4/07/2022

छत्तीसगढ़ में जन्म संस्कार -Birth Rites in Chhattisgarh



किसी परिवार के लिए बच्चे का जन्म एक महत्वपूर्ण पल होता है। छत्तीसगढ़ में अन्य संस्कारो के जैसे जन्म संबंधित संस्कार भी होते है जो इस महत्वपूर्ण पल को और यादगार बना देते है। इस लेख में हम उन्ही संस्कारो की बात करेंगे।


किसी विशेष अवसर पर गीतों का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान होता है। जन्म भी एक ऐसा ही महत्वपूर्ण अवसर है। छत्तीसगढ़ में जन्म संस्कार विषयक गीत को "सोहर गीत' कहा जाता है। ये गीत गर्भावस्था की सुनिश्चितता से जन्मोत्सव तक गाए जाते हैं। सोहर गीत ज्यादातर पुत्र जन्म की अपेक्षा में गाए जाते हैं।


1. सधौरी :

सधौरी संस्कार गर्भ धारण के सातवें महीने किया जाता है। इस समय गर्भवती महिला को सात प्रकार की रोटियाँ खिलाते हैं। इस वक्त उस महिला के मायके की चीजे आती है जिसे मायके के सधोरी कहते हैं। बेटी के लिये कपड़े गहने भेजते है। इस संस्कार कर अवसर पर महिलाएं सधौरी गीत गातीं है।


ओली भरना :

सधौरी के वक्त दूसरी महिलायें गर्भवती महिला के लिये कपड़े, सात प्रकार की रोटीयाँ लेकर आते हैं और इसे गर्भवती महिला ओली ( गोद ) में रखती है। इसे ही ओली भरना कहते है।


पुलापोहना :

आदिवासी समाज में बच्चे के जन्म के बाद नाल को तीर से काटा जाता है और इस नाल को अपने बाड़ी में ही किसी स्थान पर गाड़ दिया जाता है। इसे गोंडी भाषा में “पुलापोहना” कहते हैं। 


2. छट्ठी संस्कार :

जन्म के 6 दिन बाद छट्ठी कर्म मनाया जाता है, बच्चे का नाल झड़ जाने के बाद छट्ठी मनाई जाती है। छट्ठी संस्कार तक परिवार अशुद्ध माना जाता है। परिवार कोई धार्मिक कार्य नहीं कर सकता है।  छट्ठी में मधु, पीपर, सोंठ, करायत आदि औषधियों द्वारा निर्मित व्यंजन माँ एवं मेहमानों को खिलाये जाते है। दोनों पक्षों द्वारा आनंदोत्सव मनाया जाते है एवं चौका आदि का आयोजन किया जाता है। इसी दिन नवजात शिशु का नामकरण भी किया जाता है।


3. बरही :

बरही की रस्म बच्चे के जन्म के बारहवें दिन किया जाता है। इस दिन माँ को काके पानी (कांके पानी) पिलाया जाता है। यह बहुत पौष्टिक पेय होता है जो माँ के स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है। इसी दिन काजर अंजौनी ( काजल लगाना ) की रस्म भी होती है। कुछ लोग इस रस्म को छठ्ठी के दिन भी कर देते है।


4. मुह जुठार 

अन्नप्राशन संस्कार को ही मुह जुठारना कहते है। यह संस्कार जन्म के 5-6 वें महीने किया जाता है। यह रस्म तसमई ( खीर ) के साथ कि जाति है।


4. हाटुम दायना

निष्क्रमण सनातनी संस्कार के जैसे बच्चा जन्म के नौवें या दसवें महीने मे आदिवासी समाज अपने नवजात बच्चे को घर से बाहर निकालता है। इसे गोंडी में 'हाटुम दायना' कहा जाता है। इसका अर्थ बाजार घुमाने ले जाना होता है। इस संस्कार में घर की बुजुर्ग महिला उस बच्चे को 'बागा पाकर' बाजार लेकर जाती है। बागा पाने का अर्थ है कि साड़ी के छोर से कमर के पास बच्चे को टाँग कर ले जाना होता है।