11/24/2020

लाचित बरफूकन (चाउ लासित फुकनलुंग) - Lachit Borphukan



जन्म : 24 नवम्बर 1622 

मृत्यू : 25 अप्रैल 1672


लाचित सेंग कालुक मो-साई (एक ताई-अहोम पुजारी) का चौथा पुत्र था।उनका जन्म सेंग-लॉन्ग मोंग, चराइडो में ताई अहोम के परिवार में हुआ था। उनका धर्म फुरेलुंग अहोम था। लाचित बरफूकन (चाउ लासित फुकनलुंग) आहोम साम्राज्य के एक सेनापति और बरफूकन थे।फु-कन-लौङ या बरफुकन आहोम सामराज्य के पाँच पात्र मन्त्रियों में से एक थे। इस पद का सृजन अहम राजा स्वर्गदेउ प्रताप सिंह ने किया था।

लाचित बरफूकन, वर्ष 1671 में मुग़ल सेना के विरुद्ध हुई सराईघाट की लड़ाई में अपनी नेतृत्व-क्षमता के लिए जाने जाते हैं, जिसमें असम पर पुनः अधिकार प्राप्त करने के लिए रामसिंह प्रथम के नेतृत्व वाली मुग़ल सेनाओं को विफल कर दिया गया था। लगभग एक वर्ष बाद बीमारी के कारण उनकी मृत्यु हो गई। 

असम में प्रति वर्ष 24 नवम्बर को 'लाचित दिवस' के रूप में मनाया जाता है। राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के द्वारा लाचित बोड़फुकन के नाम पर सर्वश्रेष्ठ कैडेट को लाचित मैडल से सम्मानित किया जाता है।


सैन्य जीवन:

प्रारंभ में लचित को अहोम साम्राज्य के राजा चक्रध्वज सिंह की शाही घुड़साल के अधीक्षक और महत्वपूर्ण सिमलूगढ़ किले के प्रमुख के रूप में नियुक्त किया गया था। लचित जल्दी ही अहोम साम्राज्य के सेनापति बन गए। "बरफूकन" उनकी पदवी थी। 

पूर्वोत्तर भारत के हिंदू साम्राज्य अहोम की सेना की संरचना बहुत ही व्यवस्थित थी। एक 'डेका' 10 सैनिकों का, 'बोरा' 20 सैनिकों का, 'सैकिया' 100 सैनिकों का, 'हजारिका' 1,000 सैनिकों का और 'राजखोवा' 3,000 सैनिकों का जत्था होता था। इस प्रकार बरफूकन 6,000 सैनिकों का संचालन करता था। लचित बरफूकन इन सभी के प्रमुख थे।

सराईघाट का युद्ध वर्ष 1671 में मुगल (कच्छवाहा राजा, राजा राम सिंह प्रथम के नेतृत्व में), और आहोम साम्राज्य (लाचित बोड़फुकन के नेतृत्व में) के बीच ब्रह्मपुत्र नदी पर सराईघाट (गुवाहाटी, असम) में लड़ा गया था। अहोम सेना ने बेहतर रणनीति और मनोवैज्ञानिक युद्ध से मुगल सेना को हराया। यह युद्ध मुगलों द्वारा असम में अपने साम्राज्य का विस्तार करने के प्रयास में अंतिम लड़ाई थी।


इन्हे देखें :

पूर्वोत्तर भारत का इतिहास