4/11/2021

भारत के प्राचीन विद्वान, जिन्होंने भारत को विश्वगुरु बनाया था।



विद्वानों की सूची:

 
विद्वान संरक्षक
हेमचन्द्र अन्हिलवाड़ के कुमारपाल चालुक्य
नागार्जुन कनिष्क
अमरसिंह चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य
रविकीर्ति पुलकेशिन
वाकपतिराज भवभूति कन्नौज के यशोवर्मन
हरिसेन समुद्रगुप्त
राजशेखर प्रतिहार शासक महीपाल और महेन्द्रपाल
सोमदेव पृथ्वीराज तृतीय
चन्दबरदाई पृथ्वीराज चौहान
बाणभट्ट हर्ष
दण्डिन पल्लव शासक नरसिंहवर्मन
भारवि पल्लव शासक सिंहविष्णु
गुणाध्याय सातवाहन शासक हाल
जिनसेन राष्ट्रकूट शासक अमोघवर्ष
जयदेव बंगाल के शासक लक्ष्मणसेन
बिल्हण कल्याणी के चालुक्य शासक विक्रमादित्य VI
लक्ष्मीधर कन्नौज के गहड़वाल शासक गोविन्दचन्द्र
कल्हण कश्मीर के शासक हर्ष

  1. आर्यभट (476-550) : प्राचीन भारत के एक महान ज्योतिषविद् और गणितज्ञ थे। इन्होंने आर्यभटीय ग्रंथ की रचना की जिसमें ज्योतिषशास्त्र के अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन है। इसी ग्रंथ में इन्होंने अपना जन्मस्थान कुसुमपुर और जन्मकाल शक संवत् 398 लिखा है। 
  2. चरक : एक महर्षि एवं आयुर्वेद विशारद के रूप में विख्यात हैं। वे कुषाण राज्य के राजवैद्य थे। इनके द्वारा रचित चरक संहिता एक प्रसिद्ध आयुर्वेद ग्रन्थ है। इसमें रोगनाशक एवं रोगनिरोधक दवाओं का उल्लेख है तथा सोना, चाँदी, लोहा, पारा आदि धातुओं के भस्म एवं उनके उपयोग का वर्णन मिलता है। आचार्य चरक ने आचार्य अग्निवेश के अग्निवेशतन्त्र में कुछ स्थान तथा अध्याय जोड्कर उसे नया रूप दिया जिसे आज चरक संहिता के नाम से जाना जाता है 
  3. सुश्रुत : प्राचीन भारत के महान चिकित्साशास्त्री एवं शल्यचिकित्सक थे। उनको शल्य चिकित्सा का जनक कहा जाता है। शल्य चिकित्सा (Surgery) के पितामह और 'सुश्रुत संहिता' के प्रणेता आचार्य सुश्रुत का जन्म छठी शताब्दी ईसा पूर्व में काशी में हुआ था। इन्होंने धन्वन्तरि से शिक्षा प्राप्त की। सुश्रुत संहिता को भारतीय चिकित्सा पद्धति में विशेष स्थान प्राप्त है।
  4. श्रीधराचार्य (जन्म : 750 ई) : प्राचीन भारत के एक महान गणितज्ञ थे। इन्होंने शून्य की व्याख्या की तथा द्विघात समीकरण को हल करने सम्बन्धी सूत्र का प्रतिपादन किया। उनका जीवनकाल 870 ई से 930 ई के बीच था।
  5. नागार्जुन : भारत के धातुकर्मी एवं रसशास्त्री (alchemist) थे। 11वीं शताब्दी में अल बरुनी के द्वारा लिखे दस्तावेजों के अनुसार वे 100 वर्ष पहले गुजरात के निकट दैहक नामक ग्राम में जन्मे थे।
  6. पिंगल : भारत के प्राचीन गणितज्ञ और छन्दःसूत्रम् के रचयिता। इनका काल 400 से 200 ईपू अनुमानित है। छन्द:सूत्र में मेरु प्रस्तार (Pascal's triangle), द्विआधारी संख्या (binary numbers) और द्विपद प्रमेय (binomial theorem) मिलते हैं।छन्दःसूत्रम् पिंगल द्वारा रचित छन्द का मूल ग्रन्थ है और इस समय तक उपलब्ध है। यही छन्दशास्त्र का सर्वप्रथम ग्रन्थ माना जाता है। 
  7. वराहमिहिर (वरःमिहिर) : 5 वीं शताब्दी केे भारतीय गणितज्ञ एवं खगोलज्ञ थे। वाराहमिहिर ने ही अपने "पंचसिद्धान्तिका" में सबसे पहले बताया कि अयनांश का मान 50.32 सेकेण्ड के बराबर है।
  8. कापित्थक (उज्जैन) : इनके द्वारा विकसित गणितीय विज्ञान का गुरुकुल सात सौ वर्षों तक रहा। 550 ई. के लगभग इन्होंने तीन महत्वपूर्ण पुस्तकें बृहज्जातक, बृहत्संहिता और पंचसिद्धांतिका, लिखीं। इन पुस्तकों में त्रिकोणमिति के महत्वपूर्ण सूत्र दिए हुए हैं।
