यह सोलर थर्मल पावर प्लांट राजस्थान के आबू रोड स्थित ब्रह्मकुमारी संस्थान में बनाया गया है, इसे इंडिया वन ( India One ) नाम दिया गया है। यह प्लांट 24 घंटे चलता है। यह 24 घंटे चलने वाला दुनिया का पहला सोलर प्लांट। यह प्लांट 25 एकड़ में फैला है, प्लांट में 770 पैराबोलिक रिफ्लेक्टर हैं।
खासियत:
इस प्लांट में ही पहली बार पैराबोलिक रिफ्लेक्टर विथ फिक्स फोकस तकनीक का इस्तेमाल किया गया। ये पैराबोलिक रिफ्लेक्टर किसी सूरजमुखी के फूल की तरह सूरज की दिशा के साथ-साथ घूमते हैं।
लागत एवं छमता:
80करोड़ रुपए की लागत से बना यहप्लांट 5 साल में तैयार हुआ। इसे बनाने में 70%फंडिंग भारत और जर्मनी की सरकार ने की है। 30% पैसा ब्रह्मकुमारी संस्थान ने खर्च किया है। इस प्लांट से ही रोज35 हजार लोगों का खाना बनता है। साथ ही
18हजार यूनिट बिजली से 20 हजार की टाउनशिप को बिजली मिलती है।
प्लांट का इतिहास:
वर्ष 1990 में जर्मनी से साइंसटिस्ट वुल्फगैंग सिफलर एक छोटा सा मॉडल लेकर आए थे। वे इस तकनिक का इस्तेमाल यहां के आदिवासियों के लिए करना चाहते थे, ताकि वे लकड़ियां न जलाएं, भाप से अपना खाना बना लें। उस मॉडल के आधार पर इस प्लांट को यहीं के लोगों के द्वारा तैयार किया गया है। प्लांट का लगभग 90% काम यहीं पर हुआ है। केवल सोलर ग्रेड मिरर अमेरिका से मंगवाए गए है।
खासियत:
इस प्लांट में ही पहली बार पैराबोलिक रिफ्लेक्टर विथ फिक्स फोकस तकनीक का इस्तेमाल किया गया। ये पैराबोलिक रिफ्लेक्टर किसी सूरजमुखी के फूल की तरह सूरज की दिशा के साथ-साथ घूमते हैं।
लागत एवं छमता:
80करोड़ रुपए की लागत से बना यहप्लांट 5 साल में तैयार हुआ। इसे बनाने में 70%फंडिंग भारत और जर्मनी की सरकार ने की है। 30% पैसा ब्रह्मकुमारी संस्थान ने खर्च किया है। इस प्लांट से ही रोज35 हजार लोगों का खाना बनता है। साथ ही
18हजार यूनिट बिजली से 20 हजार की टाउनशिप को बिजली मिलती है।
प्लांट का इतिहास:
वर्ष 1990 में जर्मनी से साइंसटिस्ट वुल्फगैंग सिफलर एक छोटा सा मॉडल लेकर आए थे। वे इस तकनिक का इस्तेमाल यहां के आदिवासियों के लिए करना चाहते थे, ताकि वे लकड़ियां न जलाएं, भाप से अपना खाना बना लें। उस मॉडल के आधार पर इस प्लांट को यहीं के लोगों के द्वारा तैयार किया गया है। प्लांट का लगभग 90% काम यहीं पर हुआ है। केवल सोलर ग्रेड मिरर अमेरिका से मंगवाए गए है।