कलचुरिकालीन शासन व्यवस्था - छत्तीसगढ़


छत्तीसगढ़ ( महकोसल ) क्षेत्र में कलचुरीयो ने जो शासन व्यवस्था सुरुवात में स्थापित की थी उसे त्रिपुरी से पृथक होने के बाद स्थानिय आवश्यकतानुसार विकसित किया गया। कलचुरी शासक कल्याण साय के शासन काल के दौरान लिखी पुस्तिका के अनुसार वर्ष 1868 में चिशम ने कलचुरि शासन प्रबंधन पर एक लेख लिखा।

कलचुरि शासन प्रबंध
प्रशासनिक व्यवस्था - शासन प्रबंधन के लिये मंत्रियों एवं अन्य अधिकारोयो की नियुक्ति की जाती थी। 
राज्य -> राष्ट्र ( संभाग ) -> विषय ( जिला ) -> देश/जनपद ( तहसील ) -> मंडल ( खंड )
सम्पुर्ण राज्य प्रशासनिक सुविधा के लिये गढ़ो में तथा गढ़ ताल्लुको/ बरहो में विभाजित होते थे। गांव के प्रमुख को गौटिया कहा जाता था। राजा के अधिकारियों की नियुक्ति योज्ञता के अनुसार होता था, केवल लेखक एवं ताम्रपत्र लिखने वाले पद परम्परा के अनुसार होता था ।
12 ग्राम - 1 बरहा - प्रमुख 'दाऊ' होता था।
84 ग्राम ( 7 बरहा ) - 1 गढ़ - प्रमुख दिवान होता था।

मन्त्री मंडल -
महासंधिविग्रहक - विदेश मन्त्री
महापुरोहित - राजगुरु
जमाबंदी मन्त्री - राजस्व मन्त्री

अधिकरी एवं कर्मचारी -
अमात्य - विभाग प्रमुख
महाध्यक्ष - सचिवालय प्रमुख

महासेनापति - सैन्य प्रशासन
साधिन - सर्विच्च सैन्य अधिकरी
महापीलुपति - हस्ति सेना प्रमुख ( हांथी)
महाश्वसाधनिक - अश्वसेना प्रमुख

दण्डपाषिक - पुलिस अधिकरी ( जुर्माना वसुली भी इनकी जिम्मेदारी थी।)
दुष्ट-साधक - चोर पकड़ने वाला
नोट: दान किये गये गांव मे इनका प्रवेश वर्जित था, किन्तु राज द्रोह के मामले में ये कहीं भी जा सकते थे।

महाकोट्टपाल - दुर्ग/किले की रक्षा करने वाला
चाट, भट, पिशुन, वेतृक - गांव का दौरा करने वाले
महाप्रमात्र - राजस्व प्रमुख ( भूमि की माप कर के राजस्व निर्धारण )
शोल्किक - कर वसुली करने वाला
दन्डिक - न्याय अधिकारी
पुरोहित - धर्म विभाग प्रमुख
धर्म लेखी - दानपात्रो का लेखा-जोखा
गमागमिक  - यातायात प्रबंधन

स्थानिय प्रशासन -
स्थानिय प्रशासन के लियें गांवो एवं नगरो में पाँच सदायों की 'पंचकुल' नामक संस्था होती थी। पंचकूल के प्रमुख अधिकारी को नगरो में 'पुर प्रधान' एवं ग्रामो में 'ग्राम कुट' या 'ग्राम भोगिक' कहा जाता था।

आय के श्रोत -
कलचुरि काल में खान कर ( लोहा, खनिज), नमक कर, वन चरागाह, आयत-निर्यात कर आदि कर लिये जाते थे। मंडी में सब्जी बचाने के लिये 'युगा' नामक परमिट लेना होता था।

समाजिक स्थिति -
वर्ण व्यवस्था का अस्तित्व तो था, परंतु नियम कठोर नहीं थे। लेखो में शूद्र का उल्लेख नहीं मिलता है।