राउत नाचा / गहिरा नृत्य - Raut Nacha


इसे गहिरा नृत्य भी कहते है, यह एक पारंपरिक नृत्य है।  यह नृत्य छत्तीसगढ़ के यादवों ( राउत ) द्वारा दीवाली ( देव प्रबोधनी एकादशी से एक पखवाड़े तक ) के अवसर पर किया जाता है।  लोग विशेष वेशभूषा पहनकर हाथ में सजी हुई लाठी ( लकड़ी ) लेकर टोली में गाते एवं नाचते है।  जो कि देखने में अत्यंत सुन्दर दिखता है।

यह शौर्य एवं श्रृंगार का नृत्य है। लोग दोहा गाते हुए तेज गाती से नृत्य करते है।  जिसमे पैरो की थिरकन व लय का विशेष महत्व है। नाचते हुए ये गांव में प्रत्येक घर के मालिक से आशिर्वाद लेते है।

यह नृत्य केवल पुरुष वर्ग ही भाग लेते है। इसमें बाल, किशोर, युवा, प्रौढ़ सभी भाग लेते हैं। नाचा दोहा से प्रारंभ होती है प्रारंभ में देवी-देवताओं की वंदना की जाती है।
'जयमहामाय रतनपुर के, अखरा के गुरु बैताल।
चौसठ जोगिनी पुरखा के, बंईया म होने सहाय।

इस लोक नृत्य में मोहरी, गुदरुम, निशान, ढोल, डफड़ा, टिमकी, झुमका, झुनझुना, झांझ, मंजीरा, मादर, मृदंग, नगाड़ा आदि विभिन्न वाद्यों का प्रयोग किया जाता है।

मातर तिहार में राउत नाचा की परंपरा है।