ऐतिहासिक महत्व (सिरपुर का इतिहास):
4 शताब्दी ईस्वी के इलाहाबाद स्तंभ शिलालेख में सिरपुर को श्रीपुरा के रूप में वर्णित किया गया है। यह दक्षिण कोसल साम्राज्य के लिए प्रमुख वाणिज्यिक और धार्मिक महत्व वाला राजधानी शहर था। यह शरभापुरिया राजवंश की राजधानी थी, उसके बाद पांडुवंशी राजवंश की राजधानी बनीं। छठी शताब्दी के मध्य में इस क्षेत्र में हिंदू शैव राजा तीवरदेव और 8वीं शताब्दी के राजा शिवगुप्त बलार्जुन ने राज्य में हिंदुओं, बौद्धों और जैनियों के लिए मंदिरों और मठों की स्थापना की। 7 वीं शताब्दी के चीनी बौद्ध तीर्थयात्री ह्वेनसांग ने इसका दौरा किया था।
पाण्डु वंश के हर्षगुप्त की मृत्यु के पश्चात् रानी वास्टा ने उनके याद में श्रीपुर लक्ष्मणेश्वर मंदिर ( लक्षमण मंदिर ) का निर्माण करवाया था जो विष्णु को समर्पित है।
सिरपुर में खुदाई की शुरुआत कब हुई ? ( Excavation in Sirpur )
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के एक अधिकारी जेडी बेगलर ने वर्ष 1872 में यहां कुछ मंदिरों के खंडहरों का पता लगाया था।
सिरपुर में सीमित पुरातात्विक खुदाई 1953 और 1955 के बीच सागर विश्वविद्यालय (वर्तमान में मध्य प्रदेश में डॉ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय) द्वारा की गई।
पुरात्विक अवशेषों की वास्तविक खोज 21वीं सदी में वर्ष 2000 और 2007 के बीच (जब 184 टीले की पहचान की गई थी) और फिर वर्ष 2009 से 2011 तक। वर्ष 2009 में, कई कांस्य छवियां बुद्ध और एक विशाल महल परिसर की खोज की गई।
यहां उत्खनन से 12 बौद्ध विहार, 1 जैन विहार, बुद्ध और महावीर की अखंड मूर्तियाँ, 22 शिव मंदिर और 5 विष्णु मंदिर, शक्ति और तांत्रिक मंदिर, भूमिगत अन्न भंडार बाजार और छठी शताब्दी का स्नानघर मिला है।
पुरातात्विक एवं धार्मिक स्थल :
आनंद प्रभु कुटी विहार
स्वास्तिक विहार
लक्ष्मणेश्वर मंदिर