  9. शालिहोत्र (2350 ईसापूर्व): हयगोष नामक ऋषि के पुत्र थे। वे पशुचिकित्सा (veterinary sciences) के जनक माने जाते हैं। उन्होंंने 'शालिहोत्रसंहिता' नामक ग्रन्थ की रचना की। वे श्रावस्ती के निवासी थे।
  10. बौधायन : भारत के प्राचीन गणितज्ञ और शुल्ब सूत्र तथा श्रौतसूत्र के रचयिता थे। महान यूनानी ज्यामितिशास्त्री यूक्लिड से पूर्व ही भारत में कई रेखागणितज्ञ ज्यामिति के महत्वपूर्ण नियमों की खोज कर चुके थे, उन रेखागणितज्ञों में बौधायन का नाम सर्वोपरि है। उस समय भारत में रेखागणित या ज्यामिति को शुल्व शास्त्र कहा जाता था।
  11. लगध ऋषि : वैदिक ज्योतिषशास्त्र की पुस्तक वेदांग ज्योतिष के प्रणेता है। इनका काल 1350 ई. पू. माना जाता है। इस ग्रन्थ का उपयोग करके वैदिक यज्ञों के अनुष्ठान का समय निश्चित किया जाता था। इसे भारत में गणितीय खगोलशास्त्र पर आद्य कार्य माना जाता है। 
  12. ब्रह्मगुप्त (598-668) : प्रसिद्ध भारतीय गणितज्ञ थे। वे तत्कालीन गुर्जर प्रदेश (भीनमाल) के अन्तर्गत आने वाले प्रख्यात शहर उज्जैन (वर्तमान मध्य प्रदेश) की अन्तरिक्ष प्रयोगशाला के प्रमुख थे और इस दौरान उन्होने दो विशेष ग्रन्थ लिखे: ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त और खण्डखाद्यक या खण्डखाद्यपद्धति।
  13. कणाद : आधुनिक दौर में अणु विज्ञानी जॉन डाल्टन के भी हजारों साल पहले महर्षि कणाद ने यह रहस्य उजागर किया कि द्रव्य के परमाणु होते हैं। उनके अनासक्त जीवन के बारे में यह रोचक मान्यता भी है कि किसी काम से बाहर जाते तो घर लौटते वक्त रास्तों में पड़ी चीजों या अन्न के कणों को बटोरकर अपना जीवनयापन करते थे। इसीलिए उनका नाम कणाद भी प्रसिद्ध हुआ।
  14. नागार्जुन : शून्यवाद के प्रतिष्ठापक तथा माध्यमिक मत के पुरस्कारक प्रख्यात बौद्ध आचार्य थे। युवान् च्वाङू के यात्राविवरण से पता चलता है कि ये महाकौशल के अंतर्गत विदर्भ देश (आधुनिक बरार) में उत्पन्न हुए थे। 
  15. रोगविनिश्चय : माधवनिदानम् आयुर्वेद का प्रसिद्ध प्राचीन ग्रन्थ है। इसका मूल नाम 'रोगविनिश्चय' है। यह माधवकर द्वारा प्रणीत है जो आचार्य इन्दुकर के पुत्र थे और 7वीं शताब्दी में पैदा हुए थे। 
  16. भास्कर प्रथम: इनका जन्म एक निषाद परिवार में लगभग 600 ईस्वी के आसपास में में हुआ(600 ई – 680 ईसवी) भास्कर प्रथम भारत भारत के सातवीं शताब्दी के गणितज्ञ थे। संभवतः उन्होने ही सबसे पहले संख्याओं को हिन्दू दाशमिक पद्धति में लिखना आरम्भ किया। उन्होने आर्यभट्ट की कृतियों पर टीका लिखी और उसी सन्दर्भ में ज्या य (sin x) का परिमेय मान बताया जो अनन्य एवं अत्यन्त उल्लेखनीय है। आर्यभटीय पर उन्होने  आर्यभटीयभाष्य नामक टीका लिखी जो संस्कृत गद्य में लिखी गणित एवं खगोलशास्त्र की प्रथम पुस्तक है। आर्यभट की परिपाटी में ही दो खगोलशास्त्रीय ग्रंथ महाभास्करीय एवं लघुभास्करीय लिखेे।
  17. आर्यभट्ट (द्वितीय) : ये गणित और ज्योतिष दोनों विषयों के अच्छे आचार्य थे। इनका बनाया हुआ महासिद्धान्त ग्रंथ ज्योतिष सिद्धांत का अच्छा ग्रंथ है।
  18. महावीर (या महावीराचार्य) : 9वीं शताब्दी के भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषविद् और गणितज्ञ थे। वे गुलबर्ग के निवासी थे। वे जैन धर्म के अनुयायी थे। उन्होने क्रमचय-संचय पर बहुत उल्लेखनीय कार्य किये तथा विश्व में सबसे पहले क्रमचयों एवं संचयों की संख्या निकालने का सामान्यीकृत सूत्र प्रस्तुत किया था।