छत्तीसगढ़ में बहुत से पारम्परिक आभूषणों , गहनों का इस्तेमाल सजने-संवरने के लिये किया जाता है। इन आभूषणों का इस्तेमाल छत्तीसगढ़ के ग्रामीण एवं शहरी दोनो क्षेत्र की महिलओं के द्वारा त्योहार, शादी एवं विशेष अवसरों पर किया जाता है। बहुत से महिलएं इन आभूषणो का इस्तेमाल रोज करते है। आभूषणों के अलावा बहुत से ऐसे परिधान है जिनका इस्तेमाल बहुत कम होता है।
भदई - ये चप्पल होती है जो चमड़े से बनी होती है।
खुमरी - ये बांस की टोपी होती है। हर परिवार के सदस्य बारिश के मौसम में पानी और धूप से बचाव के लिए इसका उपयोग करते हैं। हर घरों में खुमरी होती थी। निदाई और गुड़ाई के समय भी किसान खुमरी को साथ रखते थे।
खेती-किसानी में काम करते समय इस खुमरी का सभी लोग उपयोग करते थे, जहां धूप से राहत मिलती थी, वहीं बारिश में काफी हद तक बचाव होता था। जब ग्रामीण इस खुमरी को लगाते थे उस समय पॉलीथिन का चलन बाजार में नहीं था।
बस्तरिया घुंघरू : इस घुंघरू को धुरवा जनजाति समुदाय के लोग पहनते हैं, इसे सिहाड़ी बीज से बनाया जाता है।
आभूषणों के नाम
पैरतोड़ा (चाँदी)
पैरी (काँसे)
पैजन (चाँदी)
लच्छा (चाँदी)
साँटी (चाँदी)
झांझ (चाँदी)
सान्टी/साटी (चाँदी)
पैर की उंगली में
बिछिया
बिछुआ
चुटकी
हाथ
ऐंठी (चाँदी)
गोल
कंगन या कड़ा टरकउव्वा (चाँदी) कंगन या कड़ा चोटी की तरह गुंथा हुआ
पटा (चाँदी की प्लेन पटली)
ककनी - हर्रया (सोना या चाँदी)
कान
तरकी (सोने का)
छुमका
ढार
खिनवा
करन फूल(अधिकतर सोने के)
खूंटी
आइरन्ज
झारखन
लुरकी
धतुरिया
नाक
फुल्ली
नथ
बुलान्क
गला
रुपियामाला (चाँदी)
तिलरी (मोटा मोटा गोल गोल)
दुरली
कटवा
हथनी
सूता (चाँदी और सोने का)
पुतरी (सोना)
सुँड़रा (सोना)
गऊठला
संकरी
तिलरी
हमेल
कमर
करधन (चाँदी का)
कोहनी के ऊपर
नांगमोरी
बजुबंद
खग्गा
बालो में
फुंदरा
झबली