बांग्लादेश में तख्तापलट का इतिहास



वर्ष 1971 में बांग्लादेश में स्वतंत्रता के बाद से कई बार सत्ता पलट हुए हैं। स्वतंत्रता के बाद से ही देश को राजनीतिक अस्थिरता और सत्ता के लिए संघर्ष का सामना करना पड़ा है।वर्ष 1971 से दिसंबर 2011 तक, बांग्लादेश में कुल 29 सैन्य तख्तापलट या तख्तापलट की कोशिश हुई  हैं। प्रमुख तख्तापलट वर्ष 1975 में शेख मुजीबुर रहमान की हत्या और वर्ष 1982 में हुसैन मोहम्मद इरशाद द्वारा किया गया तख्तापलट हैं।


1975: 

15 अगस्त 1975 को बांग्लादेश के इतिहास का सबसे काला दिन माना जाता है। इस दिन बांग्लादेश के संस्थापक और पहले राष्ट्रपति शेख मुजीबुर रहमान और उनके परिवार के अधिकांश सदस्यों की हत्या कर दी गई थी। इस तख्तापलट का नेतृत्व मध्यम श्रेणी के सैन्य अधिकारियों ने किया था, जिन्होंने मुजीब की धर्मनिरपेक्ष सरकार को खोंडेकर मुश्ताक अहमद के नेतृत्व वाली इस्लामी सरकार से बदलने की योजना बनाई थी। यह तख्तापलट बांग्लादेश के राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य को हमेशा के लिए बदलने वाला साबित हुआ।


खालिद मुशर्रफ और जियाउर रहमान का संघर्ष

3 नवंबर 1975 को ब्रिगेडियर खालिद मुशर्रफ ने खोंडेकर मुश्ताक अहमद को सत्ता से हटा दिया। खालिद मुशर्रफ को शेख मुजीब की सरकार का समर्थक माना जाता था। उन्होंने मेजर जनरल जियाउर रहमान, सेना प्रमुख और स्वतंत्रता संग्राम के साथी नेता को नजरबंद कर दिया। यह तख्तापलट ढाका में सत्ता के गलियारों में हंगामा और गलत सूचना फैलाने का कारण बना। खालिद मुशर्रफ ने रहमान को फांसी नहीं दी, संभवतः दोनों अधिकारियों के बीच व्यक्तिगत मित्रता के कारण।


7 नवंबर 1975:

7 नवंबर 1975 को बांग्लादेश में वामपंथी सैन्यकर्मियों द्वारा एक और तख्तापलट हुआ। इस तख्तापलट में खालिद मुशर्रफ की हत्या कर दी गई, और मेजर जनरल जियाउर रहमान को नजरबंदी से मुक्त कर दिया गया। इस तख्तापलट ने जियाउर रहमान को सत्ता पर कब्जा करने और राष्ट्रपति बनने का अवसर दिया। 


जियाउर रहमान की भूमिका

जियाउर रहमान ने बांग्लादेश में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने सेना और राजनीति में अपनी पकड़ मजबूत की और 1977 में राष्ट्रपति बने। उनके शासनकाल के दौरान भी बांग्लादेश में कई बार अस्थिरता और तख्तापलट के प्रयास हुए, लेकिन उन्होंने अपनी सत्ता को बरकरार रखा। वर्ष 1981 में जियाउर रहमान की हत्या के बाद बांग्लादेश में फिर से राजनीतिक अस्थिरता आ गई।


1982: 

24 मार्च 1982 को लेफ्टिनेंट जनरल हुसैन मोहम्मद इरशाद ने राष्ट्रपति अब्दुस सातर को हटाकर सत्ता पर कब्जा कर लिया। इरशाद का शासनकाल एक दशक तक चला, जिसमें उन्होंने कई बार आपातकाल की घोषणा की और राजनीतिक विरोधियों को दबाने के लिए कड़े कदम उठाए। उनका शासनकाल वर्ष 1990 में बड़े पैमाने पर जन आंदोलन के बाद समाप्त हो पाया।


1996:

वर्ष 1996 में जनरल अब्दुल वाहीद ने एक तख्तापलट की कोशिश की थी, लेकिन वह असफल रहा और सरकार पर उनका नियंत्रण नहीं हो सका।


2007: 

वर्ष 2007 में राजनीतिक संकट के दौरान सेना ने हस्तक्षेप किया और राष्ट्रपति इयाजुद्दीन अहमद ने आपातकाल की घोषणा की। सेना ने एक गैर-राजनीतिक अंतरिम सरकार की स्थापना की थी। दिसंबर 2008 में सैन्य सरकार द्वारा संसदीय चुनाव कराए जाने के बाद तख्तापलट समाप्त हो गया।


2011: 

दिसंबर 2011 में सेना के कुछ हिस्सों द्वारा एक तख्तापलट की कोशिश की गई, लेकिन वह विफल रही। इस विफल प्रयास के बाद कई सैनिकों को गिरफ्तार किया गया और उन पर मुकदमा चलाया गया।