क्या है बेरोज़गारी की परिभाषा ?
जब कार्य करने वाली जनशक्ति अधिक होती है और काम करने की इच्छा होते हुए भी लोगों को प्रचलित मजदूरी पर कार्य/रोजगार नहीं मिलता, तो ऐसी अवस्था को बेरोज़गारी (Unemployment) की संज्ञा दी जाती है। बेरोज़गारी का होना या न होना श्रम की मांग और उसकी आपूर्ति के बीच स्थिर अनुपात पर निर्भर करता है।
जब कार्य करने वाली जनशक्ति अधिक होती है और काम करने की इच्छा होते हुए भी लोगों को प्रचलित मजदूरी पर कार्य/रोजगार नहीं मिलता, तो ऐसी अवस्था को बेरोज़गारी (Unemployment) की संज्ञा दी जाती है। बेरोज़गारी का होना या न होना श्रम की मांग और उसकी आपूर्ति के बीच स्थिर अनुपात पर निर्भर करता है।
रोजगार अयोग्य (unemployables) या पराश्रयी:
ऐसे व्यक्ति जो कार्य तो करना चाहता है परंतु बीमारी के कारण कार्य नहीं कर पाता। इन्हें बेकार अथवा बेरोजगारी से त्रस्त नहीं कह सकते। इन्हें बालक, रोगी, वृद्ध तथा असहाय लोगों को तथा साधु, पीर, भिखमंगे तथा कार्य न करनेवाले जमींदार, सामंत आदि व्यक्तियों को पराश्रयी कहा जा सकता है।
ऐसे व्यक्ति जो कार्य तो करना चाहता है परंतु बीमारी के कारण कार्य नहीं कर पाता। इन्हें बेकार अथवा बेरोजगारी से त्रस्त नहीं कह सकते। इन्हें बालक, रोगी, वृद्ध तथा असहाय लोगों को तथा साधु, पीर, भिखमंगे तथा कार्य न करनेवाले जमींदार, सामंत आदि व्यक्तियों को पराश्रयी कहा जा सकता है।
बेरोज़गारी के प्रमुख प्रकार
संरचनात्मक बेरोज़गारी: सरचनात्मक बेरोज़गारी ऐसी बेरोजगारी को कह सकते है जो अर्थव्यवस्था में होने वाले संरचनात्मक बदलाव के कारण उत्पन्न होती है।
अल्प बेरोज़गारी : अल्प बेरोज़गारी वह होती है जिसमें कोई व्यक्ति जितना समय काम कर सकता है उससे कम समय वह काम करता है अर्थात् काम के सामान्य घंटों से कम काम मिलता है। जिस वजह से वह कुछ समय के लिए 'बेकार' रहता है।
- दृष्य अल्प रोजगार : इस स्थिति में, लोगो को सामान्य घन्टों से कम घन्टे काम मिलता है।
- अदृष्य अल्प रोजगार : इस स्थिति मै, लोग पूरा दिन काम करते हैं पर उनकी आय बहुत कम होती है या उनको ऐसे काम करने पडते हैं।
पूर्ण बेरोज़गारी : ऐसी बेरोजगारी जिसमे व्यक्ति में कार्य करने की इच्छा एवं योग्यता होने के बावजूद उसे काम नहीं मिलता और वह पूरा समय 'बेकार' रहता है। वह पूरी तरह से परिवार के कमाने वाले सदस्यों पर आश्रित होता है। इसे खुली बेरोजगारी भी कहते है।
मौसमी बेरोज़गारी: ऐसी बेरोजगारी जिसमे किसी व्यक्ति को वर्ष के केवल कुछ ही महीनों में काम मिलता है। भारत में कृषि क्षेत्र में यह बेहद आम है क्योंकि बुआई तथा कटाई के सीज़न में अधिक लोगों को काम मिल जाता है, लेकिन शेष वर्ष कार्य ना होने की वजह से वे बेकार रहते हैं।
चक्रीय बेरोज़गारी : ऐसी बेरोज़गारी तब उत्पन्न होती है जब अर्थव्यवस्था में चक्रीय उतार-चढ़ाव आते हैं। आर्थिक तेज़ी-मंदी पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषताएँ हैं। आर्थिक तेज़ी की अवस्था में रोज़गार की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं, जबकि मंदी की स्थिति में रोज़गार मिलने की दर कम हो जाती है।
छिपी/अदृश्य बेरोजगारी : छिपी बेरोजगारी से पीड़ित व्यक्ति वह होता है जो ऐसे दिखाई देता है जेसे कि वह कार्य में लगा हुआ है, परन्तु वास्तव में ऐसा नही होता।