11/09/2019

पानीपत की लड़ाई




पानीपत की पहली लड़ाई (1526)
पानीपत का पहला युद्ध 21, अप्रैल 1526 को काबुल के तैमूरी शासक ज़हीर उद्दीन मोहम्मद बाबर, की सेना ने दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोधी के मध्य लड़ा गया था और इसने इस इलाके में मुग़ल साम्राज्य की नींव रखी।
यह उन पहली लड़ाइयों मे से एक थी जिसमें बारूद, आग्नेयास्त्रों और मैदानी तोपखाने को लड़ाई में शामिल किया गया था।
इस युद्ध में बाबर की सेना ने दिल्ली के तत्कालीन सुल्तान इब्राहिम लोधी को युद्ध में परास्त किया। युद्ध 21 अप्रैल 1526 को पानीपत के निकट लड़ा गया था। 

पानीपत की दूसरी लड़ाई (1556)
पानीपत का दूसरा युद्ध 5 नवम्बर 1556 को उत्तर भारत के हिंदू शासक सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य ( हेमू ) और अकबर की सेना के बीच लड़ा गया था। अकबर के सेनापति खान जमान और बैरम खान के लिए यह एक निर्णायक जीत थी।
इस युद्ध के फलस्वरूप दिल्ली पर वर्चस्व के लिए मुगलों और अफगानों के बीच चलने वाला संघर्ष अन्तिम रूप से मुगलों के पक्ष में निर्णीत हो गया और अगले तीन सौ वर्षों तक मुगलों के पास ही रहा।

पानीपत की तीसरी लड़ाई (1761) 
पानीपत का तीसरा युद्ध 14 जनवरी 1761 को अहमद शाह अब्दाली और मराठों के बीच लड़ा गया। यह युद्ध 18वी सदी का सबसे बड़ा युद्ध माना गया है। इसमे मराठो की हार हुई। युद्ध में मराठा सेना का प्रतिनिधित्व सदाशिवराव भाऊ ने किया, जबकि विश्वासराव नाममात्र का सेनापति था।

मल्हारराव की कायरता ने इस युद्ध के परिणामो में असर डाला। 14 जनवरी, 1761 को इस युद्ध में यूरोपीय तकनीक पर आधारित मराठों की पैदल सेना एवं तोपखाने की टुकड़ी की कमान इब्राहिम ख़ाँ गार्दी के हाथों में थी। मराठो को प्रारम्भ में सफलताएँ प्राप्त हुई, परंतु युद्ध के बाकी परिणाम मराठों के लिए भयानक रहा। मल्हारराव होल्कर युद्ध के बीच में ही भाग निकला और मराठा फ़ौज पूरी तरह से उखड़ गयी।
विश्वासराव एवं सदाशिवराव भाऊ के साथ अनेक महत्त्वपूर्ण मराठे सैनिक इस युद्ध में मारे गये। इस बारे में इतिहासकार 'जे.एन. सरकार' ने सच ही लिखा है कि - 'महाराष्ट्र में सम्भवतः ही कोई ऐसा परिवार होगा, जिसने कोई न कोई सगा सम्बन्धी न खोया हो, तथा कुछ परिवारों का तो विनाश ही हो गया।'
पानीपत की लड़ाई में भाग लेने आए सदाशिवराम राजा भाऊ की सेना ने पानीपत के पास जाटल रोड पर बसे गांव भादौड़ में पड़ाव डाला था तथा सदाशिवराव भाऊ ने शिव के चमत्कार से प्रभावित होकर प्रगटेश्वर महादेव मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था।