कश्मीर के प्राचीन राजवंशों के बारे में "राजतरंगिणी" से जानकारी मिलती है। राजतरंगिणी में कश्मीर का प्राचीन इतिहास महाभारत-युद्ध (3138 ई.पू.) से 312 वर्ष पूर्व से माना जाता है। राजतरंगिणी में गोनन्द’ या ‘गोनर्द’ से राजाओं की सूची प्रारम्भ की है। गोनंद प्रथम मगध-नरेश जरासंध का रिश्तेदार था और युधिष्ठिर का समकालीन था। वह कृष्ण के बड़े भाई बलराम द्वारा मारा गया था।
3 ई.पू. में सम्राट अशोक ने कश्मीर में बौद्ध धर्म का प्रसार किया। बाद में कनिष्क ने इसकी जड़ें और गहरी कीं। छठी शताब्दी के आरंभ में कश्मीर पर हूणों का अधिकार हो गया। वर्ष 530 के बाद इस पर उज्जैन साम्राज्य का नियंत्रण हो गया। विक्रमादित्य राजवंश के पतन के पश्चात कश्मीर पर स्थानीय शासक राज करने लगे। वहां हिंदू और बौद्ध संस्कृतियों का मिश्रित रूप विकसित हुआ। कश्मीर के हिंदू राज्यों मं ललितादित्य (वर्ष 724 - 760 ) सबसे प्रसिद्ध राजा हुए जिनका राज्य पूर्व में बंगाल तक, दक्षिण में कोंकण तक पश्चिम में तुर्किस्तान और उत्तर-पूर्व में तिब्बत तक फैला था। ललितादित्य ने अनेक भव्य भवनों का निर्माण किया।
कश्मीर में इस्लाम का आगमान 13वीं और 14वीं शताब्दी में हुआ मुस्लिम शासकों का जैन-उल-अब्दीन (1420-70) सबसे प्रसिद्ध शासक हुए। बाद में चक शासकों ने जैन-उल-अब्दीन के पुत्र हैदरशाह की सेना को खदेड़ दिया और वर्ष 1586 तक कश्मीर पर राज किया वर्ष 1586 में अकबर ने कश्मीर को जीत लिया। वर्ष 1752 में तत्कालीन कमजोर मुगल शासक के हाथ से निकलकर आफगानिस्तान के अहमद शाह अब्दाली के हाथों में चला गया। 67 साल तक पठानों ने कश्मीर घाटी पर शासन किया।
प्रमुख राज वंश:
उत्पल वंश
लोहार वंश
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