना के लिए छत्तीसगढ़ नगरपालिका निगम अधिनियम 1956 लागू किया गया है।
दोनों अधिनियमो स्थानीय शासन संबंधित मौलिक अवधारणा एक समान है, किंतु नगर पंचायत, नगरपालिका परिषद क्षेत्रो की शक्तियों एवं नगरपालिका निगम की क्षेत्रो की शक्तियों में अंतर है।


संसोधन:
छत्तीसगढ़ में पार्षद महापौर को चुनेंगे और नगरीय निकाय से राइट टू रिकॉल खत्म कर दिया गया है। - 2019