हल्बी भाषा वर्तमान दक्षिणी छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में जनसंपर्क की भाषा मानी जाती है। ज्यादातर निवासियों के द्वारा हल्बी का प्रयोग किया जाता है, जिस वजह से यह बस्तर की संस्कृति का अभिन्न अंग है। इस आर्टिकल में हम हल्बी भाषा से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्यों को जानेंगे जो इस भाषा को विशेष बनाती है।
- हल्बी भाषा इंडो-आर्यन भाषा परिवार से संबंधित है। इसे बस्तरी भाषा भी कहा जाता है। यह हलबिक कि उपभाषा है।
- हल्बी मप्र, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, ओडिशा और महाराष्ट्र के क्षेत्रों में बोली जाती है।
- 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में हल्बी बोलने वाले लोगो की संख्या लगभग 766,297 हैं।
- हल्बी लिखने के लिए आमतौर पर देवनागरी और ओडिया का प्रयोग किया जाता है। परंतु वर्ष 2006 में विक्रम सोने के द्वारा हल्बी लिपि, अबुगिडा या शब्दांश वर्णमाला का अविष्कार किया।
- हल्बी लिपि में आठ स्वर और बत्तीस व्यंजन हैं।
- साहित्यकार रूद्र नारायण पाणिग्रही ने हल्बी के 7 हजार से अधिक शब्दों का संकलन कर हिंदी - हल्बी शब्दकोश रच डाला है।
- वर्ष 1937 में जगदलपुर के ठाकुर पूरनसिंह की पुस्तक 'हल्बी भाषा बोध ' का पहला प्रकाशन हुआ था ।
- हल्बी में में विषय-वस्तु-क्रिया शब्द क्रम का प्रयोग किया जाता है। इसमें प्रत्यय का मजबूत उपयोग किया जाता है, और विशेषण को संज्ञान से पहले रखा जाता है।