यदि आप पेट्रोलियम कोक या Pet-Coke के बारे में नहीं जानते तो हम आप को बताना चाहते है कि यह वर्तमान में कोयले के विकल्प के रूप में इस्तेमाल हो रहा है।
समाचार पत्र BBC के अनुसार भारतीय सीमेंट कंपनियों ने अप्रैल से जुलाई, 2022 तक 1 लाख 60 हजार टन पेट्रोलियम कोक का आयात किया है। जोकि एक चिंता का विषय है।
पेट्रोलियम कोक कैसे बनता है ?
पेट्रोलियम के रिफाइनिंग की प्रक्रिया में दौरान उच्च-सल्फर और उच्च कार्बन कंटेंट वाला सह-उत्पाद उत्पन्न होता है। पेट्रोलियम की रिफाइनिंग के दौरान जो सल्फर, ईंधन से अलग किया जाता है, वह पेट-कोक जैसे अपशिष्ट उत्पादों में पहुँच जाता है।
पेट-कोक की विशेषताएँ :
पेट कोक की विशेषताओं के कारण वर्तमान उद्योगों में ऊष्मीय उर्जा के उत्पादन के लिये पेट-कोक काफी प्रचलित ईंधन है। भारत में इसका सर्वाधिक उपयोग सीमेंट-फैक्ट्रियों द्वारा किया जा रहा है।
- यह उच्च-कार्बन, उच्च-सल्फर और निम्न राख (ash) कंटेंट वाला उत्पाद है।
- इसका कैलोरिफिक मान अधिक होता है और लागत कम होती है।
- कोयले की तुलना में पेट कोक अधिक ऊष्मा उत्पन्न करता है।
- पेट कोक के दहन में अपेक्षाकृत कम वायु की आवश्यकता होती है।
पर्यावरण के लिए खतरा :
पेट कोक सर्वाधिक प्रदूषण फैलाने वाले ईंधनों में से एक है। इसमें प्रदूषण के लिए जिम्मेदार सल्फर की मात्रा 75000 ppm है। कोयले में इस सल्फर की मात्र 4000 ppm होती है। भारत में BS-IV और BS-VI मानकों के लागू होने पर रिफाइंड पेट्रोल में सल्फर की मात्रा और कम हो जाएगी। इससे वाहनों से सल्फर नहीं निकलेगा, परंतु इससे रिफाइनिंग के दौरान उच्च-सल्फर कंटेंट वाले अपशिष्ट का उत्पादन अधिक होगा जो कारखानों तक पहुचेगा।