9/06/2021

छत्तीसगढ़ के प्राचीन गणेश मंदिर एवं प्रतिमाएं– Ancient Ganesh Temples Of Chhattisgarh

ढोलकल गणेश ( Source : dantewada.nic.in )


छत्तीसगढ़ राज्य में विभिन्न स्थानों में हुए पुरातात्विक खोजो से यह सिद्ध हो चुका है की राज्य में हजारों वर्षो से भगवान गणेश की आराधना होते आई है। ऐसे प्राचीन मंदिरों को इस सूची में शामिल किया गया है, जिनकी खोज पुरातत्वविदों के द्वारा की गई है।


बारसूर :

बस्तर संभाग के बारसूर स्थित गणेश की मूर्ति विश्व की तीसरी सबसे बड़ी गणेश की मूर्ति है। यहां जुड़वां गणेश मंदिर में दो गणेश प्रतिमा है। एक की ऊंचाई सात फीट की है तो दूसरी की पांच फीट है। बारसूर की यह प्रतिमा एक पत्थर से ही निर्मित है। 

मान्यता के अनुसार इस मंदिर का निर्माण राजा बाणासुर ने करवाया था. राजा की पुत्री और उसकी सहेली दोनों भगवान गणेश की खूब पूजा करती थी। लेकिन इस इलाके में दूर तक कोई गणेश मंदिर नहीं था। इस वजह से राजा की पुत्री को गणेश जी की आराधना के लिए दूर जाना पड़ता था। राजा ने अपनी पुत्री के कहने पर इस मंदिर का निर्माण कराया था। पूर्ण पढ़ें


ढोलकल :

यह पहाड़ी बैलाडीला की पहाड़ी श्रृंखला में छत्तीसगढ़ में दंतेवाड़ा में स्थित है। यह पहाड़ी एक पर्यटन क्षेत्र है। ढोलकल पहाड़ी पर 11 वीं शताब्दी की गणेश प्रतिमा विराजित विराजित है। प्रतिमा साढ़े तीन फीट ऊंची काले ग्रेनाईट से बनी है। पूर्ण पढ़ें


कपिलेश्वर मंदिर समूह :

इस मंदिर समूह छः मंदिरो का एक समूह है, जो अलग–अलग देवताओं को समर्पित है। कपिलेश्वर मंदिर समूह बालोद छत्तीसगढ़ - 13 वी -14 वी शताब्दी में नागवंशी शासन काल में निर्मित है। 

दुसरा मंदिर भगवान गणेश को समर्पित है। इस मंदिर के गर्भगृह में भगवान गणेश की 6 फीट की प्रतिमा स्थापित है। मंदिर का शिखर पीड़ा देवल प्रकार में निर्मित है। छत्तीसगढ़ में भगवान गणेश की अनेकों प्रतिमायें मिलती है किन्तु अधिकांश प्रतिमायें खुले में या किसी मंदिर के मंडप में स्थापित प्राप्त होती है किन्तु ऐसे मंदिर बेहद की कम प्राप्त होते है। पूर्ण पढ़ें


माता दंतेश्वरी मंदिर :

माता दंतेश्वरी के मंदिर में गर्भगृह के ठीक बाहर, निकासी द्वार से लग कर भगवान गणेश जी की विशाल काले रंग की मूर्ति स्थापित है। दंतेश्वरी मंदिर के निर्माण का श्रेय तो चालुक्य शासक अन्नमदेव को जाता है किंतु मंदिर के भीतर अवस्थित अधिकतम प्रतिमायें नाग (760 – 1324 ई) अथवा नल (ईसापूर्व 600 – 760 ई.) काल की है।


अन्य :

मदकू द्वीप में कल्चुरी कालीन चतुर्भुजी नृत्य गणेश की प्रतिमा बकुल पेड़ के नीचे मिली है। सातवी शताब्दी के सुरंग टीला मंदिर में पाँच गर्भगृह हैं जिनमें चार भिन्न प्रकार के शिवलिंग हैं – सफ़ेद, काला, लाल और पीला, और अन्य एक गर्भगृह में भगवान गणेश की प्रतिमा विराजमान है। भोरम देव के गर्भगृह में एक पंचमुखी नाग की मुर्ति है साथ ही नृत्य करते हुए गणेश जी की मुर्ति तथा ध्यानमग्न अवस्था में राजपुरूष एवं उपासना करते हुए एक स्त्री पुरूष की मुर्ति भी है।