हुमायूँ ( Humayun )

हुमायूं बाबर के चार पुत्रों में सबसे बड़ा था। हुमायूँ का जन्म बाबर की पत्नी "माहम बेगम" के गर्भ से 6 मार्च, 1508 को काबुल में हुआ था। बाबर के 4 पुत्रों - हुमायूँ, कामरान, अस्करी और हिन्दाल में हुमायूँ सबसे बड़ा था। हुमायूं बाबर की मृत्यु के चार दिन बाद  23 वर्ष की अवस्था, 30 दिसंबर 1530 को सिंहासन पर बैठा। 

हुमायूँ ने अपने भाइयों को पिता की इच्छानुसार साम्राज्य का विभाजन किया। उसने कामरान को काबुल और कांधार, अस्करी को संभल और हिन्दाल को अलवर की जागीर दी। यहां तक कि अपने चचेरे भाई सुलेमान को भी बदख्शां की जागीर दी।

हुमायूं की जीवनी का नाम हुमायूँनामा है जिसे उनकी बहन गुलबदन बेग़म ने लिखी है। 1 जनवरी, 1556 को "दीन पनाह" भवन में सीढ़ियों से गिरने से हुमायूं की मौत हो गई।


निर्वासन:

शेरशाह सूरी शेरशाह ने हुमायूँ को बेलग्राम के युद्ध में पराजित कर दिया था तथा उससे बात से निर्वासित होना पड़ा उसने निर्वासन का कुछ समय काबुल सिंध अमरकोट में बिताया अंत में ईरान के शासक तहमास्य के पास शरण ली । ईरान के शासक की मदद से उसने काबुल कंधार में मध्य एशिया के क्षेत्रों को जीता। उसने वर्ष 1555 में सरहिन्द के युद्ध में शेरशाह के अधिकारियों को हराकर एक बार फिर दिल्ली आगरा पर अधिकार कर लिया। 


बहादुर शाह से संघर्ष: 

गुजरात का शासक बहादुरशाह ने वर्ष 1531 में मालवा और वर्ष  1532 में रायसीन पर आधिपत्य स्थापित किया। इसके अतिरिक्त वर्ष 1534 ईसवी में अजमेर तथा चित्तोड़ ने बहादुरशाह के साथ संधि की। बहादुर शाह ने हुमायूँ के विरोधियों की सहायता की। अंत में मुगलों और बहादुर शाह के बीच संघर्ष हुआ। इस युद्ध में बहादुर शाह के पराजय के बाद गुजरात के बड़े हिस्से तथा मालवा पर मुगलों का आधिपत्य स्थापित हो गया। इन विजित क्षेत्रों का शासन अस्करी को सौंपा गया था। परन्तु, अस्करी गुजरात व मालवा के क्षेत्र का शासन सँभालने में असफल रहा और कुछ समय बाद ही गुजरात का नियंत्रण मुगलों के हाथ से चला गया।



प्रमुख युद्ध एवं अभियान

कालिंजर अभियान : 

वर्ष 1531 में अभियान हुमायूँ ने कालिंजर के शासक प्रतापरूद्र देव के विरुद्ध चलाया था। प्रतापरूद्र ने हुमायूँ की अधीनता स्वीकार कर ली थी।


देवरा का युद्ध: 

वर्ष 1532 में मुग़ल सेना ने अफगान सेना के विरुद्ध लड़ा था। इस युद्ध में अफ़ग़ान सेना का नेतृत्व महमूद लोदी ने किया था।


चुनारगढ़ पर हमला :

वर्ष 1530 हुमायूं ने अफगान शासक शेर खां (शेरशाह सूरी) के विरुद्ध चुनारगढ़ पर हमला किया। शेर खां ने हुमायूं की अधीनता स्वीकार कर ली और अपने लड़के कुतुब खां के साथ एक अफगान टुकड़ी मुगलों की सेवा में भेजी।

वर्ष 1537 में शेरखां की बढ़ती शक्ति को दबाने के लिए हुमायूं ने चुनारगढ़ का दूसरी बार घेरा डाला और किले को अपने अधिकार में कर लिया।

चुनार की विजय के बाद जब वह गौड़ देश पहुंचा जिसे शेर खां ने बर्बाद कर दिया था। हुमायूं ने इस स्थान को पुनः स्थापित किया और इस जगह का नाम जन्नताबाद रखा।


चौसा का युद्ध: 

गौड़देश से लौटते वक्त 15 जून 1939 को बक्सर के निकट चौसा नामक स्थान पर हुमायूं और शेर खां की सेनाओं के बीच युद्ध हुआ, जिसमें हूमायूं की हार हुई। हुमायूं खुद बचने के लिए घोड़े सहित गंगा में कूद गया, जहां एक भिश्ती ने उसकी जान बचाई। आगे चलकर इस भिश्ती को हुमायूं ने एक दिन का बादशाह बनाया था।


बिलग्राम:

अगले साल 17 मई 1940 में बिलग्राम (कन्नौज) में फिर शेरखां और हुमायूं के बीच युद्ध में हुमायूं को हार मिली। हुमायूं भाग कर अमरकोट के राजा बीरसाल के यहाँ शरण ली। हुमायूं ने हिन्दाल के आध्यात्मिक गुरु मीर अली की पुत्री हमीदा बानों से विवाह कर लिया। इन्हीं हमीदाबानो से अकबर पैदा हुआ।


मच्छीवार का युद्ध:

वर्ष 1555 में हुमायूं (मुगल) ने अफगान सरदार नसीब खाँ और तातार खाँ को पराजित पंजाब पर कब्जा कर लिया।


सरहिन्द का युद्ध:

हुमायूं की मुगल सेना ने बैरम खाँ के नेतृत्व में सिकंदर सुर को पराजित किया और 23 जुलाई, 1555 में पुनः दिल्ली पर अधिकार कर लिया।


मकबरा

मुगल सम्राट हुमायूँ का मकबरा दिल्ली के पुराने किले के पास स्थित है। हुमायूँ की मृत्यु के नौ साल बाद इस मकबरे को हुमायूँ की पत्नी हामिदा बानो बेगम द्वारा ने वर्ष 1562 में बनवाना शुरू किया था जबकि संरचना का डिज़ाइन मीरक मिर्ज़ा घीयथ नामक पारसी वास्तुकार ने बनाया था। वर्ष 1993 में इसे यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर के रूप में घोषित किया गया