हिंदुओ के रक्षक - गोपाल पाठा कौन थे ? Who was Gopal Patha


वर्तमान भारत में बहुत कम लोग होंगे जिन्होंने गोपाल पाठा का नाम सुना होगा। लेकिन इतिहास के पन्नो को देखेंगे तो पता चलेगा कि उन्होंने पश्चिम बंगाल के इतिहास में बहुत बड़ी छाप छोड़ी है जिसे वर्तमान भारतीय और खास तौर पर हिन्दू समाज के द्वारा नजरअंदाज कर दिया गया है।

गोपाल चंद्र मुखोपाध्याय (গোপালচন্দ্র মুখোপাধ্যায়) या गोपाल पाठा एक भारतीय व्यवसायी थे। पठा का अर्थ है 'मेमना'। उन्हें ऐसा इसलिए कहा जाता था क्योंकि वह एक मटन की दुकान चलाते थे। गोपाल पाठा का जन्म 13 मई,  1913 को बोबाजार, कोलकाता में हुआ था।


क्यों याद किया जाता है ?

इन्हें मुस्लिम लीग के द्वारा वर्ष 1946 में पाकिस्तान की मांग को ले कर सीधी कार्रवाई के नाम पर किये जा रहे हिंदुओं के नरसंघार से हिंदू लोगों की रक्षा के लिए एक समूह बनाने और प्रतिरोध करने के लिए जाना जाता है।


सीधी कार्रवाई दिवस :

मुस्लिम लीग के मोहम्मद अली जिन्ना ने मुसलमानों के लिए अलग देश की मांग के लिए 16 अगस्त, 1946 को सीधी कार्रवाई दिवस (Direct Action Day) के रूप में चुना था। जिसे हम "कलकत्ता दंगा" के रूप में जानते है। जिसकी घोषणा 13 अगस्त को ही कर दी गई थी। जिन्ना ने घोषणा की कि या तो हमारा भारत "विभाजित भारत या नष्ट भारत" होगा। जिसके बाद कोलकाता में गैर मुसलमानों का नरसंघार सुरु हो गया जिसे हम 1946 कलकत्ता हत्याओं के रूप में भी जाना जाता है।

सीधी कार्रवाई के लिए 16 अगस्त को ही इस लिए चुना गया क्यों कि यह रमज़ान का 18वां दिन था, जिस दिन बद्र की लड़ाई लड़ी गई थी और जीती गई थी - एक युद्ध जो खुद पैगंबर मुहम्मद ने काफिरों के खिलाफ लड़ा था।

मुस्लिम लीग के मुखपत्र द स्टार ऑफ इंडिया के 13 अगस्त 1946 के अंक में कहा गया है, "मुसलमानों को यह याद रखना चाहिए कि ... रमजान में ही अल्लाह ने जिहाद की अनुमति दी थी। यह रमज़ान में था कि बद्र की लड़ाई, इस्लाम और हीथेनिज़्म के बीच पहला खुला संघर्ष, 313 मुसलमानों द्वारा लड़ा और जीता गया था और फिर से यह रमज़ान में था कि पवित्र पैगंबर के अधीन 10,000 मुसलमानों ने मक्का पर विजय प्राप्त की और स्वर्ग के राज्य और राष्ट्रमंडल की स्थापना की अरब में इस्लाम का। मुस्लिम लीग सौभाग्यशाली है कि वह इस पवित्र महीने में अपनी कार्रवाई शुरू कर रही है।”


कलकत्ता के तत्कालीन मेयर सैयद मुहम्मद उस्मान ने एक पत्रक जारी किया था जिसमें कहा गया था: काफिरों! तुम्हारा अंत दूर नहीं है! तुम्हारा नरसंहार किया जाएगा!


गोपाल पाठा ने प्राकृतिक आपदा के दौरान साथी नागरिकों की मदद करने के लिए युवा पुरुषों के एक संगठन "भारत जाति वाहिनी" की स्थापना की थी।


गोपाल पाठा ने लोगो की रक्षा कैसे की ?

मुस्लिम लीग के द्वारा 16 अगस्त को सीधी कार्रवाई की सुरुआत करने के बाद 17 अगस्त को गोपाल पाठा ने भारत जयति बाहिनी के अपने युवकों के साथ हुन्दुओं की रक्षा करने की योजना बनाई। 

याशमीन खान ने "The Great Partition" में लिखा है कि "हमने सोचा था कि अगर पूरा क्षेत्र पाकिस्तान बन गया, तो अधिक अत्याचार और दमन होगा। इसलिए मैंने अपने सभी लड़कों को एक साथ बुलाया और कहा कि अब जवाबी कार्रवाई करने का समय आ गया है।' उन्होंने इसे अपना देशभक्ति कर्तव्य माना"

जिसके बाद 18 से 20 तारीख तक, गोपाल पाठा और उनके लोगों ने मुस्लिम लीग के हमलावरों को अधिक नहीं तो समान मात्रा में नुकसान पहुँचने लगे।

इतिहासकार संदीप बंदोपाध्याय ने लिखा, "उन्हें हर जगह प्रतिरोध का सामना करना पड़ा।" 

ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि मुस्लिम लीग के विपरीत गोपाल पाठा ने मुस्लिम महिलाओं और बच्चों या वृद्धों और अशक्तों को नहीं छुआ था। इस प्रतिशोध के केवल दो दिनों के बाद, 19 अगस्त तक मुसलमान अपने आप को असुरक्षित महसूस करने लगे। इसके बाद 21 अगस्त को बंगाल में वायसराय का शासन लागू हुआ।

हरे कृष्ण शर्मा के द्वारा लिखित पुस्तक "A historico-political retrospection of deeds of SINGLE EYED MAHATMA" में बताया गया है कि " गांधीजी वायसराय की शाही गाड़ी में घटनास्थल पर पहुंचे और शांति और अहिंसा अपील की और मुसलमानों के अज्ञानपूर्ण पाप को क्षमा करने करने को कहा! तब गोपाल पाठा ने उनके उपदेश और अहिंसा के अर्थ को मानने से इनकार कर दिया और गांधी महात्मा से कहा कि गीता हमें उपदेश देती है कि जो अत्याचार और अत्याचार को सहन करता है वह अत्याचारी से अधिक पापी है, और गीता के अनुसार अहिंसा का सही अर्थ हिंसा का अंत करना है।

गोपाल पाठा ने गांधीजी से आगे पूछा कि जब वे हिंदुओं को क्रूरता से मार रहे थे तो वे अपने प्रिय मुसलमानों को अहिंसा का उपदेश देने क्यों नहीं आए? और आगे कहा- "अब नोआखली जाकर देखो कि तुम्हारे प्यारे मुसलमान वहाँ हिन्दुओं पर किस प्रकार की अहिंसा का आचरण कर रहे हैं, तुम एक आँख वाले पूर्वाग्रही महात्मा"। source 


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