9/21/2022

तमिलनाडु में 50% से ज्यादा आरक्षण कैसे ?

हाल ही में छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने 58% रिजर्वेशन को खारिज कर दिया, और आरक्षण को 50 से बढ़ाकर 58 फीसदी करना असंवैधानिक माना। उच्च न्यायालय ने छत्तीसगढ़ सरकार के द्वारा जारी 2012 की अधिसूचना, जिसमे 58 फीसदी आरक्षण की बात कही गई थी, इसके तहत राज्य सरकार ने लोकसेवा अधिनियम 1994 की धारा-4 में संशोधन किया गया था। अब उच्व न्यायालय ने इसे रद्द कर दिया है। 


EWS आरक्षण को चुनौती :

वर्ष 2019 में 103वें संविधान संशोधन के तहत EWS कोटा लागू किया गया था। यह आरक्षण आर्थिक आधार पर लागू किया गया था। अब इसे भी सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गयी है। इस पर सुप्रीम कोर्ट में अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने EWS आरक्षण के संबंध में कहा कि एससी, एसटी के लोगों को पहले से ही आरक्षण से लाभान्वित है। ऐसे में EWS कोटे पर सामान्य वर्ग का ही अधिकार है।


इन आरक्षण व्यवस्थाओं को वर्ष 1992 में सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा किये गए निर्णय के आधार चुनौती दी जाती है। वर्ष 1992 में इंदिरा साहनी की याचिका पर फ़ैसला सुनाते हुए जाति-आधारित आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत तय कर दी थी। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि अनुच्छेद 16(4) के तहत कुल आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए।


तो क्या भारत के किसी भी राज्य में 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण नहीं है ?

इसका जवाब है, नहीं। तमिलनाडु में 69 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था है। परन्तु ऐसा कैसे ?


9 नवंबर, 1993 को आयोजित तमिलनाडु विधान सभा के विशेष सत्र में, सर्वसम्मति से केंद्र सरकार से भारतीय संविधान में एक उपयुक्त संशोधन लाने के लिए तत्काल कदम उठाने का आह्वान करने का संकल्प लिया गया। 26 नवंबर, 1993 को तमिलनाडु में एक सर्वदलीय बैठक में आग्रह किया गया था कि पिछड़े वर्गों के कल्याण और उन्नति के लिए 69 प्रतिशत आरक्षण के निरंतर कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने में कोई देरी नहीं होनी चाहिए। इसके बाद तमिलनाडु सरकार ने तमिलनाडु पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति विधेयक, 1993 कानून बनाया और इसे भारत सरकार को अग्रेषित किया। जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 31-सी के अनुसार भारत के राष्ट्रपति के विचारार्थ था।

केंद्रीय गृह मंत्री ने विधेयक के प्रावधानों पर चर्चा करने के लिए 13 जुलाई, 1994 को राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ बैठकें कीं, जिसमे आम सहमति बनी। तदनुसार, राष्ट्रपति ने 19 जुलाई, 1994 को विधेयक को अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी। इसके बाद वर्ष 1994 में ही तमिलनाडु सरकार ने इसे अधिसूचित कर दिया।

अधिसूचना जारी होने के बाद तमिलनाडु सरकार ने 22 जुलाई, 1994 को भारत सरकार से अनुरोध किया कि 1994 के तमिलनाडु अधिनियम को भारत के संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल किया जाए। नौवीं अनुसूची के दायरे में आने के बाद इस अधिनियम को न्यायिक समीक्षा के संबंध में इसे संविधान के अनुच्छेद 31B के तहत संरक्षण प्राप्त हो जाता।

तमिलनाडु सरकार की मांग को पूरा करने के लिए तत्कालीन केंद्र सरकार ने संविधान में 76वां संशोधन किया गया और 257 ए में जोड़ा गया।