भारत सरकार द्वारा स्थापित उत्सर्जन मानक हैं जो, आंतरिक दहन इंजनों और स्पार्क-इग्निशन इंजनों जिनमें मोटर वाहन शामिल हैं, द्वारा उत्सर्जित वायु प्रदूषकों की मात्रा का विनियमन करते हैं। मानकों और उनको लागू किए जाने की समयसीमा का निर्धारण पर्यावरण और वन मंत्रालय और जलवायु परिवर्तन के तहत केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा किया जाता है।
यह यूरोपीय विनियमों पर आधारित 'यूरो' की तरह है, इन मानकों को पहली बार 2000 में लागू किया गया था, जो कि यूरो-1 के जैसा था। तब से लगातार मानदंडों को सख्त किया जा रहा है।
अक्टूबर 2010 से पूरे देश में भारत स्टेज (BS) 3 मानकों को लागू किया गया। 13 प्रमुख शहरों में तो BS-4 उत्सर्जन मानक अप्रैल 2010 से लागू हैं, जबकि, अप्रैल 2017 से इन्हें पूरे देश में लागू किया गया है। भारत सरकार ने 2016 में घोषणा की कि, BS-5 मानकों को लागू करने के बजाय 31 मार्च, 2020 तक पूरे देश में सीधे BS-6 मानकों को अपनाया जायेगा।
2020 के बजाय अब 1 अप्रैल, 2018 से ही लाया जायेगा। दिल्ली के वायु प्रदूषण की भारी समस्या के कारण पेट्रोलियम मंत्रालय ने तेल विपणन कंपनियों से इस बात की संभावना का पता लगाने को कहा गया था कि क्या 1 अप्रैल, 2019 से पूरे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में BS-6 वाहन ईंधनों को लागू किया जा सकता है या नहीं? हालांकि इस निर्णय से वाहन निर्माता कम्पनियों में खलबली मच गयी क्योंकि उनकी योजना तो BS-6 वाहनों का उत्पादन 2020 से शुरु करने की थी।
BS6 के फायदे
BS-6 लागू होने के बाद डीजल कारों से 68 फीसदी और पेट्रोल कारों से 25 फीसदी तक नाइट्रोजन ऑक्साइड का उत्सर्जन कम हो जाएगा। साथ ही डीजल कारों से PM का उत्सर्जन 80 फीसदी तक कम होने की संभावना है।
सल्फर: बीएस-4 के ईंधन में सल्फ़र की मात्रा 50 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम होता था जबकि बीएस-6 में ये 10 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम होगा।नाइट्रोजन के ऑक्साइड्स : सेलेक्टिव कैटेलिटिक रिडक्शन (एसआरसी) तकनीक का इस्तेमाल अनिवार्य तौर पर करना होगा। इसके जरिये नाइट्रोजन के ऑक्साइड्स को फिल्टर किया जा सकेगा।