सविनय अवज्ञा आंदोलन Civil disobedience movement Chhattisgarh

महात्मा गांधी ने साबरमती से विरोध स्वरुप दांडी यात्रा (Dandi/Salt March) आरम्भ कर 6 अप्रैल, 1930 को दांडी (गुजरात) में नमक बना कर कानून का उल्लंघन कर सम्पूर्ण भारत में सविनय अवज्ञा आन्दोलन (Civil disobedience movement) की सुरुआत की। इसे नमक सत्याग्रह (Salt Satyagraha) भी कहा जाता है।इस आंदोलन का प्रभाव सम्पूर्ण देश में था। जिसका अंत गांधी-इरविन समझौते के साथ हुआ। द्वितीय गोलमेज सम्मेलन का कोई परिणाम न निकलने पर 3 जनवरी, 1932 से भारत में द्वितीय सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारम्भ हो गया।


आंदोलन का कारण ?

  1. साइमन कमीशन का विरोध।
  2. वायसराय लॉर्ड इरविन ने भारत के लिए "डोमीनियन स्टेटस" के संबंध में कोई सटीक जवाब ना देना।
  3. नमक कानून।
  4. गाँधीजी की 11 सूत्री माँगों को ब्रिटिश सरकार द्वारा अस्वीकार कर देना।
  5. वर्ष 1929 का कांग्रेस का लाहौर अधिवेशन। जिसमे राष्ट्रीय कांग्रेस ने में घोषणा कर दी थी कि उसका लक्ष्य भारत के लिए पूर्ण स्वाधीनता प्राप्त करना है। 


आन्दोलन के लिए निम्नानुसार कार्यक्रमो को कांग्रेस द्वारा स्वाकृती प्रदान की गई:

  1. नामक कानून के विरोध में नमक बनाना।
  2. महिलाओं के द्वारा शराब और विदेशी वस्तुओं की दुकानों पर धरना देना।
  3. अस्पृश्यता का त्याग।
  4. सरकारी संस्थाओं शिक्षा केन्द्रों एवं उपाधियों का बहिष्कार।
  5. विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार।

छत्तीसगढ़ में प्रभाव:

छत्तीसगढ़ में सविनय अवज्ञा आंदोलन का प्रथम चरण 8 अप्रैल 1930 में रायपुर से पं. रविशंकर शुक्ल के द्वारा प्रारम्भ किया जो 15 अप्रैल 1930 तक वृहद् कार्यक्रम के रूप में चलाया गया। 13 अप्रैल को महाकौशल राजनैतिक परिषद का सम्मलेन बुलाया गया जिसकी अध्यक्षता पं. जवाहर लाल नेहरू को करनी थी, परंतु उनकी इबादतगंज स्टेशन में उनकी गिरफ्तारी के बाद 15 अप्रैल को अधिवेशन का आयोजन किया गया और सेठ गोविन्द दास ने इसकी अध्यक्षता की। इस सम्मेलन में सेठ गोविन्द दास के नेतृत्व में शुक्ल जी के द्वारा कृत्रिम रूप से नमक (Hcl+NaoH) = NaCl + H2O बनाकर नमक कानून तोड़ा गया। इसमें इनके सहयोगी सेठ गोविन्द दास, द्वारिका प्रसाद महंत, लक्ष्मीनारायण दास तथा गयाचार्ण द्विवेदी थे। इस अधिवेशन में प्रान्तीय 'युद्ध समिति' का गठन किया गया। आन्दोलन के प्रचार के दौरान पं. शुक्ल को बालाघाट से वापस आते समयफ्तार कर जबलपुर जेल में डाल दिया गया।

आन्दोलन को सुचारू रूप से चलाने के श्रेय 5 लोगो को दिया जाता है जिन्हें 5 पांडव के नाम से जाना जाता है :

  1. युधिष्ठिर    -    वामन राव लाखे
  2. भीम         -    महंत लक्ष्मीनारायण दास
  3. अर्जुन       -    ठाकुर प्यारेलाल सिंह
  4. नकुल       -    मौलाना अब्दुल रउफ़
  5. सहदेव      -    शिवदास डागा


वानर सेना :

रायपुर में यति यतनलाल द्वारा सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए वानर सेना का गठन किया गया, इसमे मुख्यरूप से बच्चों को शामिल किया गया था, जिसका नेतृत्व बलिराम दुबे आजाद द्वारा किया गया था। इस संगठन का कार्यक्षेत्र रायपुर का ब्राह्मणपारा था। बिलासपुर मे वासुदेव देवरस के द्वारा वानर सेना का गठन किया गया।


