शारदापीठ देवी सरस्वती का प्राचीन मन्दिर है जो पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में शारदा के निकट किशनगंगा नदी (नीलम नदी) के किनारे कश्मीर के कुपवाड़ा से करीब 22 किलोमीटर दूर स्थित है। इसके भग्नावशेष भारत-पाक नियन्त्रण-रेखा के निकट स्थित है। यह 18 महाशक्ति पीठो में से एक है।
शारदा पीठ हिंदुओं का 5 हजार साल पुराना धर्मस्थल है। इसे महाराज अशोक ने 237 ईसा पूर्व में बनवायाथा। शारदा पीठ में देवी सरस्वती की आराधना की जाती है।
इतिहासकारों में मतभेद:
शारदा पीठ के निर्माण के संबंध में इतिहासकारों में मतभेद है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इसे कुषाण साम्राज्य (30 CE-230 CE), के तहत बनाया गया था, जबकि कुछ अन्य इतिहासकार मानते हैं कि शारदा पीठ और मार्तंड सूर्य मंदिर के बीच समानताएं बताती हैं कि यह ललितादित्य द्वारा बनाया गया था।
वैदिक काल में इसे शिक्षा का केंद्र भी कहा जाता था। मान्यता है कि ऋषि पाणीनि ने यहां अपने अष्टाध्यायी की रचना की थी।यह श्री विद्या साधना का महत्वपूर्ण केन्द्र था। शैव संप्रदाय की शुरुआत करने वाले आदि शंकराचार्य और वैष्णव संप्रदाय के प्रवर्तक रामानुजाचार्य दोनों ने ही यहां महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की। शंकराचार्य यहीं सर्वज्ञपीठम पर बैठे तो रामानुजाचार्य ने यहां ब्रह्म सूत्रों पर अपनी समीक्षा लिखी।
चीनी बौद्ध भिक्षु, ह्वेन त्सांग, ने 632 CE में इस शिक्षा केंद्र का दौरा किया था, और वह दो साल तक वहां रहे। कल्हण ने लिखा है कि 8 वीं शताब्दी ईस्वी में ललितादित्य के शासनकाल के दौरान, बंगाल में गौड़ राजा के कुछ अनुयायी मंदिर के दर्शन के बहाने कश्मीर आए थे।
वर्ष 1030 ईस्वी में, मुस्लिम इतिहासकार अल-बिरूनी ने कश्मीर का दौरा किया। उनके अनुसार, मंदिर में शारदा देवी की एक लकड़ी की मूर्ति थी। उन्होंने मंदिर की तुलना मुल्तान सूर्य मंदिर और सोमनाथ मंदिर से किया था।
1947 में भारत और पाक के अलग होने के बाद हिंदू श्रद्धालुओं को मंदिर के दर्शन में परेशानी आने लगी। 2007 में कश्मीरी अध्येता और भारतीय संस्कृति संबंध परिषद के क्षेत्रीय निदेशक प्रोफेसर अयाज रसूल नज्की ने इस मंदिर का दौरा किया था। तब से कॉरिडोर की मांग उठने लगी।
शारदा पीठ हिंदुओं का 5 हजार साल पुराना धर्मस्थल है। इसे महाराज अशोक ने 237 ईसा पूर्व में बनवायाथा। शारदा पीठ में देवी सरस्वती की आराधना की जाती है।
इतिहासकारों में मतभेद:
शारदा पीठ के निर्माण के संबंध में इतिहासकारों में मतभेद है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इसे कुषाण साम्राज्य (30 CE-230 CE), के तहत बनाया गया था, जबकि कुछ अन्य इतिहासकार मानते हैं कि शारदा पीठ और मार्तंड सूर्य मंदिर के बीच समानताएं बताती हैं कि यह ललितादित्य द्वारा बनाया गया था।
वैदिक काल में इसे शिक्षा का केंद्र भी कहा जाता था। मान्यता है कि ऋषि पाणीनि ने यहां अपने अष्टाध्यायी की रचना की थी।यह श्री विद्या साधना का महत्वपूर्ण केन्द्र था। शैव संप्रदाय की शुरुआत करने वाले आदि शंकराचार्य और वैष्णव संप्रदाय के प्रवर्तक रामानुजाचार्य दोनों ने ही यहां महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की। शंकराचार्य यहीं सर्वज्ञपीठम पर बैठे तो रामानुजाचार्य ने यहां ब्रह्म सूत्रों पर अपनी समीक्षा लिखी।
चीनी बौद्ध भिक्षु, ह्वेन त्सांग, ने 632 CE में इस शिक्षा केंद्र का दौरा किया था, और वह दो साल तक वहां रहे। कल्हण ने लिखा है कि 8 वीं शताब्दी ईस्वी में ललितादित्य के शासनकाल के दौरान, बंगाल में गौड़ राजा के कुछ अनुयायी मंदिर के दर्शन के बहाने कश्मीर आए थे।
वर्ष 1030 ईस्वी में, मुस्लिम इतिहासकार अल-बिरूनी ने कश्मीर का दौरा किया। उनके अनुसार, मंदिर में शारदा देवी की एक लकड़ी की मूर्ति थी। उन्होंने मंदिर की तुलना मुल्तान सूर्य मंदिर और सोमनाथ मंदिर से किया था।
1947 में भारत और पाक के अलग होने के बाद हिंदू श्रद्धालुओं को मंदिर के दर्शन में परेशानी आने लगी। 2007 में कश्मीरी अध्येता और भारतीय संस्कृति संबंध परिषद के क्षेत्रीय निदेशक प्रोफेसर अयाज रसूल नज्की ने इस मंदिर का दौरा किया था। तब से कॉरिडोर की मांग उठने लगी।