छत्तीसगढ़ में विवाह संस्कार के रस्म



छत्तीसगढ़ में विवाह संस्कार का एक विशेष स्थान है। छत्तीसगढ़ में ज्यादातर विवाह का कार्यक्रम तीन से पांच दिनों का होते है जिसमे विभिन्न प्रकार के रस्मो को सम्पन्न किया जाता है। ऐसे ही वैवाहिक रस्में निम्न है :


मंगरोहन :

'मंगरोहन' की रस्म विवाह के समय होने वाले अपशकुन को मिटाने के लए 'टोटका' के रुप में की जाती है। इस रस्म के अवसर पर  'मंगरोहन गीत' गाया जाता है।

दो बांसों का मंडप बनाया जाता है। बांसों को आंगन की मिट्टी खोदकर गड़ाया जाता है। उन बांसों के पास मिट्टी के दो कलश रखे जाते हैं - जिसमें दीप जलता रहता है। उन्हीं बांसों के साथ नीचे जमीन से लगाकर आम, डुमर, गूलर या खदिर की लकड़ी की एक मानवाकृति बनाकर रख दी जाती है। दोनों बांसों के साथ दोनों आकृतियाँ स्थापित की जाती है। बांसों के ऊपर, पूरे आंगन में पत्तियों का झालर लटकाया जाता है। उस मानवाकृति वाली लकड़ी को ही मंगरोहन कहा जाता है। इसके बिना विवाह संस्कार संपन्न नहीं होता।


चुलमाटी :

पहले दिन चुलमाटी की रस्म पूरी की जाती है।  यह रस्म  कुंवारी मिट्टी लाकर की जाती है। घर की स्त्रियाँ ढेड़हीन (सुवासिन ) नए वस्त्र पहनकर देवस्थल या जलाशय के पवित्र स्थान में जाकर सब्बल से मिट्टी खोदने की रस्म पूरी की जाती है।

चुलमाटी के साथ ही शुरू होता है तेल  हल्दी  का कार्यक्रम जिसमे घर के आँगन में बांस बल्ली से मंडप बनाया जाता है जहा कलश की स्थापना कर वर या वधु को तेल हल्दी का लेप लगाया जाता है।  इस मौके पर खास लोक गीत -"एक तेल चढ़गे ओ  हरियर -हरियर , ओ  हरियर -हरियर" गाया जाता है। 


तेलमाटी :

इस संस्कार में भी चुलमाटी की तरह देवस्थल या गांव में निर्धारित स्थल से मिट्टी लाया जाता है। इस मिट्टी को मड़वा (मंडप) के नीचे रखा जाता है। जिसके ऊपर मड़वा बांस व मंगरोहन स्थापित किया जाता है। इस रस्म को मड़वा स्थल पर देवताओं के वास का भाव है।


देवतला :

विवाह में अपने ग्राम देवता को पहला आमंत्रण देने के लिए यह संस्कार किया जाता है, यह आमंत्रण 'देवतला' कहलाता है। महिलाएं स्थानीय मंदिरों में जाकर ठाकुर देव, शीतला, साहड़ादेव, हनुमान आदि देवी-देवताओं को हल्दी व तेल का लेप चढ़ाती है, और आशीर्वाद लेती हैं 


मायन एवं चिकट:

इस रस्म में वर को परदे के आड़ में रख कर सगे सम्बन्धियों  द्वारा वस्त्र , द्रव्य और सामग्री भेट करते है। इस अवसर पर जो लोक गीत गए जाते है उसे मायमौरी  कहते है। इस गीत का महत्व यह होता है कि  जाने अनजाने में हुई गलती उसे माफ़ करते हुए देवी देवता एवं कौटुम्बिक पूर्वज निमंत्रण स्वीकार कर मंगल कार्य को अच्छे से पूरा करा दे। "हाथे जोरि न्यौतेव मोर देवी देवाला "

इसी दिन मायन के बाद देवताला की रस्म पूरी की जाती है। बारात प्रस्थान के पूर्व वर मंगल कामना के लिए देवी देवताओ की पूजा अर्चना के लिए देवालय जाया जाता है। इस रस्म में केवल महिलाओ की हिस्सेदारी है। छत्तीसगढ़ी विवाह में हरदियाही कार्यक्रम होता है, इसे चिकट भी कहा जाता है। इसमें मड़वा के नीचे सभी व्यक्ति हल्दी के रंग में रंग जाता है। इस अवसर में गए जाने वाला गीत है : "अंचरा के छाव दाई मोला देबे देवऊ भउजी अंचरा के छाव "


नहडोरी :

इस अवसर पर वर या वधु को मड़वा ( मंडप ) के नीचे स्वच्छ जल से स्नान करवा कर नए वस्त्र पहनाये जाते है।  इस अवसर पर मउर  सौपने और कंकन बाँधने की रस्म पूरी की जाती है। स्त्रियाँ गीत गति है : "दे तो दाई दे तो दाई अस्सी ओ रुपइया "


परछन ( मौर / मऊर परछन ) :

जब बारात प्रस्थान होता है तो परछन की रस्म पूरी की जाती है। महिलाये वर को नजर और बाहरी आपदाओं से बचाने के लिए कलश में जलते दीपक से आरती उतारती है। यही क्रिया बारात वापसी में भी दोहराई जाती है : "जुग जुग जीवो मोर बेटा , बहुरिया जनम जनम हेवाती  हो "


परघनी / परघउनी :

बाराती जब बारात लेकर वधु के घर पहुंचते है तो उन्हें परघाया (स्वागत) जाता है , जिसे परघनी कहते है। परघनी के बाद बारातियो को जेवनास ले जाया जाता है, इस अवसर पर भड़ौनी गीत गया जाता है।


लालभाजी :

परघनी के बाद लालभाजी की रस्म की जाती है जिसमे वधु की छोटी बहन वर को लालभाजी खिलाती है। यह रस्म के दौरान मजाक मस्ती होती है। 


पाणिग्रहण :

पाणिग्रहण दी शब्दो के मेल से बना है, पाणि + ग्रहण अर्थात हाथ स्वीकार करना। इस रस्म में वधू के पिता वर के हाथ में वधू का हाथ रखकर तथा उसमें आटे का लोई रखकर धागे से बांधते हैं। तत्पश्‍चात वर तथा वधू के पैर के अंगूठों को दूध से धोकर माथे पर चांवल टिकते हैं। यह विवाह का महत्वपूर्ण रस्म जिसमें वर द्वारा वधू को ताउम्र जिम्मेदारी निभाने तथा वधू का समर्पण का भाव निहित है।


भांवर :

बिहाव संस्कार की महत्वपूर्ण क्रिया है। इस रस्म के साथ वर वधु पूर्ण रूप से परिणय सूत्र में बंध जाते है। मड़वा के नीचे सील रखकर उसमे सिंघोलिया रखा जाता है जिसे वघु प्रत्येक फेरे के बाद अपने पैरों से गिरती है। बेदी की अग्नि को साक्षी मानकर मंत्रोचारण के साथ भांवर घूमकर वर वधु जीवन भर साथ निभाने की शपथ लेते है।


टिकावन :

विवाह में आये परिजन अपनी शक्ति के अनुरूप टिकावन के रूप में उपहार देते है। इसके बाद विदाई (बिदा) की रस्म होती है यह बहुत करुणामय कार्यक्रम होता है। 


डोला परछन :

यह एक प्रकार का टोटका होता है। जब डोला (डोली) घर के दरवाजे पर रुकता है तब लड़के की माँ डोली के ऊपर सूपा रखकर पांच मुट्ठी नमक रखती है। ऊपर से मसूर को इस पार से उस पार करती है। इसके बाद मायके के झेंझरी में जिस पर धान भरा होता है, बहू को उस पर पैर रखकर उतारा जाता है।


डहर छेकउनी :

सुआसीन डहर छेकउनी की रस्म के बाद बहु को मुड़हर घर ( रसोई घर ) की ओंर लेजाते है। मुड़हर घर के द्वार पर ही डहर छेकउनी की रस्म करते है। इसमें वर सुआसीनो को नेंग देते है, जिसके बाद बहु मुड़हर में प्रवेश करती है। अंदर जाकर बधू मायके के चांवल को 7 डिब्बा ( सिंघोलिया ) भरती है। चांवल भरने के ढंग से वधू की कार्यकुशलता का अंदाज लगाते हैं। डोला परछन का आशय वधू का नये घर में स्वागत और लक्ष्मी का अभिनन्दन है।


कंकन-मउर/धरमटीका :

यह रस्म मूलतः वर-वधू के संकोच को दूर करने का उपक्रम है। जिसे वर के घर में किया जाता है। इसमें कन्या के घर से लाये लोचन पानी को एक परात में रखकर दुल्हा-दुल्हन का मड़वा के पास एक दूसरे का कंकन छुड़वाया जाता है। फिर लोचन पानी में कौड़ी, सिक्का, मुंदरी, माला खेलाते हैं। जिसमें वर एक हाथ से तथा वधू दोनों हाथ से सिक्का को ढूंढते हैं। जो सिक्का पाता है वह जीत जाता है। यह नेंग 7 बार किया जाता है। इसके बाद सभी टिकावन टिकते हैं जिसे धरमटीका कहते हैं।


कुछ छत्तीसगढ़ी शब्द :

  • मड़वा - मंडप
  • बिहाव - विवाह
  • हरियर - हरा
  • भांवर - गोल परिधी
  • मुंदरी - अंगूठी
  • अंचरा - पल्लू