छत्तीसगढ़ के विभिन्न स्थानों पर असर

धमतरी :

धमतरी में नरायणराव मेघावाले ने पं. शुक्ल के द्वारा बनाई गई विधि से लगभग 20 ग्राम नमक बनाकर कानून तोड़ा और इस नामक को नीलाम किया जिसे धमतरी के करणजी तेजपाल भाई ने ₹61 में खरीदा। यहाँ स्वयंसेवकों को सत्याग्रह हेतु प्रशिक्षण देने हेतु नत्थूजी जगताप के निवास पर 1 मई, 1930 को सत्याग्रह आश्रम की स्थापना की गई। 


बिलासपुर :

बिलासपुर में सर्वप्रथम आंदोलन का नेतृत्त्व दिवाकर कार्लीकर ने किया। उनके द्वारा आयोजित प्रदर्शन के दौरान दुकान की सारी शराब फेंक दी गई। दिवाकर कार्लीकर गिरफ्तार कर लिया, जिसके बाद वासुदेव देवरस के द्वारा यहाँ वानर सेना का संगठन किया गया। इस समय प्रसिद्ध स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी क्रांति कुमार भारतीय का बिलासपुर आगमन हुआ। वर्ष 1930 को ठाकुर छेदीलाल की अध्यक्षता में जिला राजनीतिक परिषद् का सम्मेलन हुआ जहाँ इस दौरान टाउन हॉल में तिरंगा झण्डा फहराने का निर्णय लिया गया और शासन के विरोध के बावजूद 8 अगस्त को झंडा फहराया गया। इसी समय शासकीय हाई स्कूल में तिरंगा फहराने के कारण 16 अगस्त को क्रान्ति कुमार भारतीय को गिरफ्तार कर 6 माह कैद की सजा दी गई। शासकीय हाई स्कूल में तीन दिनों तक यह झण्डा लहराता रहा।


मुंगेली :

रामगोपाल तिवारी, गजावर साव और कालीचरण शुक्ल आदि ने मुंगेली तहसील में आन्दोलन का नेतृत्व किया।


दुर्ग :

नरसिंह प्रसाद अग्रवाल, वाई.वी. तामस्कर, रत्नाकर झा, रामप्रसाद देशमुख चंद्रिका प्रसाद पाण्डेय, गणेश प्रसाद सिंगरौल आदि ने आंदोलन का नेतृत्व किया। इनके द्वारा दुर्ग में विद्यार्थी कांग्रेस की स्थापना की गई।


जंगल सत्याग्रह :

सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान छत्तीसगढ़ में जंगल सत्याग्रह हुए। नवागांव-रुद्री जंगल सत्याग्रह में पुलिस ने गोली भी चलाई। इस वजह से हम कह सकते है कि छत्तीसगढ़ में सविनय अवज्ञा आंदोलन शांतिपूर्ण नहीं रहा।


गांधी-इरविन समझौता

5 मार्च, 1931 को महात्मा गांधी और तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन के बीच समझौते के तहत सविनय अवज्ञान आंदोलन समाप्त कर दिया गया था। और कांग्रेस द्वितीय गोल मेज सम्मेलन में भाग लेने पर सहमत हो गई।

निम्न मुद्दों पर सहमति बनी :

  1. हिंसा पैदा करने के मामलों में दोषी राजनीतिक कैदियों की तुरंत रिहाई।
  2. तटों के किनारे स्थित गांवों को नमक बनाने का अधिकार प्रदान करना।
  3. सत्याग्रहियों की जब्त की गई संपत्तियों को वापस करना।
  4. विदेशी कपड़ों और शराब की दुकानों पर शांतिपूर्ण ढंग से रोक लगाने की अनुमति।
  5. कांग्रेस पर लगे प्रतिबंधों को हटाना और सभी जारी किए गए अध्यादेश वापस लेना।

द्वितीय सविनय अवज्ञा आंदोलन

द्वितीय गोलमेज सम्मेलन की असफलता के बाद 28 दिसंबर, 1931 को गांधी जी भारत वापस आये और 1 जनवरी को कांग्रेस कार्यसमिति ने आन्दोलन को दुबारा शुरू करने का निर्णय लिया। आंदोलन सुरु होने के कुछ दिनों के भीतर ही प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया।


