हिजला मेला या जनजातीय हिजला मेला महोत्सव एक जनजातीय मेला है। 3 फरवरी, 1890 को तत्कालीन अंग्रेज जिलाधिकारी जॉन राबटर्स कास्टेयर्स ने हिजला मेला की शुरुआत की थी। तब से यह मेला लग रहा है। वर्ष 1855 के 'संताल हूल' के समय से ही आदिवासी और अंग्रेज शासकों की बन नहीं रही थी। आदिवासियों को मुख्य धारा से जोड़ने के मकसद से उपायुक्त जॉंन आर.कास्टेयर्स ने यह मेला शुरु कराया था जो आजादी के बाद भी जारी रहा।
वर्ष 1975 में संताल परगना के तत्कालीन आयुक्त श्री जी. आर. पटवर्धन की पहल पर हिजला मेला के सामने जनजातीय शब्द जोड़ दिया गया। झारखण्ड सरकार ने इस मेला को वर्ष 2008 से एक महोत्सव के रुप में मनाने का निर्णय लिया तथा वर्ष 2015 में इस मेले को राजकीय मेला का दर्जा प्रदान किया गया।
कब और कहा आयोजन होता है ?
सामान्यतः यह मेला माघ- फाल्गुन के शुक्ल पक्ष में झारखंड के दुमका जिले में 3 किलोमीटर दक्षिण में हिजला पहाड़ी पर त्रिकुट पर्वत से निकलने वाली मयुराक्षी नदी तट पर हिजला मेला का आयोजन किया जाता है।
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