12/20/2019

नेहरू-लियाकत समझौता


नेहरू-लियाकत समझौता 8 अप्रैल, 1950 को भारत और पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री समझौता हुआ था। यह समझौता नेहरू-लियाकत समझौता (दिल्ली समझौता) के नाम से चर्चित यह पैक्ट दोनों देशों के अल्पसंख्यकों के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए था। इसके अलावा जो इस पैक्ट का मकसद दोनों देशों के बीच युद्ध को टालना था।

विभाजन और दंगे :
1947 में भारत का विभाजन की वजह से दोनों तरफ बड़े पैमाने पर दंगे हुए जिसमें लाखों लोग मारे गए, हजारों महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ, नाबालिग लड़कियों का अपहरण किया गया और उनका जबरन धर्म परिवर्तन कराया गया। बड़े पैमाने पर कत्लेआम से दोनों देशों में रहने वाले अल्पसंख्यक समुदाय असुरक्षित हो गए। दिसंबर 1949 में दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंध भी बंद हो गए। पाकिस्तान से हिंदू और सिख भारत आए तो भारत से मुस्लिम पाकिस्तान चले गए। भारत आने और पाकिस्तान जाने वाले उन हिंदू मुसलमानों की संख्या करीब 10 लाख थी।

समझौता :
लोगों के बीच डर का माहौल था। इस समस्या के समाधान के लिए दोनों देशों के तत्कालीन प्रधानमंत्री यानी भारत की ओर से जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान की ओर से लियाकत अली खान ने कदम उठाया। उनके बीच 2 अप्रैल, 1950 को बातचीत हुई। उन्होंने दोनों देशों में रहने वाले अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किया। इस समझौते का मुख्य उद्देश्य धार्मिक अल्पसंख्यकों का भय कम करना, सांप्रदायिक दंगों को समाप्त करना और शांति का माहौल तैयार करना था।

समझौते की मुख्य बातें
  • अल्पसंख्यकों को समस्या होने पर दोनों सरकारों की जिम्मेदारी होगी कि उनकी समस्याओं का समाधान करे। 
  • दोनों सरकारें अपने-अपने अल्पसंख्यकों के नागिरकता और जीवन की सुरक्षा एवं उनकी संपत्ति के समान अधिकार को सुनिश्चित करेंगी। 
  • बुनियादी मानवाधिकारों की सुरक्षा को सुनिश्चित करेंगी। इन बुनियादी अधिकारों में कहीं आने-जाने की आजादी, विचार और अभिव्यक्ति की आजादी और धर्म की आजादी शामिल थी। 
  • अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए एक अल्पसंख्यक आयोग का गठन किया जाएगा।