11/23/2018

तमोर पिंगला अभयारण्य : Tamor Pingla Sanctuary


तमोर पिंगला अभ्यारण छत्तीसगढ़ राज्य के उत्तरी सीमा पर मध्यप्रदेश उत्तरप्रदेश एवं झारखण्ड राज्य के सीमा पर स्थित है। यह अभ्यारण सरगुजा जिले में स्थित है। सरगुजा वनवृत्त के उत्तर सरगुजा वन मंडल के अंतर्गत आता है। वर्तमान में इसके अंतर्गत एक परिक्षेत्र तमोर पिंगला गठित है जिसका मुख्यालय रमकोला है। यह अभ्यारण क्षेत्र रेहण्ड/रेण्ड नदी का जलग्रहण क्षेत्र है जो सोन नदी की एक प्रमुख सहायक नदी है। रेण्ड के अनेक सहयाक नदियों के उद्गम इस अभ्यारण से है।

इस अभ्यारण का नाम तमोर एवं पिंगला आरक्षित वन खंडो के नाम पर आधारित है। जो इस अभ्यारण के अधिकाँश भू भाग में फैला है। तमोर वनखण्ड का नाम तमोर पहाड़ एवं पिंगला नदी के नाम पर पिंगला वनखण्ड का नामकरण किया गया है। अभ्यारण का कुल क्षेत्रफल लगभग 608 वर्ग कि.मी. है। अभ्यारण का गठन 1978 में वन्यप्राणी (संरक्षण) अधिनियम 1972 की धारा 18 के अंतर्गत किया गया है।


दशर्नीय स्थल
अभ्यारण के अन्दर देवी झरिया , सुई लता,बेंगची पत्थर,मलहन देवी स्थल, लेफरी घाट(जल प्रपात), घोड़ा घाट, कुंदरू घाघ(जल प्रपात) है। अभ्यारण्य के खूबसूरत दृश्यों का अवलोकन करने हेतु अभ्यारण्य के वन क्षेत्रों में निम्न स्थलों पर वॉच टावर का निर्माण किया गया है।

देवी झरिया (रमकोला)- देवी झरिया नामक स्थान रमकोला ग्राम के दक्षिण दिशा में एक पहाड़ी पर स्थित है। इस देवी स्थान पर पर्वतीय श्रॅंखलाओं से एक जल स्रोत प्रवाहित है। यह जलस्रोत देवी स्थान के पास से ही पहाडी के नीचे गिरता हैं। लोकजनों के बीच यहॉं की देवी पिंगला नाम से पूजित है। पिंगला देवी के नाम से ही इस जलस्रोत का नाम पिंगला नदी पडा हैं। इस स्थान के मनोहरता का आनंद लेने एवं देवी दर्शन हेतु वर्ष भर श्रद्धालुओं का आवागमन बना रहता है। अवन्तीकापुर-वाड्रफनगर सड क पर 11 नंबर मोड पर पिश्चम दिशा में लगभग 35 कि०मी० की दूरी पर स्थित है देवी झरिया।

रेड नदी- रेहण्ड / रेणुका नदी का उद्गम स्थल जिला सरगुजा के मतरींगा पहाडी से जो लखनपुर वन परिक्षेत्र में है। इस नदी पर टमकी ग्राम के पास जल प्रपात निर्मित करती है जिसे लफरी घाट के नाम से जाना जाता है। यहॉं जलप्रपात से बना जलाशय है। इस स्थल के चारों ओर दूर-दूर तक सघन वन फैला है। अभ्यारण्य के पिश्चमी सीमा पर स्थित स्थल से 25 कि.मी. तक वनक्षेत्र तमोर पिंगला अभ्यारण्य एवं गुरूघासी दास राष्ट्रीय उद्यान का कुछ क्षेत्र आता है।अंबिकापुर से ग्राम रमकोला पी.डब्लू.डी. मार्ग पर 15 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। रमकोला से ग्राम इंजानी, टमकी वनमार्ग जो अभ्यारण्य के मध्य से गुजरती है पर दर्शनीय स्थल है। यहॉं से 30 कि.मी. की दूरी पर लफरी घाट (रेहण्ड नदी) स्थित है।

मोरन / मोरनी का तट- मोरन नदी तमोर पिंगला अभ्यारण्य के उत्तरी सीमा का निर्धारण करती है। मानपुर वनखण्ड से निकलकर बोंगा ग्राम के पूर्व उत्तर से अभ्यारण्य सीमा निर्धारण प्रारंभ कर रेहण्ड नदी में ग्राम छतौली के पास संगम बनाती है। अभ्यारण्य सीमा पर इसकी लम्बाई लगभग 50 कि.मी. है। इस लम्बाई में दोनों ओर सुरम्य वनक्षेत्र स्थित है। घने वन क्षेत्र से गुजरने वाली यह नदी कई स्थलों पर मनमोहक दृश्य बनाती है। रमकोला से रघुनाथनगर वनमार्ग सुगम पहुंच मार्ग है जिसकी लम्बाई 16 कि.मी. है।

कुन्दरू घाघ- सरगुजा जिले के स्थानीय बोली में जलप्रपात को घाघी कहा जाता है। पिंगला नदी जो अभ्यारण्य के हृदय स्थल से प्रवाहित होती है, में कुदरूघाघ एक मध्य उंचाई का सुन्दर जल प्रपात रमकोला से 10 कि.मी. की दूरी पर घने वन के मध्यम स्थित है। यह जल प्रपात दोनों ओर से घने जंगल से घीरा हुआ है। यह स्थल पारिवारिक वन भोज के लिए मनमोहक, दर्शनीय एवं सुरक्षित सुगम पहुंच योग्य है।

छिन्दगढ़- तमोर पिंगला अभ्यारण्य के तमोर पहाडी के वादियों में कक्ष क्रमांक 824 में छिंदगढ नामक स्थान है। यहॉ पर विभाग द्वारा 50 फीट उंचा वॉच टॉवर कर निर्माण कराया गया है जिस पर चढ कर दूर-दूर तक फैले मनमोहक प्राकृतिक दृश्यों का अवलोकन किया जा सकता है। गेम रेंज मुख्यालय से 20 कि.मी. तकय कर यहॉं पहुंचा जा सकता है।

हाथी कैम्प धुरियॉ- विभाग द्वारा पकडे गये जंगली हाथियों में से सिविल बहादुर जो अम्बिकापुर के पास स्थित चेन्द्र ग्राम (लालमाटी) नामक स्थान पर प्रशिक्षण प्राप्त कर रहा था। अभ्यारण्य में ले जाने हेतु पन्ना राष्ट्रीय उद्वान से लाली हथिनी को लाया जा कर “लाली” एवं “सिविल” बहादुर को अभ्यारण्य के धुरियॉं कैम्प लाया गया। लाली राष्ट्रीय उद्यान पन्ना के रामबहादुर हाथी से गर्भवती हुई थी, तथा धुरियां कैम्प में आने के बाद एक मादा बच्चे को माह अप्रैल 2000 में जन्म दिया। जिसका नामकरण दुर्गा किया गया। दुर्गा के पिता का नाम रामबहादुर है।

सारूगढ़ एवं धोबा- अभ्यारण्य के तमोंर पहाडी पर क्रमशः कक्ष क्रमांक 818 एवं 836 में स्थित है। यह क्षेत्र घने साल वृक्षों से आच्छादित है। इस क्षेत्र में “गौर” निवास करते है। यहॉं विभाग द्वारा 50 फीट उंचा वॉच टॉवर का निर्माण कराया गया है जिस पर चढ़कर दूर-दूर तक फैले तमोर पहाडी के सुरम्य मनमोहक प्राकृतिक दृश्यों का अवलोकन किया जा सकता है।

ग्राम भेलकच्छ- तमोर पहाड़ी पर पहुॅचने पर एक ऐसा स्थान पड़ता है जहॉं पर पर्यटक खडे होकर लगभग सैकड़ों फीट की उंचाई से भेलकच्छ ग्राम का विहंगम दृश्य देख सकते है।

बेंगची पत्थर- रमकोला-जनकपुर वनमार्ग जो अभ्यारण्य के मध्य भाग से गुजरता है के 15वें कि.मी. पर पिंगला वनखण्ड के कक्ष क्रमांक 932 में देखने पर पहाड़ी के एक चोटी पर प्राकृतिक रूप से चट्टान पर मेढ क तथा दूसरी चोटी पर चट्टान सर्प के समान दिखाई देती है, ऐसा प्रतीत होता है कि सर्प मेढ क को पकड ने का प्रयास कर रहा है।

घाट पेण्डारी- उत्तर सरगुजा वनमण्डल के प्रतापपुर वन परिक्षेत्र के अंतर्गत अम्बिकापुर-वाराणसी राजमार्ग पर स्थित है। घाट पेण्डारी में पूर्व समय में अत्यधिक चढाई था अब घाट कटिंग एवं पक्का मार्ग निर्माण हो जाने से यहॉं का मार्ग सुगम हो गया है। उक्त वन क्षेत्र में जंगली जड़ी बूटी बहुतायत में पाये जाते है जिसे लोक संरक्षित क्षेत्र बना कर संरक्षित किया जा रहा है।

मॉं बागेश्वरी देवी, कुदरगढ- अम्बिकापुर नगर के पश्चिम दिशा में लगभग 80 कि.मी. की दूरी पर कुदरगढ़ पर्वत है। यहॉं राजा बालंदशाह सृजित मॉं बागेश्वरी की स्थापना चट्टानी गुफा में है। मॉं बागेश्वरी की मूर्ति कुदरती है, जिससे वे कुदरगढी नाम से प्रसिद्व है। मूर्ति के सामने चट्टानों के बीच छोटा गड्ढा है, जिसे देवी कुंड कहा जाता है। नवरात्रि में हजारों बकरों की बलि दी जाती है, पर इनका रक्त इस कुण्ड में कहॉं चला जाता है कोई नहीं जानता क्योंकि यह देवी कुण्ड भरता नहीं है।
दर्शनीय स्थल - पहाड़ी के ऊपर राजा बालंदशाह का किला, कपिलधारा जल प्रपात, सूरज कुण्ड देवी और प्राकृतिक सौन्दर्य है।

रक्सगण्डा जलप्रपात- ओडगी विकासखंड में रकसगण्डा जल प्रपात चांदनी बिहारपुर के निकट बलगी/ बलंना नामक स्थान के समीप स्थित कई नदी पर्वत श्रृखला की ऊंचाई से गिरकर बलंगी के निकट रकसगण्डा जल प्रापत का निर्माण करती है। तब वहां ऐक संकरे कुंड का निर्माण होता है। यह कुंड लंबाई के लिए हुए अत्यंत गहरा है। कुंड में ऊंचाई से जल गिरने पर अनेक प्रकार की गैस निकलती है। इस कुंड से एक सुरंग निकल कर लगभग 100 मीटर तक गई है। यह सुरंग जहां समाप्त होता है, वहां एक विशाल जलकुंड बन गया है, जिसमें सूर्य रिश्मयों के संयोजन से रंग-बिरंगा पानी निकलता है। रियासत काल में अंग्रेज यहां मछलियों का शिकार करने आया करते थे।


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