साम्प्रदायिक पंचाट (1932):

16 अगस्त, 1932 ई. को विभिन्न सम्प्रदायों के प्रतिनिधित्व के विषय पर ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैम्जे मैक्डोनाल्ड ने 'कम्युनल अवार्ड' जारी किया। इसमे हरिजनों के लिए पृथक प्रतिनिधित्व की बात कही गई थी। इस समय महात्मा गांधी यरावदा जेल में थे।


आमरण अनसन और पूना पैक्ट

साम्प्रदायिक पंचाट के विरोध में अपनी माँगें मनवाने के लिए गांधी जी यरावदा जेल (पूना) में ही  20 सितम्बर, 1932 से आमरण अनशन पर बैठ गए। मदन मोहन मालवीय, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और सी. राजगोपालाचारी के प्रयत्नों से 24 सितंबर, 1932 ई. को गाँधी जी और डॉ. बी. आर. अम्बेडकर में पूना समझौता सम्पन्न हुआ। और महात्मा गांधी ने 26 सितंबर को आमरण अनसन तोड़ा।

महात्मा गांधी का छत्तीसगढ़ आगमन :

द्वितीय सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान गांधीजी ने हरिजन कल्याण के उद्देश्य से सम्पूर्ण देश में यात्राएँ की। गांधी जी का छत्तीसगढ़ में द्वितीय प्रवास हुआ ये 22 नवम्बर से 28 नवम्बर, 1933 ई. तक कुल पाँच दिनों तक छत्तीसगढ़ में रुके।


आंदोलन की समाप्ति :

गांधी जी ने इस आंदोलन अचानक वापस नहीं लिया बल्कि मई, 1933 में इसे स्थगित किया गया। अन्ततः अप्रैल, 1934 में गांधीजी ने आंदोलन वापस ले लिया।


छत्तीसगढ़ में प्रभाव :

10 जनवरी, 1932 को ठाकुर प्यारे लाल सिंह ने "कर मत पटाओ" आन्दोलन सुरुआत की। इस आन्दोलन के जुर्म में प्यारे लाल सिंह की गिरफ्तारी कर लिया गया।


सविनय अवज्ञा आन्दोलन के छत्तीसगढ़ में संचालन हेतु पं. रविशंकर शुक्ल को 14 जनवरी, 1932 में प्रथम डिटेक्टर नियुक्त किया गया। इन्होंने संघर्ष समिति का गठन किया गया तथा 23 जनवरी, 1932 में पेशावर दिवस का आयोजन किया था। 

छत्तीसगढ़ में आन्दोलन के दौरान कुल 8 डिटेक्टरों की नियुक्ति की गई। 8 डिटेक्टरों के नाम निम्न है :

  1. पं रविशंकर शुक्ल
  2. पं सुन्दरलाल शर्मा
  3. शंकरराव गनौद वाले
  4. श्रीमती राधाबाई
  5. माधव प्रसाद परगनहिया
  6. रामनारायण मिश्र (हर्षुल )
  7. ब्रह्मदेव दुबे
  8. पं. लक्ष्मीनारायण


प्रमुख घटनाये :

"पत्र बम लिफाफा" (फोस्फेरस युक्त विस्फोटक) योजना रामनारायण मिश्र के द्वारा चलाया गया था। इसमे राष्ट्र विरोधी व्यक्तियों को ये लिफाफे भेजे जाते थे। यह ब्रिटिश सरकार के पर एक सांकेतिक प्रहार था ।

बंदी दिवस का आयोजन ब्रह्मदेव दुबे के द्वारा किया गया, जिसमें 4 अगस्त, 1932 को रायपुर के गांधी चौक पर स्वयं को बंदी बनाकर इसका शुभारम्भ किया गया।

छत्तीसगढ़ की प्रथम एवं एकमात्र - महिला डिटेक्टर महिला राधा बाई थी।


दुर्ग :

12 फरवरी, 1932 को नरसिंह प्रसाद अग्रवाल को गिरफ्तार किया गया। 31 दिसम्बर, 1932 को घनश्याम सिंह गुप्त को झंडा फहराने के आरोप में गिरफ्तार किया गया।


बिलासपुर :

बिलासपुर के सदर बाजार में विरोध में धरना प्रदर्शन करने के आरोप में ठाकुर छेदीलाल, अवधारणा सोनी, बम्हैय्या सोनी को इनके साथियों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया।