11/04/2017

भारत मे पंचायती राज संबंधित समितियाँ Panchayati Raj Sambandhit Samiti


भारत मे पंचायती राज पर गठित समितियाँ निम्न है।
1. बलवंत राय मेहता समिति - 1956
2. अशोक मेहता समिति - 1977
3. राव समिति - 1985
4. सिंघवी समिति - 1987
5. पी. के. थुंगन समिति - 1988

1. बलवंत राय मेहता समिति ( 1956 ) -
1952 के सामुदायिक विकास कार्यक्रम की असफलता के कारणों की समीक्षा के लिए 1956 मे बलवंत राय मेहता की अद्यक्षता मे समिति का गठन किया गया। समिति द्वारा 1957 मे रिपोर्ट प्रस्तुत किया गया। इस समिति ने पंचायती राज व्यवस्था लागू करने पर बल दिया जिसे "लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण" का नाम दिया गया।
इस समिति ने त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था बनाने का सुझाव दिया - जिला स्तर पर जिला परिषद, प्रखंड स्तर पर पंचायत समिति, ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत।
1958 मे राष्ट्रीय विकास परिषद द्वारा बलवंत राय मेहता समिति की सिफारिशों को मंजूरी प्रदान की गई। 2 अक्टूबर 1959 मे प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा राजस्थान के नागौर जिले में पंचायती राज व्यवस्था की सुरुवात की गई। इसी वर्ष 11 अक्टूबर को आंध्र प्रदेश में पंचायती राज व्यवस्था लागू किया गया।

2. अशोक मेहता समिति ( 1977 )
1977 पंचायती राज कार्यक्रम की असफलता के कारणों का अध्ययन करने हेतु अशोक मेहता समिति का गठन किया गया। इस समिति ने 2 स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था बनाने का सुझाव दिया - जिला मे जिला परिषद, मंडल स्तर पर मंडल पंचायत। इस समिति के सुझव को लागू नही किया गया।

3. राव समिति - 1985
1985 मे ग्रामीण विकास एवं गरीबी उन्मूलन हेतु उपयुक्त प्रशासनिक व्यवस्था की सिफारिश के लिए राव समिति का गठन किया। इस समिति ने अनुसूचित जनजाति तथा महिलाओ के लिए आरक्षण की सिफारिश की। इस समिति के द्वारा 4 स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था बनाने का सुझाव दिया - राज्य स्तर पर राज्य विकाष परिषद, जिला स्तर पर जिला परिषद, मंडल स्तर पर मंडल पंचायत तथा ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत। इस समिति ने ग्राम पंचायत में नियमित चुनाव की भी सिफारिश की थी। इस समिति के सुझव को लागू नही किया गया।

4. सिंघवी समिति - 1987
1987 मे डॉ. एम. एल. सिंघवी की अद्यक्षता मे गठित इस समिति ने पंचायतो को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने तथा पंचायतो के पुनर्गठन की सिफारिश की।

5. पी. के. थुंगन समिति - 1988
1988 मे गठित पी. के. थुंगन समिति ने पंचायती राज व्यवस्था को शक्तिशाली बनाने हेतु उन्हें संवैधानिक दर्जा दिलाने की सिफारिश की। इस समिति के सुझाव के आधार पर 1989 मे संविधान संसोधन विधेयक प्रस्तुत किया गया। परन्तु राज्यसभा में बहुमत न होने की वजह से यह विधेयक पारित नही हो सका।