1952 में भारत में कंप्यूटर युग की शुरुआत भारतीय सांख्यिकी संस्थान (Indian Statistical Institute) कोलकाता से हुई। इस आईएसआई में वर्ष 1954 में भारत का पहला स्वदेशी इलेक्ट्रिक एनालॉग कंप्यूटर ( an indigenous electronic analog computer) बनाया गया था। इसे वैज्ञानिक और गणितज्ञ समरेंद्र कुमार मित्रा (Samarendra Kumar Mitra) और उनके साथियों ने बनाया था। यह कंप्यूटर 10 X 10 की मैट्रिक्स को हल कर सकता था।
वर्ष 1956 में भारत के आईएसआई ( ISI ) कोलकाता में भारत का प्रथम इलेक्ट्रोनिक डिजिटल कंप्यूटर HEC – 2M स्थापित किया गया जिसे ब्रिटेन में बनाया गया था। इसके साथ भारत जापान के बाद एशिया का दूसरा ऐसा देश बन गया, जिसने कंप्यूटर तकनीक को अपनाया था।
TIFRAC (Tata Institute of Fundamental Research Automatic Calculator) :
यह पहला कंप्यूटर था जिसका निर्माण भारत में किया गया था। सुरुवात में TIFRAC एक
पायलट मशीन था, जिसकी सुरुवात 1955 में की गयी थी। रंगास्वामी नरसिम्हन (Rangaswamy Narasimhan) ने TIFRAC को विकसित करने वाली टीम का नेतृत्व किया। इस मशीन का निर्माण 1955 में सुरु हुआ और 1960 में इसे औपचारिक साधिकार (commissioned) किया गया।
TIFRAC के वैज्ञानिको के द्वारा गणना के लिए विकसित पहली पीढ़ी का मेन-फ्रेम कंप्यूटर को टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR), मुंबई में 22 फरवरी, 1960 को कमीशन किया गया था, जिससे एशिया में भारत ऐसा पहला देश बना जिसने इस तरह का के मशीन का निर्माण किया।
तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा 15 जनवरी, 1962 को TIFR का दौरा करने पर मशीन को 'TIFRAC' (टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च ऑटोमैटिक कैलकुलेटर) नाम दिया गया था। वर्ष 1965 तक इस कंप्यूटर इस्तेमाल होता रहा।
ISIJU :
इस कंप्यूटर को दो संस्थाओं भारतीय सांख्यिकी संस्थान (Indian Statistical Institute) और कोलकाता की जादवपुर यूनिवर्सिटी (Jadavpur University) ने मिल कर तैयार किया था। इसी कारण इसे ISIJU नाम दिया गया। ISIJU एक ट्रांजिस्टर युक्त कंप्यूटर था। इसका निर्माण 1966 में किया गया था। यह भारत का पहला solid state कंप्यूटर था।
कंप्यूटर सोसायटी ऑफ इंडिया ( Computer Society of India ) :
कंप्यूटर सोसायटी ऑफ इंडिया भारत में कंप्यूटर पेशेवरों का पहला और सबसे बड़ा निकाय है। यह कुछ कंप्यूटर पेशेवरों द्वारा 6 मार्च 1965 को शुरू किया गया था और अब यह कंप्यूटर पेशेवरों का प्रतिनिधित्व करने वाला राष्ट्रीय निकाय बन गया है।
डिपार्टमेंट ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स (Department of Electronics) :
वर्ष 1970 में भारत में डिपार्टमेंट ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स की शुरुआत हुई जिसका मकसद सार्वजनिक क्षेत्र में कंप्यूटर डिविजन की नीव रखना था। वर्ष 1978 में IBM के अलावा दूसरी प्राइवेट सेक्टर की कंपनियों ने भारत में कंप्यूटर बनाना शुरू किया।
सेंटर फॉर दी डेवेलपमेंट ऑफ टेलीमैटिक्स (C-DOT) :
तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के एडवाइजर सैम पिटोदा ने सेंटर फॉर दी डेवेलपमेंट ऑफ टेलीमैटिक्स C-DOT लॉन्च किया। इसकी शुरुआत 1984 में की गई जिसका मकसद डिजिटल एक्सचेंज का डिजाइन और डेवलपमेंट करना था। बाद में इसका विस्तार किया गया और अब यह सरकार की एक बॉडी है जो इंटेलिजेंट कंप्यूटर सॉफ्टवेयर ऐप्लिकेशन बनाने का काम करती है।
परम सुपर कंप्यूटर ( Param Super Computer ) :
भारत के द्वारा वर्ष 1980 में अमरिकी कंपनी से सुपर कंप्यूटर खरीदने के प्रयास में असफल होने के बाद वर्ष 1988 में डिपार्टमेंट ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स और इसके डायरेक्टर डॉ विजय भटकर की अगुवाई में सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ एडवांस्ड कंप्यूटिंग (C-DAC) की स्थापना पुणे में की। सीडैक को 3 साल का शुरुआती समय दिया गया और सुपर कंप्यूटर को डेवलप करने के लिए 30 करोड रुपए की शुरुआती फंडिंग की गई। यह लगभग उतना ही समय और पैसा था जोकि अमेरिका से सुपर कंप्यूटर Cray को खरीदने में लगने वाला था।
C-DAC के वैज्ञानिकों ने जी जान लगा कर वर्ष 1990 में सुपर कंप्यूटर का प्रोटोटाइप मॉडल बना लिया गया और 1990 में ज्यूरिख में हुए सुपर कंप्यूटिंग शो में यह कंप्यूटर एक बेंच मार्क बनकर उभरा। भारत द्वारा बनाए गए परम 8000 के प्रोटोटाइप ने सुपर कंप्यूटिंग शो में दुनिया के लगभग सभी देशों के कंप्यूटर्स को पीछे छोड़ दिया और अमेरिका के बाद दूसरे नंबर पर काबिज हो गया। इसके बाद 1 जुलाई, 1991 में सामने आया PARAM 8000 सुपर कंप्यूटर। यह भारत का अपना खुद का बनाया सुपर कंप्यूटर था। परम शब्द संस्कृत भाषा से लिया गया है जिसका मतलब होता है "सबसे ऊपर"।
राष्ट्रीय सुपर कंप्यूटिंग अभियान (NSM) के तहत निर्मित "परम सिद्धि" (Param Siddhi) नामक भारतीय सुपर कंप्यूटर को विश्व के 500 सबसे शक्तिशाली कंप्यूटरों की सूची में 63 वां स्थान प्राप्त हुआ है। - 2020 top 500