डा. नरेन्द्रदेव वर्मा के अनुसार छत्तीसगढ़ी में 8 स्वर हैं। अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ओ। इनके अलावा 2 संध्य अक्षर होते है, ऐ, औ।
व्यंजन :
डा. नरेन्द्रदेव वर्मा के अनुसार 29 व्यंजन प्रयुक्त होते है।
क, ख, ग, घ,
च, छ, ज, झ,
ट, ठ, ड, ढ, ण,
त, थ, द, ध, न,
प, फ, ब, भ, म,
य, र, ल, व,
स, ह
इन व्यंजनों में नह् , म्ह्, रह्,ल्ह्, ङ्, ढ़् को जोड़ने पर कुल व्यंजनों की संख्या 35 हो जाती है।
उच्चारण के आधार पर वर्गीकरण :
कंठव्य ( कंठ व जीभ ) - क्, ख् , ग्, घ् , अ, आ, ङ्, ह
तालव्य (तालु और जीभ) - च् , छ् , ज् ,झ् , इ, ई, य्
मुर्द्दान्य (मुधा और जीभ) - ट्, ठ् , ड् , ढ् , र्
दंत्य (दांत और जीभ) - त् , थ् , द् , ध् , न् , ल् , स्
ओष्ट्य (दोनों होठ) - प् , फ् , ब् , भ् , म्
नासिक्य - न् , न्ह् , म् , म्
उक्षिप्त - ड् , ढ्
संघर्षी - स् , ह्
अर्ध स्वर - य, व
प्रयत्नों के आधार पर वर्गीकरण :
अल्पप्राण - वर्ग 1 व 3 का व्यंजन जैसे - क , ग, च , ट् , ण् , त् , द् , प् , ब् , म् ,र् आदि।
महाप्राण - वर्ण 2 व 4 के व्यंजन जैसे - ख, घ, छ, झ, ठ , ढ , थ , ध , फ, भ, न, न्ह , ल, रह्, व, स आदि।
ध्यान देने योग्य बात यह है कि छत्तीसगढ़ी भाषा में सामान्य बोलचाल की व्यवहार में श, ष, त्र , ज्ञ, क्ष, ऋ अक्षरों का प्रयोग नहीं किया जाता है। हीरालाल काव्योपाध्याय के अनुसार इनके स्थान पर निम्न अक्षरों का प्रयोग किया जाता है:
श, ष के स्थान पर - "स" (जैसे, शीत-सीत, वर्षा-बरसा, विशेष-बिसेस देश-देस)
ज्ञ के स्थान पर - "गिय" (जैसे - ज्ञान के लिए गियान, विज्ञान- बिगियान)
ऐ के स्थान पर - "अई" का (जैसे- ऐसन-अइसन)
त्र के स्थान पर - "तर" (जैसे - त्रिशुल के लिए तिरसूल, त्रेता- तरेता)
क्ष के स्थान पर - "छ" (जैसे - क्षमा के लिए छिमा, क्षण - छन, क्षणिक- छनिक)
ऋ के स्थान पर - रि (जैसे - ऋतु के लिए रितु , ऋषि - रिसि)
श्र के स्थान पर - सर (जैसे - श्रवण के लिए सरवन , श्रम- सरम)