पाइथागोरस थ्योरम (प्रमेय) क्या है? और क्या इसकी खोज भारतीय ऋषि ने की थी ? pythagoras theorem invented in india
पाइथागोरस प्रमेय का उपयोग गणित में एक समकोण त्रिभुज की तीन भुजाओं के बीच यूक्लिडियन ज्यामिति में एक मूलभूत संबंध है। इसमें कहा गया है कि ' किसी समकोण त्रिभुज के कर्ण पर बना हुआ वर्ग, शेष दो भुजाओं पर बने हुए वर्गों के बराबर होता है।' इस प्रमेय को भुजाओं a, b और कर्ण c की लंबाई से संबंधित समीकरण के रूप में a²+b²=c² ऐसे लिखा जा सकता है। इस प्रमेय का नाम 570 ईसा पूर्व जन्मे ग्रीक दार्शनिक पाइथागोरस के नाम पर रखा गया है।
पाइथागोरस थ्योरम में विवाद क्यों है ?
कर्नाटक सरकार द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP), 2020 को लागू करने के लिए बनाई गई थी। टास्क फोर्स के प्रमुख मदन गोपाल (पूर्व आईएएस अधिकारी) के मुताबिक, ‘पाइथागोरस प्रमेय की जड़ें वैदिक गणित में हैं। इससे पहले जनवरी 2015 में तत्कालीन केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने भी इंडियन साइंस कांग्रेस में पाइथागोरस प्रमेय की खोज का श्रेय भारतीय विद्वानों को दिया था।
क्या पाइथागोरस प्रमेय भारतीय शास्त्रों में है ?
भारत में वैदिक काल के दौरान रचे गए शुल्बसूत्रों में वर्तमान पाइथागोरस प्रमेय के समान प्रमेय सुविकसित स्वरूप में मिलते है। शुल्ब एक संस्कृत भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ नापने की रस्सी या डोरी होता है। शुल्ब सूत्रों में यज्ञ-वेदियों को नापना, उनके लिए स्थान का चुनना तथा वेदि निर्माण आदि विषयों का विस्तृत वर्णन है। ये भारतीय ज्यामिति के प्राचीनतम ग्रन्थ हैं। प्राचीन भारतीय गणित में ज्यामिति के लिए 'शुल्बविज्ञान' शब्द का प्रयोग किया जाता था।
निम्नलिखित शुल्ब सूत्र इस समय उपलब्ध हैं: आपस्तम्ब शुल्ब सूत्र, बौधायन शुल्ब सूत्र, मानव शुल्ब सूत्र, कात्यायन शुल्ब सूत्र, मैत्रायणीय शुल्ब सूत्र, वाराह, वधुल, हिरण्यकेशिन।
बौधायन का सूत्र (1.48) :
दीर्घचतुरश्रस्याक्ष्णया रज्जुः पार्श्वमानी तिर्यग् मानी च
यत् पृथग् भूते कुरूतस्तदुभयं करोति॥
अर्थात् विकर्ण पर कोई रस्सी तानी जाए तो उस पर बने वर्ग का क्षेत्रफल लंबवत भुजा पर बने वर्ग और क्षैतिज भुजा पर बने वर्ग के जोड़ के बराबर होता है।
तो इस प्रमेय को पाइथागोरस प्रमेय किसने बोला ?
यूनानी गणितज्ञ यूक्लिड (Euclid), जिन्होंने पाइथागोरस प्रमेय का तार्किक ढांचा दिया। उन्होंने अपनी किताब 'द एलिमेन्ट्स' में 'पाइथागोरस प्रमेय' शब्द का प्रयोग नही किया है, उन्होने सिर्फ इसकी प्रमाणप्र स्तुत की है। यूक्लिड के काफी बाद प्रोक्लस लाइकियस (जन्म- 412 ई.) आदि समीक्षकों ने इस प्रमेय को पाइथागोरस प्रमेय का नाम दिया।