भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124ए में राजद्रोह की सजा का प्रावधान किया गया है। इस धारा को वर्ष 1860 में जेम्स फिट्जजेम्स स्टीफन (James Fitzjames Stephen) की सिफारिश पर अधिनियमित किया गया था। धारा 124ए के मुताबिक राजद्रोह एक गैर-जमानती अपराध है। इस वजह से इस धारा का इस्तेमाल तत्कालीन अंग्रेज शासन ने भारत में अपने विरोध को किया। इसके इस्तेमाल से महात्मा गांधी जैसे अनेकों क्रन्तिकारियों को जेलों में डाला गया।
वर्ष 1947 के बाद भारत अंग्रेजो से आजाद तो हो गया, परंतु अंग्रेजो के बनाये राष्ट्रद्रोह के कानून से मोह को नहीं छोड़ पाया और यह लगातार बना रहा। वहीं, इस कानून को बनाने वाले ब्रिटेन ने वर्ष 2010 में ही अपने देश में राष्ट्रद्रोह कानून को समाप्त कर दिया।
भारत में IPC की धारा 124 की व्यवहारिकता इस लिए भी कम हो जाती है, क्यो की, भारत में वर्ष 1967 में ही UAPA Act. लागू किया जा चुका है, इसका उद्देश्य भारत की अखंडता और संप्रभुता के खिलाफ गतिविधियों से निपटने के लिए शक्तियां उपलब्ध करना है।
सर्वोच्च न्यायालय ने रोक लगाया :
11 मई, 2022 को सर्वोच्च न्यायालय एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए राष्ट्रद्रोह कानून की धारा 124 ए पर रोक लगा दी।