रॉलेक्ट एक्ट का विरोध करने की वजह से पंजाब प्रांत में डॉ. सतपाल और सैफुद्दीन किचलू को गिरफ्तार कर लिया गया। इसके विरोध में अमृतसर में जुलूस निकाली गई। इस जुलूस के दौरान 5 अंग्रेज सिपाहियों की मृत्यु हो गई। पंजाब प्रान्त के अमृतसर में स्वर्ण मन्दिर के निकट जलियाँवाला बाग में 13 अप्रैल 1919 (बैसाखी के दिन) को रौलेट एक्ट का विरोध कर रहे सभा पर जनरल आर. डायर ने गोलियाँ चलवा दीं। ब्रिटिश राज के अभिलेख इस घटना में 200 लोगों के घायल होने और 379 लोगों के शहीद होने की बात स्वीकार करते है जिनमें से 337 पुरुष, 41 नाबालिग लड़के और एक 6-सप्ताह का बच्चा था। अनाधिकारिक आँकड़ों के अनुसार 1000 से अधिक लोग मारे गए और 2000 से अधिक घायल हुए।
तत्कालीन पंजाब प्रांत के गवर्नर ओ. डायर ने आर. डायर के द्वारा किये गए कार्य को स्वीकार और समर्थन भी किया। बाद में ओकटुबर, 1920 में लार्ड हंटर की अद्यक्षता में 8 सदस्यों ( 5 अंग्रेज, 3 भारतीय) की एक कमेटी बनी जिसने मार्च, 1920 में अपनी रिपोर्ट पेस की। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भी मदनमोहन मालवी की अद्यक्षता में एक कमेटी बनाई।
विरोध:
गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर ने इस हत्याकाण्ड के विरोध-स्वरूप अपनी नाइटहुड को वापस कर दिया। इस घटना से पंजाब पूरी तरह से भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सम्मिलित हो गया। इसके फलस्वरूप गांधी ने 1920 में असहयोग आंदोलन प्रारंभ किया।
जाँच:
इस हत्याकाण्ड की विश्वव्यापी निंदा हुई जिसके दबाव में भारत के लिए सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट एडविन मॉण्टेगू ने 1919 के अंत में इसकी जाँच के लिए हंटर कमीशन नियुक्त किया।
माइकल ओ ड्वायर की हत्या:
ऊधमसिंह ने 13 मार्च 1940 को लंदन के कैक्सटन हॉल में माइकल ओ ड्वायर को गोली चला के मार डाला। ऊधमसिंह को 31 जुलाई 1940 को फाँसी पर चढ़ा दिया गया। गांधी और जवाहरलाल नेहरू ने ऊधमसिंह द्वारा की गई इस हत्या की निंदा करी थी।
स्मारक:
1920 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा एक प्रस्ताव पारित होने के बाद साइट पर एक स्मारक बनाने के लिए एक ट्रस्ट की स्थापना की गई थी। 1923 में ट्रस्ट ने स्मारक परियोजना के लिए भूमि खरीदी थी। अमेरिकी वास्तुकार बेंजामिन पोल्क द्वारा डिजाइन किया गया एक स्मारक, साइट पर बनाया गया था और 13 अप्रैल 1961 को जवाहरलाल नेहरू और अन्य नेताओं की उपस्थिति में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने इसका उद्घाटन किया था।